Saturday, January 23, 2021

जब एक कुत्ता आया भगवान श्रीराम से न्याय मांगने


ऐसे ही लोग रामराज्य को उत्तम शासन का उत्कर्ष नहीं मानते हैं। रामराज्य में हर एक को न्याय मिलता था, सभी सुखी थे, सबमें समरसता, समता का भाव था। सभी रोग, ताप से मुक्त थे। पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास ने रामराज्य के बारे में अपने महन काव्य ग्रंथ रामचरित मानस में लिखा है- राम राज बैठे त्रैलोका। हरषित भए गए सब सोका।। बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई।। दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा।। 

जो प्रसंग हम यहां दे रहे हैं वह राम की न्यायप्रियता और सबके प्रति समान भाव रखने का एक उत्तम उदाहरण है।   मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के साम्राज्य में कोई भी व्यक्ति, प्राणी,जीव आदि को कोई बीमारी नही रही ओर सबके प्रति श्रीराम के सौम्यतापूर्ण व्यवहार के कारण प्रजा समस्याग्रस्त नहीं थी। श्रीराम की न्यायसभा में धर्मशास्त्र, नीतिशास्त्र के ज्ञाता रहते थे ओर उनकी न्यायसभा इन्द्र, यम और वरुण की न्यायसभा जैसी ही सुशोभित थी जिसका उल्लेख आदिकवि महर्षि वाल्मीकि ने अपनी श्रीमदवाल्मीकि रामायण के उत्तरकाण्ड के प्रथम सर्ग में इस तरह किया है –सभा यथा महेन्द्रस्य यमस्य वरुणस्य च। शुशुभे राजसिंहस्य रामश्याक्लिष्टकर्मणा:। एक दिन राम न्यायसभा में मामलों का निपटारा 

कर रहे थे। सभी मामले निपटाने के बाद राम लक्ष्मण से बोले- लक्ष्मण जरा बाहर जाकर देखो कोई न्याय चाहने वाला प्रार्थी हो तो उसे आदर सहित यहां ले आओ।  लक्ष्मण ने आदेश पाते ही न्यायसभा के बाहर आकर देखा तो उन्हे कोई व्यक्ति नहीं दिखा क्योंकि वे खुद जानते थे कि धर्मशासित राज्य में कोई न्याय का प्रार्थी कैसे हो सकता है,उन्होने राम को सूचित किया कि कोई भी प्रार्थी नहीं है।   लक्ष्मण का जबाव सुनने के बाद रामजी विहंसे और बोले एक बार और जाओ और प्रार्थी की तलाश करो। लक्ष्मण पुन: द्वार पर आए तो बाहर एक कुत्ते को बैठा देखा। लक्ष्मण को देख कर कुत्ता खड़ा हो गया ओर रोने लगा। लक्ष्मण ने कुत्ते से पूछा-तुम क्यों रो रहे हो निडर होकर मुझसे कहो।

 कुत्ता बोला- मैं जो कुछ कहना चाहता हूँ राम जी से कहूँगा, आप कृपया कर मेरा संदेश प्रभु को पहुंचा दीजिए। लक्ष्मण ने कुत्ते कि बात सुनी और श्रीराम से कुत्ते की पूरी बात सुनायी। श्रीराम ने अपनी न्यायसभा में कुत्ते को फरियाद सुनाने की अनुमति देकर लक्ष्मण को उसे बुलाने भेजा। लक्ष्मण कुत्ते के पास पहुंचे और प्रभु के सामने अपनी बात रखने को कहा। प्रभु की सहमति मिलने के बाद कुत्ते ने लक्ष्मण से कहा कि- “देवता के मंदिर में, राजा के भवन में और पंडित के घर में हम जैसे जीवों का प्रवेश निषिद्ध है। ऐसे में मैं वहाँ नहीं जा सकता। राम साक्षात शरीरधारी धर्म हैं, वे सत्यवादी हैं, रण में दक्ष ओर समस्त प्राणियों के हित में तत्पर है। इसलिए लक्ष्मण जी आप प्रजापालक श्रीराम को कह दीजिये कि उनकी आज्ञा के बिना मैं उनके न्यायमंदिर में प्रवेश नहीं करना चाहता हूँ।'

   लक्ष्मण वापस श्रीराम के पास आकर कहा- “”हे प्रभु आपके आदेश से मैं बाहर प्रार्थी को तलाशने गया था। एक कुत्ता बाहर खड़ा है ओर आपके समक्ष उपस्थित होने कि आज्ञा चाहता है।“”  श्रीराम ने लक्ष्मण से कहा- “”फरियादी कोई भी जाति या योनि का क्यों न हो, उसे शीघ्र ले आओ।“” श्रीराम की आज्ञा पाकर कुत्ता उनकी न्यायसभा में आ गया। प्रभु राम ने देखा कि उसका सिर घायल है ओर रक्त बह रहा है। श्रीराम कुत्ते से बोले- मै तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूँ? तुम्हें जो कुछ कहना है बिना डरे कहो। 

 कुत्ता प्रभु राम से बोला कि अज्ञानतावश मैंने कोई चूक कि हो तो मैं उसके लिए आपसे क्षमा चाहता हूँ आप क्रोध ना करें तो मैं अपनी व्यथा आपसे कहूं। 

श्रीराम ने कहा- तुम निडर होकर कहो तुम्हारी जो भी इच्छा है पूरी की जायेगी।

   कुत्ते ने भगवान श्रीराम कि न्यायसभा में अपनी व्यथा-कथा कहनी प्रारंभ की कि मैं एक भिक्षुक ब्राह्मण के घर में रहता हूँ। उसने ही बिना किसी अपराध के मेरा सिर फोड़ दिया। 

  श्रीराम ने द्वारपाल को उस भिक्षुक ब्राह्मण को बुलाने भेज दिया। आते ही उस भिक्षुक ब्राह्मण ने प्रभु श्रीराम को प्रणाम कर पूछा कि उसे किस कारण से दरबार में बुलवाया गया है। 

  श्रीराम ने उस ब्राह्मण से प्रश्न किया - तुमने इस कुत्ते को क्यों मारा ? इसने  ऐसा  क्या किया जो  तुमने इसका सिर फोड़ दिया? 

 ब्राह्मण ने कहा – हाँ मैंने क्रोध में इस कुत्ते को मारा है। मैं भिक्षा के लिए घूम रहा था और भिक्षा का समय निकल गया था। यह गली के बीचोबीच बैठा था, मैंने कई बार इसे हटने को कहा,तब यह गली के एक छोर में ऐसी जगह खड़ा हो गया जिससे मेरी राह रुक गयी। मैं भूखा था ही इसलिए क्रोध में मैंने इसे मार दिया। अब आप मुझे जो भी दंड देना चाहे दे दें।  श्रीराम ने सभासदों समेत सहित अपनी न्यायसभा  के सदस्यों से  पूछा कि इस ब्राह्मण को क्या दंड दिया जाये? 

सभी ने कहा कि शास्त्रों के अनुसार दंड द्वारा ब्राह्मण अवध्य है।  न्यायसभा ने श्रीराम को ब्राह्मण के बारे में  खुद निर्णय लेने को कहा। यह मामला भी एक पशु और मानव के बीच है। इस पर कोई निर्णय सुनाना आसान नहीं है। अब प्रभुआप  ही निर्णय लें कि इस पर क्या किया जाये।

सभासदों की बात सुन कर राम ने इस बारे में कुत्ते को ही दंड का सुझाव देने की बात 

कही।

 उन्होंने कुत्ते को पूछा, ‘ब्राह्मण ने तुम्हें डंडा मारा तो तुम क्या  दंड देना चाहते हो? ‘

कुत्ते ने कहा,’भगवान इसे कालंजर का मठाधीश बना दिया जाए।’

कुत्ते की बात सुनकर भगवान राम मुस्करा दिए और मुस्कराते हुए कुत्ते से पूछा,’ इस ब्राह्मण ने तुम्हें  डंडा मारा बदले में तुम इन्हें मठाधीश बनाना चाहते हो। मठाधीश बनने से इनकी बहुत सेवा होगी, काफी चेले बन जाएंगे। इससे तुम्हारा क्या फायदा होगा।’

कुत्ता बोला, मैं भी पूर्व जन्म में मठाधीश था। मुझ से कुछ गलत काम हुआ आज मैं कुत्ते की योनि में हूं और लोगों के डंडे खा रहा हूं। यह ब्राह्मण भी मठाधीश बनेगा फिर कुत्ते की योनि में जाएगा, फिर लोगों के डंडे खाएगा तो इसकी सजा पूरी हो जाएगी।

  कुत्ते की राय सुन भगवान राम मुसकराये और उन्होंने ब्राह्मण को वही सजा सुना दी जो कुत्ते ने सुझायी थी।

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