Saturday, September 28, 2013

कांग्रेस के नये युवा तुर्क राहुल गांधी


 अपनी ही सरकार के अध्यादेश की कर दी ऐसी की तैसी
राजेश त्रिपाठी
राहुल गांधी के बदले तेवर और कांग्रेस के इस नये युवा तुर्क या कहें कि यंग्री यंगमैन की कहानी पर जायें उससे पहले एक दृश्य पर नजर डाल लेते हैं। दिन शुक्रवार, स्थान- नयी दिल्ली का प्रेस क्लब। कार्यक्रम- कांग्रेस का प्रेस से मिलिए। कांग्रेस के संचार प्रमुख अजय माकन संवाददाताओं को उस अध्यादेश की विशेषताएं बता रहे थे जो दागदार या अपराधी सांसदों को बचाने के लिए लाया गया है। वे इस अध्य़ादेश का समर्थन और बचाव अपनी पूरी ताकत और बुद्धि से करते हैं। इस बीच अजय माकन के सचिव एक कागज का पुरजा प्रेस क्लब के महासचिव को थमाते हैं कि वे माकन साहब को दे दें। महासचिव व पुरजा माकन के सामने रख देते हैं। माकन उसकी ओर ध्यान दिये बगैर संवाददातों से बातें करते रहते हैं तो उनका सचिव प्रेस क्लब के महासचिव से कहता है कि वह संदेश बहुत जरूरी है, माकन साहब को याद दिला दें। महासचिव माकन साहब का ध्यान उस पुरजे की और आकृष्ट करते हैं जिसे देखते ही माकन साहब पत्रकारों से कहते हैं कि वे उन्हें माफ करें, उनका एक जरूरी फोन आया है। वे फोन अटेंड करते हैं।
इसके कुछ क्षणों बाद ही वहां का परिदृश्य बदल जाता है। राहुल गांधी धड़धड़ाते हुए आते हैं और उसके बाद सारा परिदृश्य और सारा संवाद ही बदल जाता है। अगर यह कहें कि राहुल ने अपने बयान से जोरदार धमका किया, लोग उनकी जो सीधे-सादे और नासमझ राजनेता की छवि बनाने की कोशिश कर रहे हैं उससे उलट वे धाकड़ और निर्भय दिखे। कांग्रेस के इस यंग्री यंगमैन ने जो बयान दिया उससे खुद उनकी ही सरकार की जम कर किरकिरी हुई। थोड़ी देर पहले माकन जिस अध्यादेश की विशेषताएं गिना रहे थे, राहुल ने उसी की धज्जिया उड़ाते हुए कहा कि मेरा तो यही विचार है कि यह अध्यादेश बकवास है और इसे फाड़ कर फेंक देना चाहिए। राहुल ये बोल बोल तो गये लेकिन उन्हें पता नहीं कि इसका दूरगामी असर तो बाद में पता चलेगा तत्काल असर यह हुआ है कि उनके इस बयान से इस समय विदेश यात्रा पर गये प्रधानमंत्री नाराज हो गये हैं। उन्होंने इस बारे में सोनिया गांधी को फोन किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि राहुल जी के विचार उन्हें पता चले, इस बारे में उनकी चिट्ठी मिलने की बात भी वे कहते हैं और साथ ही यह भी कि यह अध्यादेश मंत्रिमंडल ने संसद में पास कर भेजा था। अब इसका जो कुछ भी होना है वह मंत्रिमंडल के बीच ही तय होगा। राहुल जब यह बयान दे रहे थे, उनका चेहरा गुस्से से तमतमाया हुआ था, चेहरे से चिरपरिचित स्मित मुसकान गायब थी। ऐसे में लगता नही कि उनका यह बयान बनावटी था।
     अखिर राहुल गांधी ने अपनी ही पार्टी की सरकार के खिलाफ बयान क्यों दिया। जब यह अध्यादेश मंत्रिमंडल या संसद में पेश किया जा रहा था, वे विरोध उस समय भी कर सकते थे। उस समय तो यह आजादी कि कोई भी सांसद अपनी आपत्ति या सुझाव इस बारे में दे सकता था। तो क्या राहुल इस अध्यादेश के खिलाफ देश की जनता और प्रमुख विपक्षी दल भाजपा में बढ़ते आक्रोश से परेशान हो गये हैं। क्या उन्हें पिछले कुछ अरसे से घोटालों और तमाम तरह के भ्रष्टाचारों के आरोप से घिरी अपनी सरकार से परेशानी हो रही है या वे सुप्रीम कोर्ट के राजनीतिक परिष्कार के लिए किये गये फैसले के पक्षधर हैं।
राहुल गांधी ने अपनी ही सरकार के अध्यादेश की खिलाफत कर एक तीर से दो शिकार किये हैं। इससे एक तरफ तो उन्होंने अपनी यह छवि बनायी कि सरकार चाहे जो कुछ चाहे, वे भ्रष्टाचारी सांसदों या नेताओं के पक्ष में नहीं हैं। वे नहीं चाहते कि अपराधी करार दिये जाने, सजा सुनाये जाने के बाद भी सांसद सत्ता सुख भोगते हैं। दूसरे यह कि उन्होंने जाहिर कर दिया है कि वे सरकार की सारी नीतियों, अध्यादेशों को अब आंख मूंद कर बरदाश्त करने के पक्ष में नहीं, उन्हें जहां एतराज होगा, वे अपनी आपत्ति दर्ज करने, खुद को एक परिवक्व राजनेता जताने में चूकेंगे नहीं। राहुल ने देखा कि उनकी सरकार के घोटालों और भ्रष्टाचार के चलते विपक्ष को सत्ता पक्ष पर हमले करने के ढेर सारे मौके मिले। इतने कि संसद सत्र का अधिकांश वक्त तो उनकी सरकार के घोटालों और भ्रष्टाचार की चर्चा की बलि चढ़ गये और कई विधायी कार्यों में बाधा आयी। इससे आम जनता में सरकार की छवि के बारे में भी गलत संदेश पहुंचा। जो अध्यादेश दागी या अपराधी छवि वाले नेताओं को बचाने के लिए ढाल की तरह लाया गया है, पूरे देश में उसके खिलाफ भी काफी रोष था। विपक्ष तो इसके खिलाफ राष्ट्रपति तक से मिल आया था और राष्ट्रपति से कहा था कि अध्यादेश को मंजूरी देने से पहले वे गंभीरता से सोचें। जनरोष कर भांप कर ही राहुल ने अपनी सरकार के खिलाफ खुलेआम बोलने की ताकत की है। उन्होंने मौका भी खूब चुना। जब उनकी ही पार्टी के एक नेता अजय माकन अध्यादेश की खूबियां बता रहे थे, उन्होंने अपने बयान के गोले दाग कर सबको सन्न कर दिया।
राहुल गांधी जैसे शांत प्रकृति के एक शर्मीले से युवक से किसी ने इस तरह के धमाके की उम्मीद नहीं की थी। विपक्ष या राहुल के विरोधी कुछ भी कहें, राहुल ने अपनी ही सरकार के खिलाफ निडर होकर मुंह खोला और अचानक चर्चा में आ गये। उन लोगों को भी इस यंग्री यंगमैन से उम्मीद होने लगी है जो उन्हें भी दूसरों की लीक में चलनेवाला समझ रहे थे। लगता है अब राहुल यह साबित करने में जुट गये हैं कि खामश रहने वाले नहीं। अब वे अपने असली तेवर में आ गये हैं और लगता है कि इसका असर न सिर्फ पार्टी की कार्यप्रणाली पर बल्कि सरकार पर भी पड़ेगा। संभव है मनमोहन सिंह के भारत वापस लौटने पर नया कुछ हो। यह तय है कि अपने बयान से राहुल ने अपने समर्थकों और विरोधियों को यह जता दिया है कि वे उन्हें हलके में न लें। वक्त आने पर वे दिखा देंगे कि सचमुच उनका सामर्थ्य क्या और कितना है। 2014 में लोकसभा के आम चुनाव हैं। उसके पहले राहुल गांधी अपनी छवि पूरी तरह से सुधारने और सरकार के किसी भी जनविरोधी कार्य से खुद को अलग करने की पूरी कोशिश करेंगे। यह काम उन्होंने अपने ताया बयान से शुरू कर दिया है। अब इससे सरकार पर चाहे जो असर पड़े यह अवश्य है कि इससे जनता में यह संदेश गया कि राहुल सरकार के गलत निर्णय के खिलाफ हैं। अगर राहुल गांधी को भावी प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करना है तो यह जरूरी है कि उनको उसी तरह ढाला और प्रदर्शित किया जाये। देश की जनता आज स्वच्छ छवि वाले, जनहित में निर्णय लेने वाले देश हितैषी व्यक्ति को ही सत्ता के सर्वोच्च पद के लिए पसंद करती है। अब अगर राहुल को उसकी नजरों में खरा उतरना है तो उन्हें किसी भी जनविरोधी नीति या अध्यादेश के खिलाफी आक्रामक ऱुख अख्तियार करना पड़ेगा भले ही यह उनकी सरकार का ही क्यों न हो। इससे जनता में  सीधा संदेश यह जायेगा कि  राहुल तो साफ सुथरे हैं सरकार की गलत नीतियों के साथ नहीं हैं। ऐसे में उनसे निराश होने की जरूरत नहीं। इससे विरोधी उनकी जो छवि बना रहे हैं, उसमें भी उन्हें सफलता नहीं मिलेगी।
राहुल वैसे भी राजनीति में नयी क्रांति लाने के पक्षधर हैं। इसका आभास उन्होंने अपनी युवा ब्रिगेड बना कर दे दिया था। कुछ लोग राहुल के इस बयान को पहले से सुनियोजित बता रहे हैं। उनका कहना है कि अगर ऐसा नहीं होता तो उनकी युवा ब्रिगेड के एक सदस्य उनसे पहले इस अध्यादेश का विरोध नहीं करते। जो भी हो इससे प्रधानमंत्री की परेशानी बढ़नेवाली है। उन्हें इस अध्यादेश पर पुनर्विचार करना पड़ेगा। संकेत तो यही मिल रहे हैं कि शायद सरकार अब इस अध्यादेश को वापस ले लेगी। राहुल गांधी ने अध्यादेश के बारे में वही कहा दो इस बारे में देश की जनता की आवाज है। अब यह सभी कांग्रेसियों की आवाज बन गयी है। वे कह रहे हैं कि राहुल जी ने जो कहा सब उनके साथ हैं। उनके बयान को व्यापक अर्थों में लिया जाये तो यह एक तरह से उनकी अपनी ही पार्टी के सम्मान पर ठेस है। इस बयान की पार्श्वप्रतिक्रिया क्या होती है यह तो वक्त बतायेगा लेकिन अभी तो राहुल कांग्रेस के यंग्री यंगमैन, हीरो बन गये हैं। 


3 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - रविवार - 29/09/2013 को
    क्या बदला?
    - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः25
    पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra


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  2. कांग्रेस के नये युवा तुर्क राहुल गांधी


    राहुल गांधी के बदले तेवर और कांग्रेस के इस नये युवा तुर्क या कहें कि यंग्री यंगमैन की कहानी पर जायें उससे पहले एक दृश्य पर नजर डाल ब्लॉग, कलम का सिपाही

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