Thursday, April 15, 2021

 



अभिनेता मिठुन चक्रवर्ती के साथ पत्रकार राजेश त्रिपाठी
आज अभिनेता मिठुन चक्रवर्ती भाजपा में शामिल हो गये हैं । भाजपा के प्रचार के लिए वे जहां-जहां गये उनके चाहने वालों की भीड़ उमड़ पड़ी। आज मिठुन मोनार्क ग्रुप आफ ग्रुप होटल के मालिक हैं। उनके होटल ऊटी, मुंबई, दार्जिलिंग आदि में हैं। आज लोग उन्हें नक्सलाइट और ना जाने क्या-क्या कह रहे हैं। कोई किसी विचारधारा का समर्थक हो इसमें तब तक कोई बुराई नहीं जब तक उसके विचार, उसका काम जनविरोधी, समाजविरोधी ना हों। मिठुन चक्रवर्ती के संघर्ष से लेकर सफलता और फिर अपने अभिनय कैरियर से उत्कर्ष तक पहुंचने की कहानी बहुतों को प्रेरणा दे सकती है। हम यहां उनके जीवन के फिल्मी नहीं बल्कि उनके ऐसे रूप को आपके सामने पेश करने जा रहे हैं जिससे शायद आप अनभिज्ञ होंगे। इसीलिए हमने शीर्षक रखा’ इस मिठुन चक्रवर्ती को आप नहीं जानते।’ मिठुन के सहृदय रूप की एक मिसाल यह भी। कई वर्ष पहले की बात है मिठुन उन दिनों कोलकाता आये थे। उन्होंने एक बंगला अखबार में एक खबर पढ़ी की कोई एक नन्हीं बच्ची को कचड़े के ढेर में फेंक गया और उसे कोई एक सहृदय व्यक्ति उठा कर ले गया है। मिठुन ने उस व्यक्ति की तलाश की और उसके घर गये और उस बच्ची को विधिवत सारी कागजी कार्रवाई पूरी कर गोद ले लिया और अपने साथ मुंबई ले गये। मिठुन और उनकी पत्नी योगिता बाली ने उस बच्ची का नाम रखा दिशानी चक्रवर्ती और उसे अपने बेटों की तरह ही पाला कोई भेदभाव नहीं किया। दिशानी ने न्यूयॉर्क फिल्म अकादमी से अभिनय का प्रशिक्षण लिया है। वे जल्द ही अभिनय क्षेत्र में आ सकती हैं।
अब वह किस्सा जो मुझसे जुड़ा है। बात उन दिनों की है जब मैं कोलकाता में इंडियन एक्सप्रेस (मुंबई) के हिंदी दैनिक जनसत्ता में कार्यरत था। फिल्म से संबंधित समाचार व कार्यक्रमों के संकलन का जिम्मा मुझ पर ही था। उन्हीं दिनों मिठुन कोलकाता आये हुए थे। उनका पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से दार्जिंलिंग में नागरिक
अभिनंदन
किया जाना था। थोड़ी देर के लिए वे दमदम एयरपोर्ट के पास ही होटल अशोक (अब इसका अस्तित्व नहीं है) में ठहरे थे मैंने कहीं से उनका नंबर जुगाड़ किया और उनसे बात की कि मैं उनसे थोड़ी देर के लिए ही सही मिलना चाहता हूं। उन्होंने हामी भर ली और कहा –‘जल्द आ जाइए, मुझे कुछ देर बाद दार्जिंलिंग के लिए निकलना है।‘ मैंने कहा-‘हां मैं तुरत आ जाऊंगा।‘ बीच यह बताता चलूं कि इसके पहले भी मैं मिठुन से टालीगंज के एक स्टूडियो में मिल चुका था। तब वे फिल्मों में पैर जमाने के लिए संघर्ष कर रहे थे। अब जब मैं उनसे मिलने जा रहा था तब वे एक स्टार के रूप में स्थापित हो चुके थे।
मैं होटल अशोक पहुंचा तो वहां सेक्यूरिटी वालों की भीड़ थी। वे राजकीय अतिथि थे इसलिए सेक्यूरिटी से मिल कर उनकी अनुमति मिलने पर ही मिठुन तक पहुंचा जा सकता था। मैंने सेक्युरिटी वालों से कहा कि मुझे मिठुन से मिलना है, उनके समया ले रखा है पर वे राजी नहीं हुए। वे बोले कि वे दार्जिलिंग के लिए निकलनेवाले हैं अब किसी से नहीं मिलेंगे। मैंने आग्रह किया कि वे लोग फोन करके मेरा नाम लेकर मिठुन ,से पूछें कि अगर वे नहीं मिलना चाहते तो मैं यहीं से लौट जाऊंगा। खैर मेरा यह आग्रह स्वीकार हो गया और सेक्यूरिटी वाले ने मिठुन को फोन किया। ऊपर से जो उत्तर आया वह आशाजनक था। सेक्युरिटी वाले ने कहा –जल्द जाइए, मिठुन दादा आपकी ही प्रतीक्षा कर रहे हैं।
मैं तुरत ऊपर पहुंचा। देखा मिठुन दा पत्रकारों से घिरे थे। उनमें एक ‘युगांतर’ बंगला दैनिक के सिने संपादक भी थे जिनका बाकायदा चरण स्पर्श कर मिठुन ने स्वागत किया। पत्रकारों में मेरे परिचित ‘वर्तमान’ बंगला दैनिक के सिनेमा स्तंभ देखने वाले सुमन गुप्त भी थे।
मिठुन ने देखा और मुझे अपने पास बैठाया उसके बाद औपचारिक बातचीत शुरू हुई। सामने टेबल पर खिचड़ी और जलेबी रखी थीं। मिठुन की सदाशयता और सरल व्यवहार उस समय नजर आया जब वे मुझे भी जलेबी खाने का आग्रह करने लगे। मेरे लाख मना करने पर उन्होंने एक जलेबी खिला ही थी। वहीं टेबल पर एक शीशी रखी थी जिसमें हरे रंग की एक क्रीम थी। (ऊपर की तस्वीर में आप वह शीशी देख सकते हैं उसमें आपको टेबल के किनारे रखी वह शीशी नजर आयेगी।) उस शीशी को दिखाते हुए मिठुन बोले-’दादा, इटली के मेरे एक फैन ने यह क्रीम भेजी है। उसने कहा है कि कुछ दिन लगाने से रंग काफी साफ हो जायेगा। कुछ फर्क देख रहे हैं क्या।’ यहां यह बताता चलूं कि वर्षों पहले जब मिठुन से मिला था तो उनका रंग गहरा सांवला था अभी सामान्य फर्क तो दिख रहा था सो कह दिया –हां दादा कुछ तो फर्क है।
इस प्रसंग को आगे ना बढ़ाते हुए अब उस प्रसंग पर आते हैं जिसमें आपको वह मिठुन चक्रवर्ती मिलेंगे जिन्हें आपमें से कई लोग नहीं जानते होंगे। मैंने मिठुन का इंटरव्यू रिकार्ड कर लिया था और जब मैं कैसेट चला कर कोलकाता के बी के पाल एवेन्यू स्थित जनसत्ता के आफिस में कंपोज कर रहा था यह कहानी उसी वक्त शुरू होती है। जनसत्ता के साथ ही फाइनैंसियल एक्सप्रेस के लोग भी बैठते थे। मेरे बगल में ही फाइनैंसियल एक्सप्रेस के टाइपिस्ट बैठते थे। अब नाम नहीं याद आ रहा (संभवत: अजय नाम था)। उन्होंने जब मिठुन की आवाज कैसेट में सुनी तो बोले-‘इसमें मिठुन चक्रवर्ती की आवाज है क्या?’ मैंने ‘हां’ में उत्तर दिया इस पर उन्होंने आग्रह किया –‘काम हो जाने पर यह कैसेट एक दिन के लिए मुझे दे सकेंगे।’ मैंने कहा –‘हां दे दूंगा पर क्या बात है कुछ बतायेंगे।’
इसके बाद जो प्रसंग उन्होंने सुनाया वह मिठुन के ऐसे उदार, सहृदय रूप को पेश करता है जो अतुलनीय, प्रशंसनीय, अनुकरणीय है। उन्होंने जो कहानी बतायी मैं हूबहू यहां प्रस्तुत कर रहा हूं। उन्होंने बताया कि उनके घर के पास ही एक परिवार रहता है जो बहुत गरीब है। उनके एकमात्र पुत्र है जो गंभीर हृदय रोग से पीड़ित था। उसे किसी तरह से उन्होंने बीएम बिड़ला हार्ट रिसर्च सेंटर में भर्ती तो करा दिया गया लेकिन परिवार के पास इलाज का खर्चा उठाने के लिए पैसे नहीं थे। बेटे की जान किस तरह बचाये इसी चिंता में डूबा पिता रोता रहता था। तभी उसके किसी परिचित ने उसे एक रास्ता बताया कि-‘मिठुन चक्रवर्ती किसी कार्यक्रम में भाग लेने दार्जिलिंग जाने वाले हैं। वे अभी कोलकाता के ग्रांड होटल में ठहरे हैं। वे बहुत दयालु हैं दूसरों का दुख दूर करने को बेताब रहते हैं। तुम किसी तरह गार्ड के हाथ पैर जोड़ कर उनसे मिलो और अपना दुख बताओ वे जरूर मदद करेंगे।’
बीमार बेटे का बाप किसी तरह से ग्रांड होटल पहुंचा, गार्ड से सारा हाल बताते हुए रोकर प्रार्थना की वह उसे मिठुन से मिल लेने दें। गार्ड भी उसकी बात सुन कर पिघल गया और बोला-‘जाओ अगर वे मिलना चाहें तो मिल लो।’
उस दुखी व्यक्ति से मिठुन दा ना केवल मिले अपितु उनके पास जो रुपये थे उसे देने के साथ ही हास्पिटल के लिए अपने लेटरपैड में एक पत्र लिख दिया कि बच्चे की चिकित्सा में जो भी खर्च आये वह उनके नाम दर्ज कर लिया जाये वे चुका देंगे।
मिठुन की कृपा से उस गरीब व्यक्ति के बच्चे का बेहतर चिकित्सा हुई उसकी जान बच गयी और उसकी चिकित्सा का सारा खर्च मिठुन चक्रवर्ती ने उठाया।
फाइनैंसियल एक्सप्रेस के हमारे उस टाइपिस्ट बंधु ने बताया कि जिस व्यक्ति के बच्चे की प्राण-रक्षा में मिठुन मददगार बने उस व्यक्ति ने अपने घर में देवताओं के चित्रों के बीच मिठुन चक्रवर्ती का चित्र भी लगा रखा है और धूप दीप से उनकी भी पूजा देवताओं की तरह करते हैं। उनका कहना है कि मेरे एकमात्र बच्चे की रक्षा के लिए तो मिठुन ही ईश्वर का एक रूप साबित हुए। उस व्यक्ति ने जब कैसेट में मिठुन की आवाज सुनी तो पुलकित हो गया। मेरे टाइपिस्ट बंधु ने बताया कि उस व्यक्ति ने मेरे लिए भी आशीषों की झड़ी लगा दी कि मैंने उसको उसके ईश्वर तुल्य मिठुन दा की आवाज सुनायी।

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