पैसा बोलता है
राजेश त्रिपाठी
बर्तन मांजती सुखिया
ने रेखा से कहा- Þमालकिन बच्चा किसना के लिए चिंटू बाबा का कोई पुराना कपड़ा मिल
जाता, तो बड़ी किरपा होती। दीवारी के लिए उसे नये कपड़े नहीं ले सकती।ß
Þअच्छा देखूंगी।ß
रेखा के इस आश्वासन
पर पास बैठी सास ने भौंहें तान लीं। सुखिया के जाने के बाद बहू को डांटा-Þखबरदार जो चिंटू का
कोई कपड़ा उसे दिया।ß
रेखा चौंकी,
Þक्यों मां?
कितने ऐसे कपड़े पड़े
हैं चिंटू के जो उसे अब छोटे पड़ रहे हैं। गरीब है खरीद नहीं सकती। पेट ही भरने का
पैसा नहीं जुटता तो कपड़े खरीदने के लिए कहां पायेगी?ß
सास ने कहा,
-Þमैं क्यों मना कर रही
हूं, जानती हो?ß
Þनहीं मां।ß
Þउसकी सास की सूरत डायन
जैसी है। चिंटू के कपड़े पाकर पता नहीं वह क्या टोटका कर बैठे? ना, ना, भूल कर भी उसे न देना।ß
़रेखा ने फिर कुछ नहीं
कहा। वह नये विचारों की थी। डायन-वायन, टोटका-वटका नहीं मानती थी। एक दिन उसने चिंटू
के नये दिखने वाले चार जोड़ी कपड़े चुुपके से सुखिया को देकर कहा,-Þछिपा कर ले जा। मां
जी देख न पायें।ß
सुखिया कुल चार घरों
में बर्तन मांजने और झाडू-पोंछा का काम करती थी। ऐसा काम करनेवालियों को बंगाल में
झी कहते हैं। सब मिला कर वह ठाई हजार कमा लेती थी।
पति सरजू ईंठ भÎा में मजदूरी करता
और जो पाता उसे दारू में उड़ा देता था। घर में फूटी कौड़ी तक न देता। चार जनों के उस
परिवार के सभी आधा पेट खा पाते। सुखिया ने कई बार पति से प्रार्थना की, मेहरबानी कर के दारू
छोड़ दीजिए। मेरी कमाई से किसी को भरपेट खाना नहीं मिलता।
यह सुनते ही सरजू बिगड़
जाता-Þजब देखो तब तू मेरी दारू के पीछे पड़ी रहती है, जैसे वह तेरी सौतन
हो। आगे कुछ बोलेगी, तो अच्छा न होगा।ß
सुखिया और कुछ बोलती,
तो पति की लातें खा
जाती। वह जानती थी कि उसका पति सास की लापरवाही से शराबी बना है। शादी के पहले वह दारू
को हाथ तक नहीं लगाता था। जब वह पहले दिन पीकर आया , तो वह चौंक उठी। उसने
सास से कहा- Þमां जी! आपका बेटा दारू पीकर आया है। मना कीजिए। यह बरबादी के
लक्षण हैं।ß
तब सास ने मुस्करा
कर कहा-Þतुम भी बहू। छोटी सी बात का बतंगड़ बना रही हो। दोस्तों की संगत में थोड़ी सी पी ली होगी। रोज-रोज थोड़ी पियेगा?ß
और जब वह रोज-रोज पीकर
आने लगा और घर में एक पैसा भी न देता, कुछ मांगने पर मारने को आमादा हो जाता,
तब सुखिया को मजबूरन
दूसरो के बर्तन मांजना पड़ा। फिर उसने पति के खिलाफ सास से कुछ नहीं कहा। क्योंकि कुछ
कहने पर उलटा चार बातें सुनने को मिलतीं। उसकी
सास दो चार दिन भूखी रहती तब उसे पता चलता कि उसके बेटे को दारू पीने से न रोकने की
वजह से उसे भूखी सोना पड़ रहा है।
रेखा बहुत दयालु थी।
वह सुखिया को हर माह दो सौ रुपये अधिक देती थी। वह प्राय: कहती- Þसुखिया, तेरा नाम तो दुखिया
होना चाहिए था। सुखिया किसने रखा।ß
दीवाली के दो दिन पहले
रेखा ने उसके बच्चे के लिए कुछ फुलझडि़यां, पटाखे और मिठाई दी
थी।
तब सुखिया ने खुश होकर
कहा था-Þभगवान आपका भला करे मालकिन। आप जैसा बड़ा दिल सबको दे। आपने चिंटू बाबा ते जो कपड़े
हमारे बचवा के लिए दिये थे, वे उसके ठीक नाप के
थे। उसे बहुत पसंद आये। कहता था,-मां! मेरे लिए ऐसे ही कपड़े खरीदा करो। मालकिन वह उन कपड़ों
को नये समझ रहा है।ß
रेखा ने मुस्करा कर
कहा-Þचलो अच्छा है। मैं भी यही चाहती थी। दूसरे के उतारे कपड़े सुन कर वह दुखी हो जाता।ß
रेखा जब अखबार पढ़
कर सुखिया को सुनाती कि कहां पर कितने लोग जहरीली शराब पीकर मर गये, तो वह कांप उठती और
रोकर कहती-Þमालकिन हमारा खसम भी चोरी से उतारी जा रही दारू पीता है। पता नहीं, कब क्या हो जाये। सास
जी से कहती हूं तो वे साफ-साफ कह देती हैं- अब वह दारू छोड़ने वाला नहीं। ज्यादा मना
करेंगे तो गुस्से में हम सब को छोड़ कर कहीं चला जायेगा। कभी-कभी मन करता है मालकिन किसना को लेकर हमेशा के लिए मायके चली जाऊं।
मगर वहां भी गुजारी नहीं होगा। अम्मा, बापू बूढ़े हो गये हैं। एक बड़ा भाई है। वह
अपनी घरवाली के इशारे पर चलता है। पांच दिन के लिए जाती हूं तो तीसरे दिन ही भाभी कहती
हैं- Þकब लौट रही हो ससुराल? सुन कर बापू कुछ नहीं बोलत,े मजबूर थे। बेटे की
कमाई खा रहे थे। बेचारी अम्मा मन मसोस कर रह जातीं।ß
रेखा उसे सांत्वना
देती-Þमैं तुम्हारी परेशानी समझ रही हूं सुखिया। तुम्हारे लिए जितना कर सकती थी,
कर रही हूं। हम कोई
लखपती नहीं हैं। वे एक दफ्तर में क्लर्क हैं। थोड़ा पैसा और मिलता , तो कहती , जिस चीज की जरूरत ,
मांग कर ले जाना।ß
Þयह आपकी मेहरबानी है
मालकिन। मैं जिन पैसे वालों के यहां काम करती हूं, वे मुझसे बात करना
पसंद नहीं करते। पैसा बढ़ाने को कहती हूं , तो जवाब मिलता है,
आजकल बर्तन साफ नहीं
हो रहे। झाड़ू-पोंछा भी ठीक से नहीं लगता। ऐेसे कब तक चलेगा। मालकिन वे शादी ब्याह
में बची मिठाई कूडादान में फिंकवा देते हैं, लेकिन नौकरों को रŸाी भर नहीं देते।ß
रेखा ने कहा-Þ
जानती हो क्यों ?
कुछ पैसे वाले अपने
नौकर को यह सोच कर अच्छी चीज नहीं देते, कि अगर उसे उसका स्वाद मिल गया, तो चोरी कर के खाना
शुरू कर देगा।ß
सुखिया ने माथा ठोंक
कर कहा, - Þहे भगवान! कैसे -कैसे लोग हैं इस दुनिया में।ß
रेखा ने कहा-Þऔर भी सुन। एक दिन
मैं एक करोड़पति परिवार में किसी पूजा में गयी थी। वहां मैंने कुछ दूर खड़े एक बारह
साल के लड़के को अपने पिता से कहते सुना-डैडी! आप रामू को कम पैसे क्यों देते हैं।
उनसे ज्यादा तो मुझे पाकेट खर्च मिलता है। उतने पैसे से तो उसका परिवार भूखा रह जाता
होगा। उसने इतना तो दीजिए, जिससे उसका परिवार भरपेट खा पी सके। जानती हो सुखिया,
उसके डैडी ने क्या
जवाब दिया?ß
Þक्या कहा मालिकन?ß
Þबोले, हम रामू को इतनी तनख्वाह
देते हैं, जिससे वह जिंदा रहे, मरे नहीं और तुम्हारी होने वाली संतान की सेवा के लिए एक अदद
गुलाम पैदा किये जाये। ज्यादा पैसे देंगे, तो वह अपने बच्चे को पढ़ायेगा जिससे वह बड़ा
होने पर किसी दफ्तर में बाबू हो जायेगा। तब तुम्हारी संतान की सेवा के लिए गुलाम कहां
से आयेगा।ß
सुन कर सुखिया अवाक
रह गयी।
रेखा ने फिर कहा-Þजानती हो सुखिया! यह
उस बच्चे का डैडी नहीं पैसा बोल रहा था।ß
Þलेकिन पांचों उंगली
बराबर नहीं होतीं मालकिन। पैसे वालों में आप जैसे भी लोग होंगे।ß
Þ हा ंहैं, जो खानदानी रईस होते
हैं। बेईमानी से बने नहीं। उन्हीं का पैसा बोला करता है, वे नहीं। लगता है तुम
उन्हीं के यहां काम करती हो।ß
पता नहीं मालकिन।
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