Thursday, July 3, 2025

जब जनसत्ता के प्रबंधक ने मेरा इस्तीफा स्वीकार करने से मना किया

 आत्मकथा-77



आगे बढ़ने से पहले जो पक्ष छूट गया उसका उल्लेख करना बहुत जरूरी है। जब हरिवंश जी से सारी बातें तय हो गयीं तो प्रभात खबर की वेबसाइट को ज्वाइन करने से पहले मैंने जनसत्ता के उप संपा–दक पद से अपना इस्तीफा जनसत्ता के संपादक शंभुनाथ शुक्ल जी को सौंप दिया। मेरा इस्तीफा देख शुक्ल जी चौंके और बोले – अरे राजेश जी यह क्या इस्तीफा क्यों।
मैंने कहा-आनंद बाजार प्रकाशन के हिंदी साप्ताहिक रविवार में हमारे साथी रहे हरिवंश जी ने अपने दैनिक प्रभात खबर की वेबसाइट prabhatkhabar.com के लिए कांटेंट चीफ के रूप में चुना है इसीलिए मैं जनसत्ता छोड़ रहा हूं।
शुक्ला जी बोले- मैं यहां रहनेवाला नहीं। मेरी जनसत्ता के ग्रुप एडीटर ओम थानवी से बात हुई है कि मैं जनसत्ता छोडना .चाहता हूं तो उन्होंने पूछा-अपनी जगह आप कोलकाता में किसे सोच रहे हैं। मैंने आपका नाम सुझाया है और वे राजी भी हो गये हों। आपको कहीं नहीं जाना यहीं रहना है।
शंभुनाथ शुक्ल से मेरा परिचय पुराना था।  वैसे तो जनसत्ता से पहले हम आमने आमने कभी नही मिले थे लेकिन वे आनंद बाजार प्रकाशन के हिंदी साप्ताहिक रविवार में कानपुर से रिपोर्ट भेजा करते थे जो रविवार सापताहिक में प्रकाशित होती हैं।
शुक्ल जी बहुत समझाया लेकिन क्षमायाचना सहित उनका अनुरोध टुकरा दिया। ऐसा करते हु
ए मुझे दुख भी हुआ लेकिन उनका अनुरोध मानता तो मुझे हरिवंश जी के प्रस्ताव की अवहेलना करनी होती जो मैं स्वप्न में भी नहीं सोच सकता था।
 खैर मेरा दृढ़ निश्चय देख कर शंभुनाथ शुक्ल ने मेरा इस्तीफा यूनिट मैनेजर गजेंद्र ओझा जी को अग्रसारित कर दिया।
 दूसरे दिन ओझा जी नीचे संपादकीय विभाग में आये और मुझसे मिले और मेरा दिया इस्तीफा मुझे लौटाते हुए बोले- हम इसे स्वीकार नहीं करते। आपको जनसत्ता में क्या दिक्कत है। मुझे बताइए हम वह दूर कर देंगे।
 मैंने  कहा-सर कोई दिक्कत नहीं। जनसत्ता में हमें सब सुविधा और आजादी प्राप्त कोई शिकायत नहीं। सच यह है कि मैं हरिवंश जी को हामी भर चुका हूं और उनको ना नहीं कर सकता। आपका आग्रह स्वीकार ना कर पाने का दुख मुझे भी है।
जब गजेंद्र ओझा जी ने देखा कि मैं जनसत्ता छोड़ने को प्रतिबद्ध हूं तो वे भी मान गये और मेंरे नयी जगह ज्वाइन करने के लिए शुभकामनाएं दीं। (क्रमश)
 
 
 

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