जब ब्रह्मा सृष्टि की रचना कर रहे थे उसी समय उनके मुख
से सरस्वती का जन्म हुआ। मां सरस्वती ने जब वीणा बजानी प्रारंभ की तो सारा जग आऩंद विभोर हो गया।
वसंत पंचमी को भारत में सरस्वती
पूजा का आयोजन घर, शिक्षा प्रतिष्ठान, कला से जुड़े संस्थानों में किया जाता है।किसी भी प्रकार की कला, शिक्षा से जुड़े
व्यक्तियों की आराध्य देवी हैं सरस्वती। सरस्वती को वाणी, वाग्देवी, वीणापाणि आदि
कई नामों से पुकारा जाता है।
सरस्वती स्तुति
सरस्वत्यै नमो नित्यं भद्रकाल्यै नमो नम:।
वेद वेदान्त वेदांग विद्यास्थानेभ्य एव च।।
सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने।
विद्यारूपे विशालाक्षी विद्यां देहि नमोस्तुते।।'
एकादशाक्षर सरस्वती मंत्र : ॐ ह्रीं ऐं ह्रीं सरस्वत्यै नमः।
रामचरित मानस के रचयिता पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास ने
भी अपने इस महाकाव्य को लिखते समय वाणी अर्थात सरस्वती की वंदना इन शब्दों में की
है।
'वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि। मंगलानां च कर्त्तारौ वन्दे
वाणी विनायकौ॥'
-इसका अर्थ यह है- अक्षर, शब्द, अर्थ और छंद
का ज्ञान देने वाली भगवती सरस्वती तथा मंगलकर्ता विनायक की मैं वंदना करता हूं।
वसंत पंचमी के दिन शिव पूजन का भी विशेष महत्व है। भगवती
सरस्वती की पूजन प्रक्रिया में सर्वप्रथम आचमन संपन्न करे। फिर सरस्वती पूजन का संकल्प ग्रहण करे। इसमें देशकाल आदि का संकीर्तन
करते हुए –
'यथोपलब्धपूजनसामग्रीभिः भगवत्याः सरस्वत्याः पूजनमहं करिष्ये।' पढ़कर संकल्प जल छोड़
दें।
तत्पश्चात आदि पूजा
करके कलश स्थापित कर उसमें देवी सरस्वती का आह्वान करके वैदिक या पौराणिक मंत्रों
का उच्चारण करते हुए उपचार सामग्रियां भगवती को सादर समर्पित करें।
मां
सरस्वती का अष्टाक्षर मंत्र
'श्री ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा'
इस अष्टाक्षर मंत्र
से प्रत्येक वस्तु क्रमशः श्रीसरस्वती को समर्पण करे। अंत में देवी सरस्वती की
आरती करके उनकी स्तुति करें। भगवती को निवेदित गंध पुष्प मिष्ठान्न का प्रसाद
ग्रहण करना चाहिए। पुस्तक और लेखनी में देवी सरस्वती का निवास स्थान माना जाता है
अत: उनकी पूजा करें।
देवी भागवत एवं
ब्रह्मवैवर्तपुराण में वर्णित आख्यान में पूर्वकाल में श्रीमन्नरायण भगवान ने
वाल्मीकि को सरस्वती का मंत्र बतलाया था। जिसके जप से उनमें कवित्व शक्ति उत्पन्न
हुई थी।
भगवान नारायण द्वारा जिस
मंत्र का उपदेश दिया गया था वह अष्टाक्षर मंत्र इस प्रकार है- 'श्रीं ह्वीं
सरस्वत्यै स्वाहा।' इसका चार लाख जप करने से मंत्र सिद्धि होती है।
'अं वाग्वादिनि वद वद स्वाहा।' यह
दशाक्षर बीज मंत्र सर्वार्थसिद्धिप्रद तथा सर्वविद्याप्रदायक कहा गया है।
भगवती सरस्वती के इस
अद्भु कवच को धारण करके ही अनेक ऋषियों ने सिद्धि पाई थी। इस कवच को सर्वप्रथम
रासरासेश्वर श्रीकृष्ण ने गोलोक धाम के वृंदावन नामक अरण्य में रासोत्सव के समय
रासमंडल के वृंदावन नामक अरण्य में रासोत्सव के समय रासमंडल में ब्रह्माजी से कहा
था।
तत्पश्चात ब्रह्माजी
ने गंधमादन पर्वतपर भृगुमुनि को इसे दिया था। भगवती सरस्वती की उपासना (काली के
रूप में) करके ही कवि कुलगुरु कालिदास ने ख्याति पाई। गोस्वामी जी कहते हैं कि
देवी गंगा और सरस्वती दोनों एक समान ही पवित्रकारिणी हैं। एक पापहारिणी और एक
अविवेक हारिणी हैं-
पुनि
बंदउं सारद सुरसरिता। जुगल पुनीत मनोहर चरिता।
मज्जन
पान पाप हर एका। कहत सुनत एक हर अबिबेका।
भगवती सरस्वती विद्या
की अधिष्ठात्री देवी हैं और विद्या को सभी धनों में प्रधान धन कहा गया है। विद्या
से ही अमृतपान किया जा सकता है। विद्या और बुद्धि की देवी सरस्वती की महिमा अपार
है। देवी सरस्वती के द्वादश नाम हैं। जिनकी तीनों संध्याओं में इनका पाठ करने से
भगवती सरस्वती उस मनुष्य की जिह्वा पर विराजमान हो जाती हैं।
या
कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या
वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या
ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा
मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥1॥
जो विद्या की देवी
भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की है और जो श्वेत
वस्त्र धारण करती है, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत
कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो
सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली सरस्वती हमारी
रक्षा करें ॥1॥
सरस्वती पूजन का आरंभ
जो लोग सरस्वती माता
की पूजा करने जा रहे हैं उन्हें सबसे पहले मां सरस्वती की प्रतिमा अथवा तस्वीर को
सामने रखकर उनके सामने धूप-दीप और अगरबत्ती जलानी चाहिए।
इसके बाद पूजन आरंभ
करना चाहिए। सबसे पहले अपने आपको तथा आसन को इस मंत्र से शुद्ध कीजिए- "ऊं
अपवित्र : पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स
बाह्याभ्यन्तर: शुचि:॥" इन मंत्रों से अपने ऊपर तथा आसन पर 3-3 बार कुशा या
पुष्पादि से जल छिड़कें। फिर इस मंत्र से आचमन करें – ऊं केशवाय नम: ऊं माधवाय नम:, ऊं
नारायणाय नम:, इसके बाद हाथ धोएं, पुन:
आसन शुद्धि के लिए यह मंत्र पढ़ें - ऊं पृथ्वी त्वयाधृता लोका देवि त्यवं
विष्णुनाधृता। त्वं च धारयमां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥
शुद्धि और आचमन के
बाद चंदन लगायें। अनामिका उंगली से श्रीखंड चंदन लगाते हुए यह मंत्र बोलें 'चन्दनस्य महत्पुण्यम् पवित्रं पापनाशनम्, आपदां हरते नित्यम् लक्ष्मी तिष्ठतु सर्वदा।'
संकल्प के बिना की
गयी पूजा सफल नहीं मानी जाती। अत: किसी भी पूजा से पहले संकल्प करना
आवश्यक होता है।हाथ में जौ, तिल, फूल, अक्षत
(चावल) मिष्ठान्न और फल लेकर 'यथोपलब्ध पूजनसामग्रीभिः भगवत्या:
सरस्वत्या: पूजनमहं करिष्ये|' इस मंत्र को बोलते हुए हाथ में रखी हुई
सामग्री मां सरस्वती के सामने रख दें। इसके बाद गणपति जी की पूजा करें।
गणपति पूजन
हाथ में फूल लेकर
गणपति का ध्यान करें। यह मंत्र पढ़ें- गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू
फलचारुभक्षणम्। उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्। हाथ में अक्षत (चावल)
लेकर गणपति का आह्वान करें ऊं गं गणपतये इहागच्छ इह तिष्ठ।। इतना कह कर पात्र में
अक्षत (चावल) छोड़ें।
अर्घा में जल लेकर
बोलें- एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम्
ऊं गं गणपतये नम:। लाल चंदन लगाएं: इदम रक्त चंदनम् लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:, इसी प्रकार श्रीखंड चंदन बोलकर श्रीखंड चंदन लगाएं। इसके
पश्चात सिन्दूर चढ़ाएं "इदं सिन्दूराभरणं लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:। दूर्वा और
विल्बपत्र भी गणेश जी को चढ़ाएं। गणेश जी को वस्त्र पहनाएं। इदं पीत वस्त्रं ऊं गं
गणपतये समर्पयामि।
पूजन के बाद गणेश जी
को प्रसाद अर्पित करें: इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं गं गणपतये समर्पयामि:। मिष्टान्न
अर्पित करने के लिए मंत्र: इदं शर्करा घृत युक्त नैवेद्यं ऊं गं गणपतये
समर्पयामि:। प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन करायें। इदं आचमनयं ऊं गं गणपतये नम:।
इसके बाद पान सुपारी चढ़ायें: इदं ताम्बूल पुगीफल समायुक्तं ऊं गं गणपतये
समर्पयामि:। अब एक फूल लेकर गणपति पर चढ़ाएं और बोलें: एष: पुष्पान्जलि ऊं गं
गणपतये नम:
इसी प्रकार से
नवग्रहों की पूजा करें। गणेश के स्थान पर नवग्रह का नाम लें।
कलश पूजन
घड़े या लोटे पर मोली
बांधकर कलश के ऊपर आम का पल्लव रखें। कलश के अंदर सुपारी, दूर्वा, अक्षत, मुद्रा रखें। कलश के गले में मौली (रक्षासूत्र) लपेटें। नारियल पर वस्त्र लपेट कर कलश पर रखें। हाथ में अक्षत और पुष्प
लेकर वरुण देवता का कलश में आह्वान करें। ओ३म् त्तत्वायामि ब्रह्मणा
वन्दमानस्तदाशास्ते यजमानो हविभि:। अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुशंस मान आयु:
प्रमोषी:। (अस्मिन कलशे वरुणं सांगं सपरिवारं सायुध सशक्तिकमावाहयामि, ओ३म्भूर्भुव: स्व:भो वरुण इहागच्छ इहतिष्ठ। स्थापयामि
पूजयामि॥)
सरस्वती पूजन
सबसे पहले माता
सरस्वती का ध्यान करें
या कुन्देन्दु
तुषारहार धवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या
वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ।।
या
ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा मां पातु सरस्वती
भगवती निःशेषजाड्यापहा ।।1।।
शुक्लां
ब्रह्मविचारसारपरमांद्यां जगद्व्यापनीं ।
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां
जाड्यांधकारपहाम्।।
हस्ते स्फाटिक
मालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम् ।
वन्दे तां परमेश्वरीं
भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्।।2।।
इसके बाद सरस्वती
देवी की प्रतिष्ठा करें। प्रतिमा हो तो प्रतिमा या फिर सरस्वती देवी का चित्र चौकी
पर आसन बिछा कर रखें। हाथ में अक्षत (चावल) लेकर बोलें “ॐ भूर्भुवः स्वः महासरस्वती, इहागच्छ
इह तिष्ठ। इस मंत्र को बोल कर प्रतिमा पर अक्षर छोड़ें। इसके बाद जल लेकर 'एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम्।” प्रतिष्ठा के बाद स्नान कराएं: ॐ मन्दाकिन्या समानीतैः, हेमाम्भोरुह-वासितैः स्नानं कुरुष्व देवेशि, सलिलं च सुगन्धिभिः।।
ॐ श्री सरस्वतयै
नमः।। इदं रक्त चंदनम् लेपनम् से रक्त चंदन लगाएं। इदं सिन्दूराभरणं से सिन्दूर
लगाएं। ‘ॐ मन्दार-पारिजाताद्यैः, अनेकैः
कुसुमैः शुभैः। पूजयामि शिवे, भक्तया, सरस्वतयै
नमो नमः।। ॐ सरस्वतयै नमः, पुष्पाणि समर्पयामि।’इस
मंत्र से पुष्प चढ़ाएं फिर माला पहनाएं। अब सरस्वती देवी को इदं पीत वस्त्र
समर्पयामि कहकर पीला वस्त्र पहनाएं।
नैवैद्य अर्पण
पूजन के पश्चात देवी
को "इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं सरस्वतयै समर्पयामि" मंत्र से नैवैद्य
अर्पित करें। मिष्टान अर्पित करने के लिए मंत्र: "इदं शर्करा घृत समायुक्तं नैवेद्यं
ऊं सरस्वतयै समर्पयामि" बालें। प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन करायें। इदं
आचमनयं ऊं सरस्वतयै नम:। इसके बाद पान सुपारी चढ़ायें: इदं ताम्बूल पुगीफल
समायुक्तं ऊं सरस्वतयै समर्पयामि। अब एक फूल लेकर सरस्वती देवी पर चढ़ाएं और
बोलें: एष: पुष्पान्जलि ऊं सरस्वतयै नम:। इसके बाद एक फूल लेकर उसमें चंदन और
अक्षत लगाकर किताब कॉपी पर रख दें।
पूजन के पश्चात्
सरस्वती माता के नाम से हवन करें। इसके लिए भूमि को स्वच्छ करके एक हवन कुण्ड
बनाएं। आम की अग्नि प्रज्वलित करें। हवन में सर्वप्रथम 'ऊं गं गणपतये नम:' स्वाहा
मंत्र से गणेश जी एवं 'ऊं नवग्रह नमः' स्वाहा
मंत्र से नवग्रह का हवन करें, तत्पश्चात् सरस्वती माता के मंत्र 'ॐ सरस्वतयै नमः स्वहा' से
हवन करें। हवन की भभूत माथे पर लगाएं। श्रद्धापूर्वक प्रसाद ग्रहण करें इसके बाद
सभी में प्रसाद वितरित करें।
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