कहते हैं मध्यप्रदेश के शिव मंदिर में प्रतिदिन करते है पूजा
राजेश त्रिपाठी
इस पृथ्वी पर एक ऐसे व्यक्ति हैं जो एक श्राप के चलते हजारों वर्ष से अपनी मुक्ता के लिए भटक रहे हैं। हम चर्चा कर रहे हैं गुरु द्रोणआचार्य के पुत्र अश्वत्थामा की जिन्हें द्रौपदी के पुत्रों की हत्या के अपराध में कृष्ण ने यह श्राप दिया था कि वे हजारों वर्ष तक अपनी मुक्ति के लिए तरसते, तड़पते रहेंगॆ। कहते हैं कि उनके इसी श्राप के चलते अश्वत्थामा आज भी जीवित हैं और उन्हें कई जगह भटकते देखा गया है। उन्हें देखनेवालों का कहना है कि उसके मस्तक पर एक घाव देखा गया था। जब कृष्ण को यह पता चला था कि अश्वत्थामा ने द्रौपदी के पुत्रों की हत्या कर दी है तो उन्होंने उनके केश काट दिये थे और उनके मस्तक की मणि निकाल ली थीं। कहते हैं कि उनके माथे का वह घाव अब तक नहीं भरा है।
कहते
हैं कि अश्वत्थामा मध्यप्रदेश के एक किले में स्थिति शिवमंदिर में रोज पूजा करने
आते हैं। उन्हें मध्यप्रदेश के ही जबलपुर शहर के पास ग्वारीघाट में नर्मदा तटी के
तट पर भी कई बार लोगों ने देखा है। इसके अतिरिक्त असीरगढ़ जिले में भी उनको देखा
गया है।
अश्वत्थामा के बारे में इतनी बात जानने के बाद
आपके मन में यह सवाल आ रहा होगा कि अश्वत्थामा का नाम कैसे पड़ा। इसकी एक बड़ी
रोचक कथा है। कहते हैं कि जब अश्वत्थामा का जन्म हुआ उस वक्त उनके मुख से अश्व अर्थात
घोड़े जैसी आवाज निकली थी। इसके साथ ही आकाशवाणी हुई कि यह बालक अश्वत्थामा के नाम
से जाना जायेगा। अश्वत्थामा के जन्म की एक कथा यह भी है कि महाभारत युद्ध से पूर्व गुरु द्रोणाचार्य अनेक
स्थानों में भ्रमण करते हुए हिमालय के ऋषिकेश प्हुंचे। वहाँ तमसा नदी के किनारे
एक दिव्य गुफा में टपकेश्वर नामक स्वयंभू
शिवलिंग है। यह स्थान देहरादून के पास है। यहाँ गुरु द्रोणाचार्य और उनकी पत्नी
माता कृपि ने शिव की तपस्या की। इनकी तपस्या से खुश होकर भगवान शिव ने इन्हे पुत्र
प्राप्ति का वरदान दिया।
कुछ समय बाद माता कृपि ने एक सुन्दर तेजस्वी
बाल़क को जन्म दिया। जन्म से ही अश्वत्थामा के मस्तक में एक अमूल्य मणि विद्यमान
थी। जो दैत्य, दानव, शस्त्र, व्याधि, देवता, नाग आदि से उसकी रक्षा करती थी।
भगवान शिव के कई अवतारों में से गुरु
द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा को भी एक अवतार माना जाता है। कौरव व पांडवों के
युद्ध में अश्वत्थामा ने कौरवों का साथ
दिया था।
ऐसा
दृष्टांत मिलता है कि महाभारत युद्ध के दौरान अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र का
प्रयोग कर दिया था जिससे लाखों लोग मारे गये थे। इसके बाद कृष्ण उनसे क्रोधित हो
गए थे और उन्होंने अश्वत्थामा को शाप दिया था कि 'तू इन हत्याओं का पाप ढोते हुए 3,000
वर्ष तक निर्जन वनों में भटकेगा। तेरे शरीर से सदैव रक्त की दुर्गंध निकलती रहेगी।
तू अनेक रोगों से पीड़ित रहेगा।'
कहा जाता है कि अश्वत्थामा इस शाप के बाद
रेगिस्तानी क्षेत्र में चला गया था और वहां रहने लगा था। कुछ लोगों की मान्यता है
कि अश्वत्थामा को कलियुग के अंत तक भटकते रहने का शाप मिला था।
ऐसी
मान्यता है कि महाभारत युद्ध के बाद जो 18 योद्धा जीवित बचे थे उसमें एक अश्वत्थामा
भी थे। अश्वत्थामा को युद्ध में कोई पराजित नहीं कर सका था। उन्हें तो आज भी अमर
और अपराजित माना जाता है। अश्वत्थामा के अब तक जीवित होने के बारे में कुछ लोग भविष्यपुराण
का उदाहरण देते हैं कि भविष्य पुराण के अनुसार भविष्य में
सनातन धर्म पर बहुत बड़ा संकट आएगा। उस समय मानव के सोच और चरित्र का पतन हो चुका
होगा। उस समय सनातन धर्म को मिटाने का प्रयास होगा और उसी समय कलयुग का अंत भी
होगा। इस वक़्त भगवान विष्णु “कल्कि” अवतार के रूप में धरती पर जन्म लेंगे और उनकी सेना में
अश्वत्थामा भी शामिल होकर अधर्म के विरुद्ध लड़ाई करेंगे। लेकिन महाभारत में जो लिखा है वही
प्रमाण है और जो भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है वही सत्य है।
महाभारत के युद्ध दौरान जब भीष्म शरशैया पर लेट
गये थे उस समय द्रोण को सेनापति बना दिया गया था। इसके बाद अश्वत्थामा और द्रोण ने
मिलकर युद्ध में कोहराम मचा देते दिया। इससे श्रीकृष्ण और पांडवों की सेना में
चिंतित हो गयी। पांडवों की हार को देखकर श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से छल का सहारा
लेने को कहा। इस योजना के तहत युद्ध में यह खबर फैला दी गई कि 'अश्वत्थामा मारा गया', लेकिन युधिष्ठिर झूठ बोलने को तैयार
नहीं थे। तब अवंतिराज के अश्वत्थामा नामक हाथी का भीम द्वारा वध कर दिया गया।
इसके बाद युद्ध में यह बाद फैला दी गई कि अश्वत्थामा
हतो इति नरो वा कुंजरो वा'अश्वत्थामा मारा गया'। अश्वत्थामा मारा गया तो जोर से कहा
गया लेकिन नरो व कुंजरो (हाथी) यह शब्द होंठों के भीतर ही कहा गया जिससे कोई सुन ना ले।
ऐसा भी कहा जाता है कि जब गुरु द्रोणाचार्य ने
धर्मराज युधिष्ठिर से अश्वत्थामा के मारे जाने की सच्चाई जाननी चाही तो उन्होंने
जवाब दिया- 'अश्वत्थामा
मारा गया, परंतु
हाथी।' श्रीकृष्ण
ने उसी समय शंखनाद कर दिया जिसके शोर के चलते गुरु द्रोणाचार्य आखिरी शब्द 'परंतु हाथी' नहीं सुन पाए और उन्होंने समझा कि मेरा
पुत्र मारा गया। यह सुनकर उन्होंने शस्त्र त्याग दिए और युद्ध भूमि में आंखें बंद
कर वे शोक में डूब गए। यही मौका था जबकि द्रोणाचार्य को निहत्था जानकर द्रौपदी के
भाई धृष्टद्युम्न ने तलवार से उनका सिर काट डाला। यह समाचार सुन अश्वत्थामा बहुत दुखी
हो गये। छल से उनके पिता की हत्या की गयी है यह जान कर अश्वत्थामा ने युद्ध के
नियमों की परवाह न करते हुए घोर अपराध कर डाला। उसने रात्रि में सोते हुए द्रौपदी
के सभी पुत्रों की हत्या कर दी। इसके बाद उसने ब्रह्मास्त्र चला दिया और उसे रोक
नहीं पाया और उसे अर्जुन की पत्नी उत्तरा के गर्भ में उतार दिया इससे उसके गर्भ
में पल रहा पुत्र मर जाता है जिसका नाम परीक्षित था। हालांकि जब श्रीकृष्ण ने उत्तरा के गर्भ में सूक्ष्म रूप में प्रवेश कर अश्वत्थामा के अमोघ अस्त्र को
अपने ऊपर ले लिया और उत्तरा के गर्भ में पल रहे गर्भ की रक्षा की।
अंत में श्रीकृष्ण बोलते हैं, 'हे अर्जुन! धर्मात्मा, सोए हुए, असावधान, मतवाले, पागल, अज्ञानी, रथहीन, स्त्री तथा बालक को मारना धर्म के
अनुसार वर्जित है। इसने (अश्वत्थामा ने) धर्म के विरुद्ध आचरण किया है, सोए हुए निरपराध बालकों की हत्या की
है। जीवित रहेगा तो पुन: पाप करेगा अत: तत्काल इसका वध करके और इसका कटा हुआ सिर
द्रौपदी के सामने रख कर अपनी प्रतिज्ञा पूरी करो।'
श्रीकृष्ण के वचन सुनने के बाद भी अर्जुन को
अपने गुरुपुत्र पर दया आ गई और उन्होंने अश्वत्थामा को जीवित ही शिविर में ले जाकर
द्रौपदी के समक्ष खड़ा कर दिया। पशु की तरह बंधे गुरुपुत्र को देख कर द्रौपदी ने अर्जुन
से कहा, '
आर्यपुत्र! ये गुरुपुत्र तथा ब्राह्मण हैं। ब्राह्मण सदा पूजनीय होता है और उसकी
हत्या करना पाप है। आपने इनके पिता से इन अपूर्व शस्त्रास्त्रों का ज्ञान प्राप्त
किया है। पुत्र के रूप में आचार्य द्रोण ही आपके सम्मुख बंदी रूप में खड़े हैं।
इनका वध करने से इनकी माता कृपी मेरी तरह ही कातर होकर पुत्रशोक में विलाप इनका वध
करने से मेरे मृत पुत्र लौटकर तो नहीं आ सकते अत: आप इन्हें मुक्त कर दीजिए।'
शिव महापुराण के अनुसार अश्वत्थामा आज भी जीवित
हैं और वे गंगा के किनारे निवास करते हैं किंतु उनका निवास कहां है, यह नहीं बताया गया है।
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ReplyDeleteजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
08/11/2020 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद