हम आपको साधना की एक ऐसी भूमि के बारे में बताने जा रहे हैं जो अपने आप में एक रहस्यलोक से कम नहीं है। कुछ साधकों, उनके शिष्यों को छोड़ दें तो बाकी दुनिया इससे अनजान है। इसका नाम ज्ञानगंज है जिसे लोग सिद्धाश्रम के रूप में भी जानते हैं। इसे कुछ लोग अद्धात्म का अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय भी कहते हैं। बड़े-बड़े महान साधकों ने यहां तप से अपने शरीर को तपाया और दैवी शक्ति पा ली। वे स्थूल और सूक्ष्म दोनों रूपों में अपने को ढाल सकते थे। एक वक्त दो जगह अपनी उपस्थिति दर्ज करा सकते थे।
अर्थात एक जगह रहते हुए अपने शिष्यों को दूसरी जगह भी साक्षात नजर आ सकते थे। भारत के महान संतों की महिमा, उनके आध्यात्मिक चमत्कारों और परमार्थ के कार्यों की बराबरी जगत को में कोई नहीं कर सकता। कितने साधकों, संतों के नाम से विद्यालय, अस्पताल आदि संचालित हो रहे हैं। इन्हें भले ही उनके शिष्यों ने बनवाया हो पर परमार्थ के लिए प्रेरणा तो उन्हें गुरुकृपा से ही प्राप्त हुई।
जिस ज्ञानगंज की हम चर्चा कर रहे हैं वह तिब्बत में कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील के पास स्थित है। यह बहुत दुर्गम स्थल है, यहां तक पहुंचना आसान नहीं। गूगल मैप में खोजने तक में यह परिणाम आता है कि ऐसा कोई जगह नहीं मिल सका (साक्षी है वीडियो के साथ दिया गया गूगल मैप सर्च रिजल्ट का फोटो) । इस स्थान के बारे में धार्मिक मान्यता यह भी है कि यहां जो मठ या आश्रम है उसका निर्माण ब्रह्मा जी के आदेश से स्वयं विश्वकर्मा जी किया था। यहां शरीर पूर्ण कर चुके महान साधकों की उपस्थिति का अनुभव आज भी होता है। ऐसा माना जाता है कि हिमालय पर्वत में सिद्धाश्रम नामक एक आश्रम है जहाँ सिद्ध योगी और साधु रहते हैं। तिब्बत में लोग इसे ही शम्भल की रहस्यमय भूमि के रूप में पूजते हैं। इस जगह को शांग्रीला, संभाला और सिद्धाश्रम भी कहते हैं। हिमालय में जैन, बौद्ध और हिन्दू संतों के कई प्राचीन मठ और गुफाएं हैं। मान्यता है कि गुफाओं में आज भी कई ऐसे तपस्वी हैं, जो हजारों वर्षों से तपस्या कर रहे हैं।
मान्यता है कि इस अलौकिक आश्रम का उल्लेख चारों वेदों के अलावा अनेकों प्राचीन ग्रन्थों जैसे वाल्मीकि रामायण में मिलता है। इसके एक ओर कैलाश मानसरोवर है, दूसरी ओर ब्रह्म सरोवर है और तीसरी ओर विष्णु तीर्थ है। यह भी मान्यता है कि राम, कृष्ण, बुद्ध, शंकराचार्य माँ आनन्दमयीऔर निखिल गुरु देव आदि दैवी विभूतियाँ सिद्धाश्रम में सशरीर विद्यमान हैं। यह भी माना जाता है कि इस ब्रह्मांड में अपने दिव्य कार्यों का निर्वहन करते हुए आध्यात्मिक रूप से सशक्त योगी सिद्धाश्रम के संपर्क में रहते हैं और वे नियमित रूप से यहां आते हैं।
सिद्धाश्रम को आध्यात्मिक चेतना, दिव्यता के केंद्र और महान ऋषियों की वैराग्य भूमि का आधार माना जाता है। सिद्धाश्रम को एक बहुत ही दुर्लभ दिव्य स्थान माना जाता है। लेकिन साधना प्रक्रिया के माध्यम से कठिन साधना और साधना पथ पर चलकर इस दुर्लभ और पवित्र स्थान में प्रवेश करने के लिए दिव्य शक्ति प्राप्त करना संभव होगा।
सिद्धाश्रम प्रबुद्ध लोगों या सिद्धों के लिए समाज है। जो व्यक्ति साधना में उच्च स्तर तक पहुँचता है, वह गुरु के आशीर्वाद से रहस्यमयी सिद्धाश्रम पहुँच सकता है, जो इस स्थान का नियमित स्वामी है।विशुद्धानंद परमहंस जो बाद में विशुद्धानंद सरस्वती के रूप में ख्यात हुए ने सबसे पहले सार्वजनिक रूप से इस स्थान की बात की थी। उन्हें बचपन में कुछ समय के लिए वहाँ ले जाया गया और उन्होंने लंबे समय तक ज्ञानगंज आश्रम में अपनी साधना की।
प्राचीनकाल में कई बड़े ऋषियों ने ज्ञानगंज में तपस्चर्या की और आध्यात्मिक उत्कर्ष की प्राप्ति की। यह भी मान्यता है कि हिमालय के सिद्धाश्रमों में रहने वाले संन्यासियों की उम्र रुक जाती है। ऐसा ही ज्ञानगंज के बारे में भी कहा जाता है। महान संत देवरहा बाबा भी ज्ञानगंज की यात्रा कर चुके थे। उनके बारे में प्रसिद्ध था कि वे जब चाहें स्थूल शरीर से सूक्ष्म शरीर में चले जाते थे। सिद्धि की प्राप्ति के लिए अन्य कई महान साधकों ने ज्ञानगंज की यात्रा की है।
यह एक पौराणिक घाटी है। यह कितनी पुरानी है, कितनी बड़ी है--कोई नहीं जानता।यह घाटी अद्भुत छटाओं से भरी पड़ी है। यहाँ अनेक योगाश्रमों, सिद्धाश्रमों और तांत्रिक मठों में हज़ारों की संख्या में निवास करने वाले साधकों, योगियों और तांत्रिकों के निवास हैं। दिव्य अवस्था प्राप्त कुछ योगी ऐसे हैं जो आकाशचारी भी हैं। कुछ विलक्षण साधक ऐसे भी हैं जो महाभारत काल के हैं और वहां रह कर साधना कर रहे हैं। जो संग्रीला घाटी से परिचित हैं, उनका कहना है कि प्रसिद्ध योगी श्यामाचरण लाहिड़ी के महागुरु अवतारी बाबा हैं जिन्होंने भगवान कृष्ण और आदिगुरु शंकराचार्य को भी दीक्षा दी थी।
काशी के महा महोपाध्याय पंडित गोपीनाथ कविराज के गुरु स्वामी विशुद्धानंद परमहंस देव सांग्रीला घाटी स्थित ज्ञानगंज मठ से जुड़े हुए थे। वे बाद में स्वामी विशुद्धानंद सरस्वती के नाम से ख्यात हुए। उन्हें गंध बाबा के नाम से भी जाना जाता था क्योंकि वे अपनी हथेलियां रगड़ते और सुंदर गंध पैदा कर देते थे। इतना ही नहीं वे सूर्य विज्ञानी भी थे। सूर्य की रश्मियों के माध्यम से वे फूलों का रंग बदल दिया करते थे। उनका नाम पश्चिम बंगाल के बर्दवान जिले में हुआ था और उनका मूल नाम भोलानाथ चट्टोपाध्याय था।
ज्ञानगंज में तीन तीन मुख्य केंद्र बताये जाते हैं-ज्ञानगंज मठ, सिद्ध विज्ञान आश्रम और योग सिद्धाश्रम। ज्ञानगंज मठ के आचार्य सदा योग के अनकूल संस्कार संपन्न शिष्यों की खोज में रहते हैं। मिल जाने पर उन्हें मठ में ले जाते हैं और शिक्षा-दीक्षा के बाद विद्या के प्रसार व प्रचार के लिए संसार में पुनः भेज देते हैं। स्वामी विशुद्धानंद परमहंस देव ऐसे ही एक शिष्य थे। उन्हें सूर्यविज्ञान में पारंगत किया गया था। स्वामी नीमानंद परमहंस देव उन्हें ज्ञानगंज मठ लेकर गए थे।
श्यामानंद परमहंस, भृगुराम परमहंस और दिव्यानंद परमहंस भी ज्ञानगंज मठ के कालजयी आचार्यों में से एक हैं। ज्ञानगंज में शिक्षा-दीक्षा ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए करनी पड़ती है। पॉल ब्रन्टन ने अपनी पुस्तक "गुप्त भारत की खोज", में इन प्रसंगों की चर्चा की है। इनकी भेंट हुआ था गंध बाबा से भी हुई थी।
गंध बाबा के नाम से प्रसिद्ध, स्वामी विशुद्धानंद सरस्वती जी गुलाम भारत में ही हुए थे। पॉल ब्रन्टन ने अपनी पुस्तक "गुप्त भारत की खोज", में इनकी चर्चा की है । इनकी भेंट गंध बाबा से हुई थी ।
जेम्स हिल्टन के उपन्यास “द लॉस्ट होराइजन” को पश्चिम में ज्ञानगंज की कहानी पहुंचाने का श्रेय जाता है।
उपग्रह तकनीक और आधुनिक मानचित्रण तकनीक से जहाँ पूरी दुनिया के किसी भी हिस्से को आसानी से देखा जा सकता है वहीं दुनिया के बहुत कम क्षेत्र ऐसे हैं जो पूरी तरह से छिपे हुए या अनदेखे हैं। इनमें ज्ञानगंज भी एक है। इसका जवाब ज्ञानगंज की प्रकृति में है।ये शहर एक भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक आयाम में एक साथ मौजूद है और इसे केवल प्रार्थना, ध्यान और अंततः ज्ञान के माध्यम से पहुँचा जा सकता है।
1942 में एक ब्रिटिश सेना अधिकारी एल.पी. फरल को स्थानीय संस्कृति और बौद्ध धर्म में उनकी मजबूत रुचि के कारण हिमालय के एक पर्वतीय क्षेत्र के राजा के साथ पिकनिक मनाने के लिए आमंत्रित किया गया था,जहां वह जीवन के बदलते अनुभव से गुजरने वाले थे।पहाड़ियों में रात गुजारने का इरादा करते हुए पिकनिक पार्टी में जब अंधेरा हो गया और जैसे ही ब्रिटिश सेना अधिकारी एल.पी. फरल सो गए तभी फैरेल को एक अलौकिक व्यक्ति द्वारा जगाया गया जिसने उसे पहाड़ पर आगे आने के लिए कहा।आतंकित होकर सेना का अधिकारी अपने डेरे में ही रहा। रात भर फिर से वह आभास उसे दिखाई दिया।
सुबह में फरल ने उस स्थान पर अपना रास्ता बनाने का फैसला किया जहां अज्ञात आगंतुक ने संकेत दिया था।जब वे वहाँ पहुँचे तो उनकी मुलाकात एक बूढ़े ऋषि से हुई।ऋषि फारेल का नाम जानते थे और एक अजीब रोशनी से चमकते थे।जब ऋषि ने सेना के अधिकारी को छुआ तो फरल ने स्वयं को एक अद्भुत विद्युत तरंग से भरा हुआ महसूस किया।
संत व्यक्ति ने फरेल को उस स्थान को खाली करने के लिए कहा जहाँ पर दिन में बाद में टेंट लगाया गया था और कहा कि उसी स्थान पर एक युवक पहुँचेगा।इस युवक की एक विशेष नियति थी और टेंट को स्थानांतरित नहीं किया गया तो संकट में पड़ जाओगे। फरल ने भी जैसा कहा गया था वैसा ही किया और पार्टी ने अपने टेंट को स्थानांतरित कर दिया।बाद में उस दिन एक युवक मौके पर पहुंचा, जहां पहले टेंट लगा था। देखते ही देखते सेना अधिकारी ने अपने आसपास की जमीन को बदल लिया। तभी एक प्रकाश ने पास के एक पेड़ को जला दिया और युवक ने अद्भुत चमत्कार किया।उसके आसपास फरल उन लोगों और इमारतों को देख सकता था जहां पहले घास और चट्टानों के अलावा कुछ नहीं था।अनुभव के अंत तक लड़के ने घोषणा की कि वह अपने सांसारिक संबंधों को त्यागने और ज्ञानगंज में प्रवेश करने के लिए तैयार है।फरल की पार्टी के किसी भी व्यक्ति ने उन दृश्यों को नहीं देखा जो उसने और युवक ने स्पष्ट रूप से देखा था। सेना के अधिकारी ने समझा कि उन्होंने केवल शंभला की एक झलक देखी थी, लेकिन यह उनके जीवन के अनुभव को बदलने के लिए पर्याप्त था।
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जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(०३-०९-२०२१) को
'खेत मेरे! लहलहाना धान से भरपूर तुम'(चर्चा अंक- ४१७७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर