हनुमान जी ने जब लंकादहन किया था उसके बाद वे अपनी पूंछ बुझाने और शरीर का ताप, जल दूर करने के लिए समुद्र में कूद पड़े थे। गोस्वामी तुलसीदास ने अपने रामचरित मानस में इसका वर्णन इस चौपाई के माध्यम से किया है- उलट-पुलट कपि लंका जारी। कूद पड़ा पुनि सिंधु मझारी।। पूँछ बुझाइ खोइ श्रम धरि लघु रूप बहोरि।जनकसुता कें आगें ठाढ़ भयउ कर जोरि॥ समुद्र में हुनमान जी ने पूंछ तको बुझा ली लेकिन कहते हैं कि इतनी देर तक लपटों के बीच रहने के कारण उनके शरीर में जो जलन पैदा हुई वह किसी भी तरह से शांत नहीं हो रही थी। कहते हैं कि यह जलन चित्रकूट में हनुमान धारा में शांत हुई। आइए पहले हनुमान धारा के बारे में जान लेते हैं।
हनुमान
धारा वर्तमान में उत्तर प्रदेश के चित्रकूट धाम जिले
की कर्वी तहसील तथा मध्यप्रदेश के सतना जिले की सीमा पर स्थित है।
चित्रकूट का मुख्य स्थल सीतापुर है जो कर्वी से आठ किलोमीटर की दूरी पर है। उत्तर
प्रदेश के सीतापुर नामक स्थान के समीप ऊंची पहाड़ी पर यह हनुमान मंदिर स्थित है।
यह स्थान विंध्य पर्वतमाला के मध्य भाग में
स्थित है। पहाड़ की चोटी पर हनुमानजी की एक विशाल मूर्ति स्तापित है जिसके सिर पर
दो जल के कुंड हैं, जो हमेशा जल से भरे रहते हैं और उनमें से निरंतर पानी बहता रहता
है। यह पानी हनुमान जी की मूर्ति पर गिरता रहता है। मूर्ति के सामने एक छोटा-सा
तालाब है जिसमें झरने का पानी गिरता है। यह पानी उस तालाब से कहां जाकर विलीन होता
है इसका कोई पता नहीं। धारा का जल हनुमानजी को स्पर्श करता हुआ बहता है इसीलिए इसे
हनुमान धारा कहते हैं।
ऐसा प्रसंग आता है कि वनवास से श्रीराम की
अयोध्या वापसी और फिर राज्याभिषेक होने के बाद एक दिन हनुमानजी ने श्रीराम से कहा-‘हे प्रभु, लंका जलाने के
बाद तीव्र अग्नि से उत्पन्न ताप मुझे बहुत कष्ट दे रहा है। मेरे शरीर में असह्य
जलन हो रही है। मुझे कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे मैं इससे
मुक्ति पा सकूं। इस जलन के चलते मुझे कार्य करने में बाधा होती है। कृपया मेरा
संकट दूर करें।’ तब प्रभु श्रीराम ने सलाह दी कि हे हनुमान आप चित्रकूट वहां एक
पर्वत है जहां आपके शरीर पर अमृत तुल्य शीतल जलधारा के लगातार गिरता रहेगा जिससे
आपको शरीर की असह्य जलन से मुक्ति मिल जाएगी।’
हनुमान जी ने चित्रकूट आकर विंध्य पर्वत
श्रृंखला की एक पहाड़ी में श्री राम रक्षा स्त्रोत का पाठ 1008 बार किया। जब उनका अनुष्ठान पूरा हुआ ऊपर से एक जल की धारा
प्रकट हो गयी। यह भी कहा जाता है कि स्वयं राम ने बाण का प्रहार कर वह जलधारा
उत्पन्न की थी। जलधारा शरीर में पड़ते ही हनुमान जी के शरीर को शीतलता प्राप्त हुई।
आज भी यहां वह जल धारा के निरंतर गिरती है। जिस कारण इस स्थान को हनुमान धारा के
रूप में जाना जाता है। धारा का जल पहाड़ में ही विलीन हो जाता है। उसे लोग प्रभाती
नदी या पातालगंगा कहते हैं।
इस धारा का जल हनुमानजी को स्पर्श करता हुआ बहता है। इसीलिए इसे हनुमान धारा
कहते हैं। इस के दर्शन से हर एक व्यक्ति तनाव से मुक्त हो जाता है तथा उसकी मनोकामना
भी पूर्ण हो जाती है।
ऊंची पहाड़ी
पर 560 सीढ़ियां चढ़ कर मंदिर तक पहुंचना
पड़ता था। अब तो रोप वे के माध्यम से पहुंचना आसान हो गया है। नजदीकी एयरपोर्ट
मध्य प्रदेश का सतना जिला है। वैसे चित्रकूट की देवांगना घाटी में
एयरपोर्ट का काम प्रगति पर है जिसका 60 प्रतिशत से अधिक कार्य पूर्ण हो चुका है।
एयरपोर्ट पूरा हो जाने से यहां पर्यटकों, तीर्थयात्रियों की संख्या भी बढ़ जायेगी।
हनुमान
धारा के पानी से पेट की बीमारियां दूर होती है यह बात इस यूट्यूबर को चित्रकूट की
एक यात्रा में वहां ठहरे कोलकाता के एक व्यवसायी ने बतायी थी। वे एक महीने से
चित्रकूट में ठहरे थे और उनके लिए एक आदमी हनुमान धारा का पानी बराबर लाकर देता
था। उस व्यवसायी ने बताया कि उस पानी से उनके पेट की तकलीफ काफी हद तक ठीक हो गयी
है। हो सकता है कि उस पानी में ऐसे मिनिरल्स या तत्व हों जो पेट की तकलीफ ठीक करते
हों।
वाल्मीकि रामायण, महाभारत पुराण
स्मृति उपनिषद व साहित्यक पौराणिक साक्ष्यों में चित्रकूट का विस्तृतविवरण प्राप्त
होता है। त्रेतायुग का यह तीर्थस्थल प्राकृतिक दृश्यावलियों के कारण ही चित्रकूट
के नाम से प्रसिध्द है। चित्रकूट यानी चित्त को मोहनेवाला।
हनुमान धारा के बारे में कुछ ऐसा प्रसंग भी मिलता है कि जब श्रीराम लंका विजय से वापस लौट रहे थे, तब उन्होंने
हनुमान के विश्राम के लिए इस स्थल का निर्माण किया था। यहीं पर पहाड़ी की चोटी पर `सीता रसोई' स्थित है।
यहां मंगलवार,शनिवार, नवरात्रि और हनुमान जयंती के दिन भक्तों की अपार भीड़ जुटती
है। यहां बहुत बड़ी संख्या में बंदर हैं जो खाना पाने की लालसा में सीढ़ियों से
मंदिर तक पहुंचनेवाले भक्तों पर नजर लगाये रहते हैं।
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