मानी गयी राहुल की बात, वापस हुआ अध्यादेश, विधेयक
भी होगा वापस
राजेश त्रिपाठी
- प्रमुख विपक्षी दल भाजपा इसे राहुल की जीत, सरकार की हार के रूप में देख रहा है।
- मनमोहन सिंह ने नाराजगी के बावजूद दिखायी समझदारी, नहीं दिया त्यागपत्र।
- फिलहाल संप्रग सरकार की उलझन से रक्षा लेकिन उठे कई सवाल।
- लोगों में सुगबुगाहट क्या वाकई केंद्र ने दो समांतर सत्ताएं काम कर रही हैं।
- फिलहाल तो राहुल ही कांग्रेस के हीरो हैं, उन्होंने अपने कदम से दिखाया उनमें जनभावनओं की कद्र है।
- यह भविष्य बतायेगा कि उनका यह कदम अगले साल आम चुनावों में कांग्रेस को कितना लाभ पहुंचायेगा।
- यह जरूर है कि उनके कदम से न सिर्फ कैबिनेट की किरकिरी हुई अपितु प्रधानमंत्री का भी निरादर हुआ है।
- लोग इसे गलत तरीके से लिया गया सही निर्णय मानते हैं।
आखिरकार वहीं हुआ जिसकी उम्मीद
थी। 2 अक्टूबर की शाम कैबिनेच की बैठक में जनप्रतिनिधित्व कानून में संशोधन से
संबंधित अध्यादेश को वापस लेने का निर्णय लिया गया। यह भी तय किया गया कि इससे
संबंधित जो विधेयक संसद की स्टैंडिंग कमिटी के पास लंबित है उसे भी वापस लिया जायेगा। वह विधेयक संसद की संपत्ति
है इसलिए उसे उसकी सहमति से ही वापस लिया जा सकता है। 2 अक्टूबर की शाम दिल्ली में
जब सूचना प्रसारण मंत्री कैबिनेट की बैठक के बाद उसके निर्णय से संवाददाताओं को
अवगत करा रहे थे, वे असहज से लग रहे थे। उन्होंने कहा कि यह निर्णय सर्व सम्मति से
लिया गया लेकिन सच यह है कि एनसीपी और नेशनल काफ्रेंस ने इसका विरोध किया है। उनका
कहना है कि जिस तरह से अध्यादेश को वापस लिया गया, वह सही नहीं है।
27 सितंबर
को कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल ने नयी दिल्ली के प्रेस क्लब में अपनी ही सरकार के
अध्यादेश को बकबास बता कर उसे फाड़ कर फेंक देने की बात कह कर एक धमाका किया था। राहुल
गांधी ने इसके लिए जो मंच चुना था वहां उनकी ही पार्टी के सूचना प्रभारी अजय माकन
उसी अध्यादेश की खूबियां बता रहे थे। राहुल ने अपनी घोषणा से अजय माकन को बगलें
झांकने और झेंपने पर मजबूर कर दिया। गलत जगह और गलत तरीके से किये गये इस धमाके से
उन्होंने न सिर्फ कांग्रेस पार्टी अपितु संप्रग सरकार को भी सवालों के कठघरे में
खड़ा कर दिया। जो बात लोग अरसे से कहते आ रहे थे कि दिल्ली में सत्ता के दो समांतर
केंद्र काम कर रहे हैं, उन्हें भी इस तरह की घोषणा से बल मिला। राहुल का यह बयान
इसलिए भी गलत समय पर आया बयान कहा गया क्योंकि उस वक्त हमारे प्रधानमंत्री अमरीकी
राष्ट्रपति बराक ओबामा और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से बात करनेवाले
थे।
जाहिर है
मीडिया के माध्यम से पल भर में राहुल की बात विश्व भर में फैल गयी। इससे मनमोहन
सिंह का नाराज होना स्वाभाविक था। इसके बाद राहलु ने प्रधानमंत्री के ई-मेल भेज कर
अपनी सफाई दी। उन्होंने कहा कि उन्होंने तो इस अध्यादेश को लेकर देश में व्याप्त
जन भावनाओं को ही शब्द दिये हैं। वे समझते हैं कि इस अध्यादेश का साथ देकर
कांग्रेस जन भावनाओं की उपेक्षा करेगी और यह दिखेगा की वह भ्रष्टाचार के साथ खड़ी
है। इस घटनाक्रम के बाद विपक्ष ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को उकसाने की खूब
कोशिश की कि उनमें तनिक भी सम्मान बचा हो तो वे त्यागपत्र दे दें। प्रमुख विपक्षी
दल भाजपा के तो इस घटना से मन में लड्डू फूटने लगे कि अब गयी संप्रग सरकार लेकिन
मनमोहन सिंह ने समझदारी दिखाई और नाराजगी के बावजूद त्यागपत्र नहीं दिया। उन्होंने
साफ कर दिया कि वे त्यागपत्र नहीं देंगे हां इस बारे में राहुल गांधी से बात अवश्य
करेंगे। स्वदेश लौट कर उन्होंने वही किया। पहले वे राहुल गांधी से मिले। कहते हैं कि
2 अक्तूबर को प्रधानमंत्री निवास में हुई इस बैठक में 25 मिनट में 20 मिनट तक
राहुल ही बोलते रहे। उसके बाद दोपहर को कांग्रेस की कोर कमिटी की बैठक
प्रधानमंत्री का साथ हुई और फिर अध्यादेश को वापस लेने का निर्णय लिया गया। यह भी
तय किया गया कि इससे संबंधित वह विधेयक भी वापस ले लिया जायेगी जो संसद में लबित
है।
अब इस
घटना के बाद तरह –तरह
की बातें हो रही हैं। भाजपा कह रही है कि यह सरकार के ऊपर परिवारवाद की जीत है।
भाजाप कह रही है कि इस अध्यादेश को वापस लिये जाने का श्रेय भाजपा को जाता है
क्योंकि सबसे पहले वही राष्ट्रपति के पास इसका विरोध करने गयी थी। यह सच है कि
राष्ट्रपति ने भी इस अध्यादेश के बारे में कुछ स्पष्टीकरण की मांग की थी। संप्रग
के जो मंत्री इसे बनाने में लगे ते उनसे उन्होंने सफाई मांगी थी। उस वक्त भी लगा
था कि यह अध्यादेश टिकेगा नहीं। वैसे य़ह भी सवाल उठे थे कि जब इसी विषय पर संसद
में एक विधेयक विचाराधीन है तो फिर आनन-फानन अध्यादेश लाने की क्या जरूरत है? क्या
कांग्रेस के या उसकी सहयोगी पार्टियों के उन नेताओं को बचाने के लिए इसे लाया जा
रहा है जिन पर सजा की तलवार लटक रही है।
यह सच है
कि राहुल गांधी ने भले ही गलत तरीके से अपनी बात कह कर अपनी सरकार और पार्टी की
किरकिरी करायी हो लेकिन यह भी उतना ही सच है कि इसके बाद वे एक हीरो के रूप में
उभरे हैं। कल तक खामोश रहने वाले कांग्रेस के इस यंग्री यंगमैन ने यह जता दिया है
कि वह जनभावनाओं की कद्र करते हैं और इन भावनाओं के खिलाफ लिय़े गये किसी निर्णय़ को
वे बरदास्त नहीं करेंगे। अपनी जगह वे सही हैं लेकिन उनका तरीका गलत था। लोग तो यह
भी आरोप लगा रहे हैं कि यह सब सुनियोजित और पूर्व निर्धारित है, राहुल की छवि
चमकाने के लिए किया गया प्रयास है। जो भी हो राहुल पार्टी और सरकार में अपनी
अहमियत साबित करने में सफल रहे हैं। यह जरूर है कि सवाल उन पर भी उठे कि जब संसद
में इस अध्यादेश पर चर्चा चल रही थी उस वक्त वे खामोश क्यों रहे लेकिन आज का सच यह
है कि राहुल दहाडें और खूब दहाडे। विपक्ष कुछ भी बोले लेकिन राहुल यह साबित करने
में कामयाब हुए कि उन्हें जनभावनाओं की ज्यादा फिक्र है। देखना यह है कि यह कदम
आगामी आम चुनावों में कांग्रेस पार्टी को कितना फायदा पहुंचाता है। इस घटना से
सरकार और कांग्रेस के बीच के संबंधों में
भविष्य में क्या मोड़ आयेगा यह भी वक्त ही बतायेगा लेकिन यह जरूर है कि फिलहाल राहुल
गांधी का कद जरुर बढ़ा है। प्रधानमंत्री पद के भाजपा के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के
बढ़ते प्रभाव और प्रचार के चलते राहुल कहीं पीछे पड़ रहे थे अब इस घटना से वे भी
चर्चा में आ गये हैं। वे जनभावनाओं के साथ
खड़े हैं यह बात लोगों में जाहिर हो गयी लेकिन साथ ही यह भी उजागर हो गया कि अभी
तक उनमें राजनीतिक परिपक्वता नहीं आयी। शायद इस बारे में उनका सही ढंग से
प्रशिक्षण भी नहीं हुआ कि कब और किस तरह से अपनी बात कहना उचित होगा। जो भी
राजनीतिक खामोशी में राहुल गांधी ने एक जोरदार आवाज उछाल दी है जिसकी गूंज आने
वाले काफी समय तक रहने की उम्मीद है।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - शुक्रवार - 04/10/2013 को
ReplyDeleteकण कण में बसी है माँ
- हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः29 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra