महाराष्ट्र ही नहीं पूरे देश में गणेश चतुर्थी को गणेशोत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। पूरा महाराष्ट्र और विशेषकर मुंबई महानगर इस दौरान सजधज जाता है और सभी दिशाओं से 'गणपति बप्पा मोरया', 'मंगलमूर्ति मोरया' के जयकारे से गूंज जाता है। क्या कभी आपमें से किसी ने यह सोचा है कि गणपति मोरया में मोरया कौन है। इस कहानी पर आयेंगे पहले गणेशोत्सव के प्रारंभ और इसकी परंपरा पर आते हैं। सर्व प्रथम पेशवाओं ने गणेशोत्सव को बढ़ावा दिया। सुना जाता है कि पुणे में कस्बा गणपति नाम से प्रसिद्ध गणपति की स्थापना शिवाजी महाराज की मां जीजाबाई ने की थी। लेकिन इसे जनोत्सव बनाने और लोकप्रिय करने का श्रेय लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक को जाता है। गणोत्सव को उन्होंने जो स्वरूप दिया उससे गणेश उत्सव राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बन गया। उनके प्रयास से परिवार तक सीमित इस उत्सव को सार्वजनिक महोत्सव का रूप मिला। यह केवल धार्मिक आयोजन तक ही सीमित नहीं रहा, अपितु तिलक ने इसे स्वतंत्रता संग्राम में मदद, छुआछूत दूर करने और समाज को संगठित करने तथा आम आदमी का ज्ञानवर्धन करने का उसे जरिया बनाया। उन्होंने उसे एक आंदोलन का स्वरूप दिया। इस आंदोलन ने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने 1893 में गणेशोत्सव का जो सार्वजनिक आयोजन किया था उसने धीरे-धीरे विशाल स्वरूप ले लिया।महाराष्ट्र और मुंबई गणेशोत्सव के दौरान 'गणपति बप्पा मोरया' के जयकारे से गूंज उठता है। इसके बाद जब मूर्तियों का विसर्जन होता है तो उस दौरान शोभयात्रा में जो नारा गूंजता है वह है 'गणपति बप्पा मोरया पुड्च्यावर्षी लौकरिया' ( अर्थात गणपति मोरया अगले वर्ष जल्द आना)। अब जानते हैं कि गणपति बप्पा मोरया के जयकारे में जानिये ‘मोरया’ क्यों जोड़ा जाता है और कौन थे मोरया।
पुणे के पास के चिंचवाड़ा गांव से निकलकर यह जयकारा आज पूरे भारत में प्रसिद्ध हो गया है। क्या आप जानते हैं की गणपति बप्पा के नाम के साथ मोरया शव्द क्यों लगाया जाता है। इस जयकारे की शुरुआत कैसे और कव हुई।
गणेश महोत्सव के अवसर पर गणपति बप्पा मोरया का जयकारा क्यों लगाते हैं। यह बात सबको पता नहीं है। गणपति बप्पा के नाम के साथ मोरया शव्द कब और कैसे जुड़ा।मोरया का मतलब भगवान गणपती के नाम के साथ मोरया शब्द कैसे जुड़ा, इसके पीछे एक कहानी है। ये कहानी है भगवान गणपती के अनन्य भक्त मोरया गोसावी की। जिनकी भक्ति के कारण सदा-सदा के लिए उनका नाम गणपती के साथ जुड़ गया।
मोरया गोसावी भगवान गणपती के परम भक्त और सच्चे उपासक थे। संत मोरया का जन्म महाराष्ट्र में पुणे के करीब चिंचवाड़ा नामक गांव में हुआ था। संत मोरया गोसावी रोज सच्चे मन से गणपती बप्पा की पूजा करते थे।अंत में उन्होंने गणेश मंदिर के पास ही समाधि ली थी। भगवान गणपती के सच्चे उपासक होने के कारण मोरया गोसावी का नाम सदा के लिए गणपती बप्पा के नाम के साथ जुड़ गया।कहते हैं की भक्त और भगवान के अटूट संबंध दर्शाने के लिए और उन्हें सम्मान देने के लिए भक्त मोरया का नाम भगवान के नाम से जोड़ दिया गया। कारण जो भी रहा हो लेकिन भक्त मोरया का नाम भगवान के नाम से जुड़ कर सदा के लिए अमर हो गया। भगवान और उनके एक परम भक्त की यह कहानी है,जिसकी भक्ति और आस्था ने उन्हें अमर बना दिया। जिस कारण उनका नाम गणपती के साथ हमेशा-हमेशा के लिए जुड़ गया।
भक्त मोरया और उनसे जुड़े भगवान गणपती की कहानी बहुत ही पुरानी है। जहां भक्त की परम भक्ति और अपार आस्था के फलस्वरूप भगवान के साथ हमेशा के लिय जुड़ गया उनके भक्त का नाम। 15 वीं शतावदी में भगवान गणपती के एक परम भक्त हुए जिमका नाम मोरया गोसावी था। उनका जन्म महाराष्ट्र के पुणे शहर से करीब 20 किमी दूर चिंचवाड़ नामक गांव में हुआ था।बचपन से ही वे भगवान गणपती के परम भक्त थे। हर साल वे गणेश चतुर्थी के उत्सव पर पैदल ही चलकर मोरगांव भगवान गणपती के पूजा के लिए जाते थे। जैसे जैसे उनकी उम्र बढ़ने लगी उनकी भक्ति और विश्वास बढ़ता गया।
जब वे बूढ़े हो गये और बढ़ती उम्र के कारण मोरगांव अपने इष्ट के दर्शन के लिए नहीं जा पाते थे। वे लाचार और निराश रहने लगे। लेकिन भगवान की भक्ति नहीं छोड़ी।वे अपने जीते जी भगवान गणपती के दर्शन करना चाहते थे। कहते हैं की भगवान तो भक्त वात्सल्य होते हैं और वे अपने भक्तों की इच्छा को जरूर पूरा करते हैं।
गणपती ने अपने भक्त मोरया गोसावी की आस्था और भक्ति से खुश होकर उन्हें स्वप्न में दर्शन दिए। उन्होंने ने मोरया गोसावी से कहा की जब तुम सुबह नदी में स्नान कर रहे होगे उसी बक्त मैं तुम्हें किसी न किसी रूप में दर्शन दूंगा। अगले दिन जब मोरया गोसावी पास की नदी में स्नान कर रहे थे। तब जैसे ही वे स्नान के लिए कुंड में डुबकी लगाई और बाहर निकने तो उनके हाथ में भगवान गणेश की प्रतिमा थी।
भक्त मोरया गोसावी को रात के सपने की बात समझते देर नहीं लगी। उन्होंने अपने इष्ट देव के दर्शन पाकर अपने आप को धन्य समझा और उस मूर्ति को पास के मंदिर में रख कर दिन रात पूजा करने लगे।जैसे-जैसे मृत्यु का समय निकट आने लगा उनकी भक्ति प्रकाढ़ होती गयी। लोगों को विश्वास हो गया की वर्तमान में मोरया गोसावी से बड़ा गणपती बप्पा का कोई अन्य भक्त नहीं है।
धीरे-धीरे उनका नाम और प्रसिद्धि चारों ओर फैलने लगी। दूर -दूर से लोग मोरया गोसावी से आशीर्वाद लेने और दर्शन के लिए आने लगे। जब लोग उनसे आशीर्वाद लेते तब वे लोगों को आशीर्वाद वचन में मंगल मूर्ति कहते।इस प्रकार जो भी लोग मोरया गोसावी के दर्शन के लिए आते वे गणपती के साथ भक्त मोरया का नाम जोड़ कर जयकारा लगाते। इस प्रकार भक्त मोरया गोसावी का नाम गणपती के नाम से जुड़ गया।
इस प्रकार यह जयकारा पुणे के पास के एक गाँव से निकलकर महाराष्ट्र सहित पूरे भारत में फैल कर प्रसिद्ध हो गया। लोगों की मान्यता है की गणपती बप्पा के नाम के साथ उनके परम भक्त मोरया का नाम लेने से वे जल्दी प्रसन्न होते हैं।
जब मोरया गोसावी की मृत्यु हुई तब उसी मंदिर के पास मोरया गोसावी की समाधि बनाई गई। जब लोग मोरया गोसावी मंदिर में भगवान गणपती के पूजा के लिए लिए जाते हैं तब उनके परम भक्त मोरया गोसावी की समाधि को नमन करना नहीं भूलते। जिस मंदिर में मोरया गोसावी गणपती की मूर्ति को स्थापित कर पूजा करते थे वह आज गोसावी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। वहाँ हजोरों लोग प्रतिदिन गणपती बप्पा की पूजा करने के लिए आते हैं।
गोसावी मंदिर में साल में दो बार विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। गोसावी मंदिर में भगवान गणपती की अद्भुत मूर्ति विराजमान है। मोरया गोसावी मंदिर में साल में दो बार विशेष उत्सव का आयोजन की जाता है। पहला उत्सव यहाँ भादों के महीने में मनाया जाता है। जिसमें देखने देश भर से लोग पुणे के पास चिंचवाड़ गाँव आते हैं।दूसरा उत्सव माघ के महीने में आयोजित किया जाता है। इस उत्सव दौरान मोरया गोसावी मंदिर से पालकी निकाली जाती है। लोग पालकी के साथ गणपति बप्पा मोरिया के जयकारा के साथ मोरगाँव के गणपती मंदिर तक जाते हैं।
मोरया गोसावी को गणपतियों का प्रमुख आध्यात्मिक संत माना जाता है और उन्हें गणेश का "सबसे प्रसिद्ध भक्त" बताया गया है।मोरया गोसावी का जीवनकाल 13 वीं से 17 वीं शताब्दी के बीच का माना जाता है। मोरया गणेश को पूरी तरह समर्पित थे। जब उन्होंने गणेश के मंदिर मोरगाँव का दौरा करना शुरू किया तो कहते हैं कि लोकप्रिय गणेश मंदिर में कुछ लोग उनकी गणेश सेवा में बाधा डालने लगे। इस पर गणेश ने मोरया से कहा कि वह पूजा करने के लिए मोरया के लिए चिंचवाड़ में दिखाई देंगे, इसलिए मोरया मोरगांव से चिंचवाड चले गए, जहां उन्होंने स्वयं मोरया गणेश मंदिर बनवाया। कहते हैं कि मोरया ने अपने बनाये गणेश मंदिर के पास ही जीवित समाधि ले ली थी। मोरया के चिंतामणि नामक एक पुत्र था, जिसे गणेश के जीवित अवतार के रूप में माना जाता है और देव के रूप में संबोधित
किया जाता है। मोरया गोसावी ने भक्ति कविताओं की भी रचना की।
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