Thursday, June 5, 2025

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हरिवंश जी के नेतृत्व में नयी विधा में काम



जनसत्ता में कार्य सुचारु रूप से चल रहा था। मैं अपने स्तंभों का काम देखने के साथ साथ सबरंग में जो लिखने को संपादक अरविंद चतुर्वेद कहते वह लिखता जाता था। इस भाग्य से पूरी तरह से अनभिज्ञ कि जल्द ही मेरी जिंदगी एक नया मोड़ लेनेवाली है। मोड़ जो ना सिर्फ जीवन की दशा दिशा बदल देगा अपितु ऐसी विधा से जोड देगा जो मेरे लिए सर्वथा नयी है। जिससे मैं परिचित जरूर था लेकिन उसके तकनीकी पक्ष से अनजान था।

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एक दिन की बात है हम लोग कोलकाता के बी के पाल एवेन्यू स्थित कार्यालय में काम कर रहे थे तभी हरिवंश जी पधारे। हरिवंश जी और मैं आपस में परिचित थे। हम लोगों ने कोलकाता के प्रृतिष्ठित बांगला दैनिक के आनंद प्रकाशन के बैनर तले निकलने वाले हिंदी साप्ताहिक रविवार में साथ साथ काम कर चुके थे। उनसे उनसे मै भलीभांति परिचित था। थोड़ी देर आपस में कुशल क्षेम का विनिमय हुआ उसके बाद हरिवंश जी अपने मूल उद्देश्य पर जिसलिए वे मुझसे मिलने आये थे।

वे सीधे अपने उस उद्देश्य पर आये जो उन्हें मुझ तक खींच लाया था। उन्होंने कहा-हम बहुत जल्द अपने हिंदी दैनिक प्रभात खबर की वेबसाइट लांच कर रहे हैं जिसके लिए हमें कांटेंट चीफ चाहिए। बहुत खोजा पर अंतत; हमारी नजर आप पर ही आकर टिकी। आपको हमारे संस्थान से कांटेट चीफ के रूप में जुड़ना है।

 सच बोलता हूं कोई और होता तो मैं सीधे मना कर देता। भला इंडियन एक्सप्रेस जेसे प्रतिष्ठित संस्थान की परमानेंट नौकरी छोड़ कर कोई क्यों जाने लगा लेकिन मैं हरिवंश जी को ना नहीं कह सका। उनसे मैं बहुत प्रभावित था उनकी नयी नयी विविध विषयों की पुस्तकें पढ़ने की आदत से। हम जब आनंद बाजार प्रकाशन के रविवार में साथ काम कर रहे थे तो वहां पुस्तक बेचनेवाला व्यक्ति आता था हरिवंश जी उसके स्थायी ग्राहक थे। कोई नयी पुस्तक आती तो हरिवंश जी अवश्य लेते थे। एक बार की बात है मैं और रविवार में हमारे साथ अनिल कुमार  आनंद बाजार पत्रिका भवन की छत पर बनी कैंटीन में चाय पीने गये थे। लौट कर आये तो देखा हरिवंश जी मेरे लिए स्वामी विवेकानंद द्वारा रचित राजयोग का पूरा सेट लिये बैठे थे-। उन्होंने मुझसे कहा-मैंने यह आपके लिए लिया है।यह आपके काम की चीज है।

 मैंने इनका धन्यवाद किया और कहा- रुपया मैं कल दे दूंगा।

वे बोले जब सुविधा हो दे दीजिएगा।

               हरिवंश जी

वैसे हरिवंश जी के लिए ना कह पाना मेरे वश की बात नहीं थी। मैंने ज्यादा सोच विचार किये बिना हां कर दी हालांकि एक परमानेंट नौकरी छोड़ कर मैं बड़ी रिस्क ले रहा था।

हरिवंश जी ने एक जगह बतायी जहां मेरा इंटरव्यू होना था। तय समय पर मैं इंटरव्यू वाली जगह पहुंचा तो वहां इंटरव्यूर भी परिचित निकले। मेरा इंटरव्यू जिन आलोक कुमार ने लिया वे उस वक्त आनंद बाजार ग्रुप में विज्ञापन मैनेजर थे जब मैं आनंद बाजार प्रकाशन की साप्ताहिक हिंदी पत्रिका रविवार में उप संपादक था।

मेरा इंटरव्यू पूरा हुआ। मेरा चयन प्रभात खबर की वेबसाइट www.prabhatkhabar.com में कांटेंट चीफ के रूप में हो गया।इस तरह हरिवंश जी के नेतृत्व में नयी विधा नये परिवेश में नयी शुरुआत।

दूसरे दिन ही नयी जगह में काम ज्वाइन कर लिया। कार्यालय कोलकाता के फियर्स लेन में था। वेबसाइट के  स्टाफ के लिए टाप फ्लोर  में जगह दी गयी थी। निचले तल्ले में प्रभात खबर दैनिक  का स्टाफ बैठता था। मेरे साथ सहयोगी के रूप में वहां वाई एन झा जी मिले। कुछ दिन में ही मैं उनकी योग्यता का कायल हो गया। हमें दो ग्राफिक आर्टिस्ट भी मिले थे।

 वेबसाइट एक तरह से पूरी तरह खाली थी। बस उसका होमपेज बना था और जो विषय उसमें होने थे उनके लिंक होम पेज में थे। होमपेज में जितने लिंक थे उनमें करेंट न्यूज के अतिरिक्त करेंट अफेयर,घटना,दुर्घटना, तीज, त्योहार,धर्म संस्कृति और विविध स्तंभ। हमारे लिए यह शून्य से शुरू करने जैसी स्थिति थी। चुनौती बड़ी थी लेकिन पहले दिन से मैं और झा जी काम में जुगये। (क्रमश:)

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