Friday, June 17, 2022

कैलाश पर्वत के अनसुलझे रहस्यों से वैज्ञानिक भी दंग

 


राजेश त्रिपाठी

पौराणिक कथाओं के आधार पर कैलाश पर्वत को भगवान शिव का धाम माना जाता है। यह सनातन धर्मियों के लिए बहुत ही पवित्र स्थान है। यह दूर से देखने में जितना रम्य और दिव्य है पास पहुंचने पर उतना ही दुर्गम और रहस्यमय।नासा संस्थान के साथ ही दुनिया के अन्य वैज्ञानिक भी इसके अनसुलझे रहस्यों को सुलझा नहीं पाये। वे इससे जुड़े चमत्कारों को लेकर दंग हैं। ऐसा माना जाता है कि कई बार कैलाश पर्वत पर सतरंगी प्रकाश किरणें आकाश पर चमकती देखी गयी हैं। नासा के वैज्ञानिकों का मानना है कि हो सकता है कि ऐसा यहां के चुम्बकीय बल के कारण होता हो। यहां का चुम्बकीय बल आसमान से मिल कर कई बार इस तरह की चीजों का निर्माण कर सकता है।

आसमान में सतरंगी प्रकाश और ॐ की गूंज, भगवान शिव के धाम कैलाश के इन अनसुलझे रहस्यों से नासा भी हैरान है।

अधिकांश सनातनी धर्मावलंबियों के लिए कैलाश श्रद्धा का प्रतीक है, वहीं अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा को कैलाश पर्वत एक रहस्यमयी जगह लगती है। कई रूसी वैज्ञानिकों ने भी कैलाश पर अपनी रिपोर्ट पेश कर वैज्ञानिक महत्ता से जुड़े रहस्यों को उजागर किया है।  यहां कई साधू और संत अपने अपने आराध्यों से संपर्क करते हैं।प्रकाश और ध्वनि के समागम से निकलती हैं ॐ की आवाज कैलाश की बर्फ पिघलने पर गूंजती है डमरू की डम-डम। कैलाश पर्वत को आज भी सनातनी भारतीय  शिव का निवास स्थान मानते हैं। शास्त्रों में भी यही लिखा है कि कैलाश पर भगवान शिव का वास है। यह अलग बात है कि अधिकांश सनातनी धर्मावलंबियों के लिए कैलाश श्रद्धा का प्रतीक है, वहीं अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा को अद्भुत अलौकिक कैलाश पर्वत एक रहस्यमयी जगह लगती है। सिर्फ नासा ही क्यों कई रूसी वैज्ञानिकों ने भी कैलाश पर्वत पर अपनी रिपोर्ट पेश कर उसकी वैज्ञानिक महत्ता से जुड़े रहस्यों को उजागर किया है।

कैलाश की ऊंचाई 6,638 मीटर है।

इन सभी रिपोर्टों में माना गया है कि कैलाश पर्वत वास्तव में कई अलौकिक शक्तियों का केंद्र है। विज्ञान यह दावा तो नहीं करता है कि यहां भगवान शिव देखे गए किन्तु यह सभी मानते हैं कि यहां पर कई पवित्र शक्तियां जरूर काम कर रही हैं। संभवतः यही वजह है कि कैलाश पर्वत से जुड़े किस्से पीढ़ी दर पीढ़ी लोगों को आकर्षित करते आ रहे हैं।

आइए जानें वैज्ञानिकों ने कैलाश के बारे में क्या कहा है।

रूस के वैज्ञानिकों का मानना है कि कैलाश पर्वत आकाश और धरती के साथ इस तरह से केंद्र में है जहां पर चारों दिशाएं मिल रही हैं। कुछ रूसी वैज्ञानिकों का दावा है कि यह स्थान एक्सिस मुंडी है और इसी स्थान पर व्यक्ति अलौकिक शक्तियों से आसानी से संपर्क कर सकता है। धरती पर यह स्थान सबसे अधिक शक्तिशाली स्थान है। इसे धरती का केंद्र भी माना जाता है।

यह पर्वत अजेय है। आज तक कोई इसके शिखर को नहीं छू सका।

वैसे यह भी कहा जाता है कि 11 वीं सदी में तिब्बत के योगी मिलारेपी के शिखर पर पहुंचने का दावा किया जाता है। यह अलग बात है कि इस योगी के पास इस बात के कोई सबूत नहीं थे। यह भी माना जाता है कि वह खुद भी सबूत पेश नहीं करना चाहते थे। इसलिए यह भी एक रहस्य है कि इन्होंने कैलाश के शिखर पर कदम रखा या फिर वह कुछ बताना नहीं चाहते थे।

कैलाश पर्वत पर दो झीलें हैं और यह दोनों ही रहस्य बनी हुई हैं। आज तक इनका भी रहस्य कोई जान नहीं पाया। एक झील साफ़ और पवित्र जल की है। इसका पानी मीठा है और इसमें जलीय जीव-जंतु भी हैं। इसका आकार सूर्य के समान बताया गया है। इसका नाम मानसरोवर है। वहीं, दूसरी झील अपवित्र और गंदे जल की है तो इसका आकार चन्द्रमा के समान है। इसका नाम राक्षस ताल है। इसके पानी में कोई जीव-जंतु नहीं हैं। ऐसा कैसे हुआ है यह भी कोई नहीं जानता है। लंकाधिपति रावण शिव का एक बहुत बड़ा भक्त, बतौर राजा एक महान प्रशासक और बेहद प्रतिभाशाली इंसान था। वह शिव की आराधना करने कैलाश पर गया था। शिव के पास जाने से पहले रावण नहाना चाहता था, इसलिए उसने राक्षस ताल में डुबकी मार ली। नहाकर जब शिव से मिलने चला तो रास्ते में उसकी नजर पार्वती पर पड़ी। शिव के पास पहुंच कर रावण नें उनकी स्तुति की।

शिवजी के रावण की इस भक्ति से शिव बहुत प्रसन्न हुए। प्रसन्न होकर उन्होंने रावण से कहा कि अच्छा बताओ तुम्हें क्या चाहिए? इस पर उस मूर्ख ने कहा, मुझे आपकी पत्नी चाहिए। मान्यताओं के अनुसार उसकी बुद्धि इसलिए भ्रष्ट हो गई, क्योंकि उसने राक्षसताल में डुबकी लगायी थी। उस ताल में नहाने से उसके दिमाग में ऐसे गलत विचार आए। ऐसा माना जाता है कि कैलाश पर पवित्र आत्माओं का वास है।

यहां से जुड़े आध्यात्मिक दस्तावेजों और शास्त्रों के अनुसार रहस्य की बात करें तो कैलाश पर्वत पर कोई भी व्यक्ति सशरीर उच्चतम शिखर पर नहीं पहुंच सकता है। ऐसा बताया गया है कि यहां पर देवताओं का आज भी निवास है। पवित्र संतों की आत्माओं को ही यहां निवास करने का अधिकार  है। यही वजह है कि कैलाश पर आज तक कोई चढ़ भी नहीं सका है। कैलाश पर्वत की चार दिशाओं से चार नदियां निकलती हैं: ब्रह्मपुत्र, सतलज, सिंधु और करनाली। कैलाश की चारों दिशाओं में विभिन्न जानवरों के मुंह हैं जिसमें से नदियों का उद्गम होता है. पूर्व में अश्वमुख है, पश्चिम में हाथी का, उत्तर में सिंह का, दक्षिण में मोर का मुंह है।


स्कंद पुराण और शिवपुराण में भी कैलाश का उल्लेख मिलता है। कैलाश चीन के क्षेत्र में  पडता है। इसके आगे तिब्बत के पास एक ऐसा दुर्गम क्षेत्र है जिसे सिद्धाश्रम या अंतरराष्ट्रीय आध्यात्मिक विद्यालय ज्ञानगंज के नाम से जाना जाता है। वहां की गुफाओं में महान साधक हजारों वर्षों से साधना कर रहे हैं। इनमें कई ऐसे हैं जिनकी सच्ची आयु का ही पता लगाना आसान नहीं। कहा तो यहां तक जाता है कि वहां देवी-देवता तक सूक्ष्म रूप से निवास करते हैं।

रूसी वैज्ञानिक मानते हैं कि कैलाश पर्वत मानव निर्मित पिरामिड है क्योंकि इसका आकार पिरामिड जैसा है। कुछ लोगों ने तो इस पर 'ऊं' की आकृति होने का दावा तक किया है।सुना यह भी जाता है कि यहां दिशासूचक यंत्र यानी कंपास भी काम नहीं करता।

ध्यान साधकों का आदर्श

कैलाश पर्वत दुनिया के 4 मुख्य धर्मों का केंद्र माना गया है। हिंदू धर्म के अलावा प्राचीन मिस्र में भी कई ऐसे पर्वतों को पूजा जाता है, जो न सिर्फ रहस्यमयी शक्तियों से ओत-प्रोत हैं, बल्कि अध्यात्म की खोज में रहने वाले लोगों को भी आकर्षित करते है।

कैलाश पर्वत का सबसे बड़ा रहस्य खुद विज्ञान ने साबित किया है कि यहां पर प्रकाश और ध्वनि के बीच इस तरह का समागम होता है कि यहां से ॐ की आवाजें सुनाई देती हैं। जाहिर है अपने इन्हीं अनसुलझे रहस्यों या खूबियों के कारण कैलाश पर्वत आज भी इतना धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व बनाए रखे हुए है।

कैलाश पर्वत चढ़ना इसलिए भी असंभव बताया जाता है कि वहां  पर व्यक्ति दिशाहीन हो जाता है। दिशा भटक जाने के चलते वह घंटों एक ही जगह भटकता रह जाता है।

मरने के बाद या जिसने कभी भी कोई पाप न किया हो, केवल वही कैलाश पर विजय प्राप्त  कर सकता है।  पर्वत पर थोड़ा सा ऊपर चढ़ते ही व्यक्ति दिशाहीन हो जाता है। बिना दिशा के चढ़ाई करना मतलब मौत को दावत देना है, इसलिए कोई भी इंसान आज तक कैलाश पर्वत पर नहीं चढ़ पाया है। कहा यह भी जाता है कि कुछ लोगों के साथ ऐसा हुआ कि पर्वत पर कुछ दूर चढ़ने के बाद ही उनके नाखून बढ़ने लगे, चेहरे पर झुर्रियां पड़ गयीं, बाल सफेद हो गये और अचानक उनकी उम्र बहुत बढ़ गयी। इसके बाद वे घबड़ा कर नीचे लौट गये। डाक्टर और वैज्ञानिकों का कहना है कि वहां का वातावरण ऐसा है कि दिमाग में सूजन आ जाती है जिससे व्यक्ति को मतिभ्रम हो जाता है और वह कुछ का कुछ देखने-सुनने लगता है।

एक अंग्रेज जिसका नाम लॉरेंस डिसूजा था। उसने एक बार मन में ठाना कि मैं इस अजेय कैलाश पर्वत पर चढ़ कर के ही रहूंगा। इसके बाद उसने कैलाश पर्वत पर जाने के लिए अपनी चढ़ाई शुरू कर दी। लेकिन वह भी आधे रास्ते से ही लौट आया। लेकिन जब उसने अपनी यात्रा के अनुभवों को लोगों से साझा किया तो लोग उसकी बातों को सुनकर आश्चर्यचकित रह गए। उसने बताया कि जब मैंने चढ़ाई आरंभ की तो शुरू में सब कुछ सामान्य था।लेकिन जैसे -जैसे मैं आगे बढ़ता जा रहा था वैसे वैसे ही कुछ ऐसी अचंभित कर देने वाली घटनाएं मेरे साथ होने लगीं थीं। जिसे देखकर मैं बहुत आश्चर्यचकित था। उस अंग्रेज व्यक्ति ने बताया कि जब मैं इस यात्रा पर निकला था तो उस समय मेरी उम्र केवल 30 वर्ष की थी। इसीलिए मेरे सर के बाल पूरी तरह काले थे। लेकिन जैसे-जैसे मैं कैलाश पर्वत की चढ़ाई में आगे बढ़ता जा रहा था वैसे वैसे मेरे बाल सफेद होते जा रहे थे।

भगवान शिव के घर कैलाश पर्वत पर आज तक कोई नहीं चढ़ पाया, क्या है इसके पीछे का रहस्य

हिंदू शास्त्रों में भगवान शिव को कैलाश पर्वत  का स्‍वामी माना जाता है। मान्‍यता है कि महादेव अपने पूरे परिवार के साथ कैलाश में रहते हैं। दरअसल पौराणिक कथाओं में ऐसी कई घटनाओं के बारे में बताया गया है जिनमें कई बार असुरों और नकारात्मक शक्तियों ने कैलाश पर्वत पर चढ़ाई करके इसे भगवान शिव से छीनने का प्रयास किया, लेकिन उनकी इच्छा कभी पूरी नहीं हो सकी। आज भी यह बात उतनी ही सच है जितनी पौराणिक काल में थी। भले ही दुनिया भर के पर्वतारोही माउंट एवरेस्‍ट  को फतह कर चुके हैं लेकिन कोई आज तक कैलाश पर्वत पर चढ़ाई नहीं कर पाया है।आखिर ऐसा क्‍यों है, क्या है इसके पीछे का रहस्य आइए आपको बताते हैं कैलाश पर्वत के रहस्य के बारे में।

सनातन धर्म में कैलाश पर्वत का बहुत महत्व है, क्योंकि यह भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। लेकिन इसमें सोचने वाली बात ये है कि दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को अभी तक 7000 से ज्यादा लोग फतह कर चुके हैं, जिसकी ऊंचाई 8848 मीटर है, लेकिन कैलाश पर्वत पर आज तक कोई नहीं चढ़ पाया है  जबकि इसकी ऊंचाई एवरेस्ट से लगभग 2000 मीटर कम यानी 6638 मीटर ही है। कैलाश पर्वत के बारे में अक्‍सर ऐसी बातें सुनने में आती हैं कई पर्वतारोहियों ने इस पर चढ़ने की कोशिश की, लेकिन इस पर्वत पर रहना असंभव था क्योंकि वहां शरीर के बाल और नाखून तेजी से बढ़ने लगते हैं। इसके अलावा कैलाश पर्वत बहुत ही ज्यादा रेडियोएक्टिव भी है।

कैलाश पर्वत पर व्यक्ति दिशाहीन हो जाता है कैलाश पर्वत पर कभी किसी के नहीं चढ़ पाने के पीछे कई कहानियां भी प्रचलित हैं। कुछ लोगों का मानना है कि कैलाश पर्वत पर भगवान शिव अपने परिवार के साथ रहते हैं और इसीलिए कोई जीवित इंसान वहां ऊपर नहीं पहुंच सकता।.

माउंट कैलाश को शिव पिरामिड भी कहा जाता है सन 1999 में रूस के वैज्ञानिकों की टीम एक महीने तक कैलाश पर्वत के नीचे रही और इसके आकार के बारे में शोध करती रही। वैज्ञानिकों ने कहा कि इस पहाड़ की तिकोने आकार की चोटी प्राकृतिक नहीं, बल्कि एक पिरामिड है जो बर्फ से ढकी रहती है। यही कारण है कि माउंट कैलाश को शिव पिरामिड के नाम से भी जाना जाता है। जो भी इस पहाड़ को चढ़ने निकला, या तो मारा गया या बिना चढ़े वापस लौट आया।

चीन सरकार के कहने पर कुछ पर्वतारोहियों का दल कैलाश पर चढ़ने का प्रयास कर चुका है। लेकिन उन्हें भी सफलता नहीं मिली और पूरी दुनिया के विरोध का सामना अलग से करना पड़ा। हार कर चीनी सरकार को इस पर चढ़ाई करने से रोक लगानी पड़ी। कहते हैं जो भी इस पहाड़ पर चढ़ने की कोशिश करता है, वो आगे नहीं चढ़ पाता, उसका हृदय परिवर्तन हो जाता है। यहां की हवा में कुछ अलग बात है।

चन की पूरी टीम के सिर में भयंकर दर्द होने लगा था

चीन ही नहीं रूस भी कैलाश के आगे अपने घुटने टेक चुका है। सन 2007 में रूसी पर्वतारोही सर्गे सिस्टिकोव ने अपनी टीम के साथ माउंट कैलास पर चढ़ने की कोशिश की थी। सर्गे ने अपना खुद का अनुभव बताते हुए कहा था कि कुछ दूर चढ़ने पर उनकी और पूरी टीम के सिर में भयंकर दर्द होने लगा। फिर उनके पैरों ने जवाब दे दिया। उनके जबड़े की मांसपेशियां खिंचने लगीं और जीभ जम गई। मुंह से आवाज़ निकलना बंद हो गई। चढ़ते हुए महसूस हुआ कि वह इस पर्वत पर चढ़ने लायक नहीं हैं। उन्होंने फौरन मुड़कर उतरना शुरू कर दिया। तब जाकर उन्हें आराम मिला।

कैलाश पर्वत की कुछ ऐसी तस्वीरें सामने आई हैं, जिनमें भगवान शिव की आकृति साफ तौर पर देखी जा सकती है।भगवान शिव के अद्भुत दर्शन के लिए हर साल लाखों श्रद्धालु मानसरोवर की पवित्र यात्रा पर जाते हैं। भगवान शिव में आस्था रखने वाले वैसे तो मुख्य रूप से हिंदू धर्म के लोग ही होते हैं। इसके साथ सिख भी भगवान शिव और अन्य देवी-देवताओं में काफी विश्वास रखते हैं। लेकिन ये खबर जानकर आपको हैरानी होगी कि भगवान शिव पर अब नासा वाले भी भरोसा करने लगे हैं।

कहा जाता है कि मानसरोवर के कैलाश पर्वत पर भगवान शिव विराजमान होते हैं। जहां जाने वाले प्रत्येक श्रद्धालुओं को भगवान शिव की असीम कृपा और शक्ति प्राप्त होती है।

 कैलाश पर्वत से कुछ ऐसी तस्वीरें सामने आईं हैं, जिसे देखने के बाद खुद नासा भी हैरान है।

बता दें कि हाल ही में कैलाश पर्वत की कुछ ऐसी तस्वीरें सामने आई हैं, जिनमें भगवान शिव की आकृति साफ तौर पर देखी जा सकता है। इन तस्वीरों को देखने में ऐसा लग रहा है जैसे साक्षात भगवान शिव इस पूरी दुनिया को दर्शन दे रहे हों। बर्फ की मोटी चादर में लिपटा हुए कैलाश पर्वत पर साफ तौर पर भगवान शिव को देखा जा सकता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि सोशल मीडिया पर वायरल हो रही कैलाश पर्वत पर भगवान शिव की आकृतियों को गूगल और नासा भी स्वीकार कर रहा है।

कैलाश पर्वत के दक्षिण भाग को नीलम, पूर्व भाग को क्रिस्टल, पश्चिम को रूबी और उत्तर को स्वर्ण रूप में माना जाता है।

इस पावन स्थल को भारतीय दर्शन के हृदय की उपमा दी जाती है, जिसमें भारतीय सभ्यता की झलक प्रतिबिंबित होती है। कैलाश पर्वत की तलछटी में कल्पवृक्ष लगा हुआ है। बौद्ध धर्मावलंबियों अनुसार, इसके केंद्र में एक वृक्ष है, जिसके फलों के चिकित्सकीय गुण सभी प्रकार के शारीरिक व मानसिक रोगों का उपचार करने में सक्षम हैं।

तिब्बतियों की मान्यता है कि वहां के एक संत कवि ने वर्षों गुफा में रहकर तपस्या की थी। तिब्बती बोनपाओं के अनुसार, कैलाश में जो नौमंजिला स्वस्तिक देखते हैं व डेमचौक और दोरजे फांगमो का निवास है। इसे बौद्ध भगवान बुद्ध तथा मणिपद्मा का निवास मानते हैं। कैलाश पर स्थित बुद्ध भगवान का अलौकिक रूप 'डेमचौक' बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए पूजनीय है। वह बुद्ध के इस रूप को 'धर्मपाल' की संज्ञा भी देते हैं। बौद्ध धर्मावलंबियों का मानना है कि इस स्थान पर आकर उन्हें निर्वाण की प्राप्ति हुई। आदिनाथ ऋषभदेव का यह निर्वाण स्थल 'अष्टपद' है। कहते हैं ऋषभदेव ने आठ पग में कैलाश की यात्रा की थी। हिन्दू धर्म के अनुयायियों की मान्यता है कि कैलाश पर्वत मेरू पर्वत है जो ब्राह्मांड की धूरी है और यह भगवान शंकर का प्रमुख निवास स्थान है। यहां देवी सती के शरीर का दायां हाथ गिरा था। इसलिए यहां एक पाषाण शिला को उसका रूप मानकर पूजा जाता है। यहां शक्तिपीठ है। कुछ लोगों का मानना यह भी है कि गुरु नानक ने भी यहां कुछ दिन रुककर ध्यान किया था। इसलिए सिखों के लिए भी यह पवित्र स्थान है।

वैज्ञानिक मानते हैं कि भारतीय उपमहाद्वीप के चारों ओर पहले समुद्र था। इसके रशिया से टकराने से हिमालय का निर्माण हुआ। यह घटना अनुमानत: 10 करोड़ वर्ष पूर्व घटी थी।

कैलाश पर्वत और उसके आसपास के वातावरण पर अध्ययन कर चुके रशिया के वैज्ञानिकों ने जब तिब्बत के मंदिरों में धर्मगुरुओं से मुलाकात की तो उन्होंने बताया कि कैलाश पर्वत के चारों ओर एक अलौकिक शक्ति का प्रवाह है जिसमें तपस्वी आज भी आध्यात्मिक गुरुओं के साथ टेलीपैथिक संपर्क करते हैं।

 कैलाश पर्वत समुद्र सतह से 22068 फुट ऊंचा है तथा हिमालय से उत्तरी क्षेत्र में तिब्बत में स्थित है। चूंकि तिब्बत चीन के अधीन है, अतः कैलाश चीन में आता है। मानसरोवर झील से घिरा होना कैलाश पर्वत की धार्मिक महत्ता को और अधिक बढ़ाता है।

 इसकी परिक्रमा का महत्त्व बहुत कुछ कहा गया है। कैलाश पर्वत कुल 48 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। कैलास परिक्रमा मार्ग 15500 से 19500 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। मानसरोवर से 45 किलोमीटर दूर तारचेन कैलास परिक्रमा का आधार शिविर है। कैलाश की परिक्रमा कैलाश की सबसे निचली चोटी तारचेन से शुरू होती है और सबसे ऊंची चोटी डेशफू गोम्पा पर पूरी होती है।

 घोडे और याक पर चढ़कर ब्रह्मपुत्र नदी को पार करके कठिन रास्ते से होते हुये यात्री डेरापुफ पहुंचते हैं। जहां ठीक सामने कैलास के दर्शन होते हैं। यहां से कैलाश पर्वत को देखने पर ऐसा लगता है, मानों भगवान शिव स्वयं बर्फ़ से बने शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं। इस चोटी को हिमरत्नभी कहा जाता है।

 इतनी ठंडी जगह पर भी है गरम पानी के झरने ड्रोल्मापास  तथा मानसरोवर तट पर खुले आसमान के नीचे ही शिवशक्ति का पूजन भजन करते हैं। यहां कहीं कहीं बौद्धमठ भी दिखते हैं जिनमें बौद्ध भिक्षु साधनारत रहते हैं। दर्रा समाप्त होने पर तीर्थपुरी नामक स्थान है जहाँ गर्म पानी के झरने हैं। इन झरनों के आसपास चूनखड़ी के टीले हैं। कहा जाता है कि यहीं भस्मासुर ने तप किया और यहीं वह भस्म भी हुआ था।

 जहां देवी पार्वती ने किया था घोर तप इसके आगे डोलमाला और देवीखिंड ऊँचे स्थान हैं। ड्रोल्मा से नीचे बर्फ़ से सदा ढकी रहने वाली ल्हादू घाटी में स्थित एक किलोमीटर परिधि वाला पन्ने के रंग जैसी हरी आभा वाली झील, गौरीकुंड है। यह कुंड हमेशा बर्फ़ से ढंका रहता है, मगर तीर्थयात्री बर्फ़ हटाकर इस कुंड के पवित्र जल में स्नान करना नहीं भूलते। साढे सात किलोमीटर परिधि तथा 80 फ़ुट गहराई वाली इसी झील में माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की थी।

 इस पर्वत पर स्वर्ग प्राप्ति का मार्ग है। हिन्दू धर्म के लोगो की ऐसी मान्यता है की इस पर्वत पर चढ़ाई करते समय पांडवों और द्रोपदी को मोक्ष प्राप्त हुआ था। कैलाश पर्वत के चार मुख है। इस पर्वत ने मानो धरती और आकाश को जोड़े रखने की अलौकिक शक्ति है। लोग ऐसा मानते है कि यहाँ पे मृत्यु पाने वाले लोग सीधा स्वर्ग जाते है।

  ऐसा कहा जाता है कि ग्यारहवीं सदी में एक बौद्ध भिक्षु योगी मिलारेपा ने अभी तक माउंट कैलाश पर चढ़ाई की है और वह इस पवित्र तथा रहस्यमयी पर्वत पर जा कर जिंदा लौटने वाले दुनिया के पहले इंसान है।  इसका जिक्र पौराणिक कथाओं में भी मिलता है। मगर वर्तमान समय में कोई कैलाश पर्वत पर क्यों नहीं चढ़ पाया, इसकी वास्तविक वजह अब तक कोई नहीं जान पाया है।

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