हम सभी जानते हैं कि युद्धक्षेत्र में राजा दशरथ के प्राण बचाने के
बदले में कैकेयी ने उनसे वरदान मांगे थे। उसने कहा था जब जरूरत होगी वह यह वरदान
मांग लेगी। जब राम को युवराज बनाने की घोषणा दशरथ ने कर दी और जोर-शोर से
तैयारियां प्रारंभ हो गयीं तो कैकेयी की प्रिय दासी मंथरा कैकेयी के कान भरती है
कि युवराज तो उसके बेटे भरत कोहोना चाहिए। दरअसल देवताओं के अनुरोध पर सरस्वती
मंथरा की मति फेर गयी थी जिससे उसने कैकेयी को ऐसी मंत्रणा दी जो अयोध्या के लिए
दुसह दुख का कारण बनी। देवताओं ने यह कार्य सरस्वती ने इसलिए कराया क्योंकि वे राम
को अय़ोध्या से बाहर लाना चाहते थे ताकि वे राक्षसों, दुष्टजनों का वध कर सकें जो
ऋषि, मुनियों, देवताओं पर संकट ढा रहे थे।
इससे अलग एक प्रसंग आता है जिसमें कहा जाता है
कि राजा दशरथ ने कैकेयी से विवाह के समय उनके पिता को यह वचन दिया था कि उनकी बेटी
का पुत्र ही होगा उनके राज्य का उत्तराधिकारी। कहते हैं कि एक बार अयोध्या के राजा
दशरथ को कैकेय नरेश अश्वपति ने अपने महल में आमंत्रित किया। उनके स्वागत के लिए
सभी महल के द्वार पर उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। उनकी ख्याति से सभी परिचित थे। सभी उनके दर्शन के लिए उत्सुक थे। उनके स्वागत के लिए
रानी कैकेयी स्वयं लगी हुई थीं। जब राजा दशरथ की दृष्टि रानी कैकेयी पर पड़ी, तब वे उनसे बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने उनसे विवाह
करने की इच्छा प्रकट की। कैकेयी के पिता जानते थे कि राजा दशरथ विवाहित हैं इसलिए
वे उनसे अपनी पुत्री का विवाह नहीं करेंगे। लेकिन जब दशरथ बार-बार आग्रह करने लगे
तो कैकेयी के पिता राजा अश्वपति ने राजा दशरथ से कहा कि वे अपनी पुत्री कैकेयी का
विवाह तभी राजा दशरथ से करेंगे अगर वे यह वचन दें कि रानी कैकेयी के पुत्र को ही वे
अयोध्या के राज्य का उत्तराधिकारी बनायेंगे। राजा ने यह वचन दे दिया। कैकेयी से
दशरथ का विवाह हो गया। दहेज में कैकेयी की प्रिय दासी मंथरा को भी भेजा गया।
राजा दशरथ की पहली पत्नी कौशल्या
का कोई पुत्र नहीं था तो उन्होंने यह वचन ऐसे ही दे दिया। इसके बाद अयोध्या के
राजा दशरथ से कैकेयी का विवाह हो गया। विवाह के बाद कैकेयी बी मां ना बन सकी।.
इसके बाद राजा दशरथ का विवाह सुमिंत्रा से हुआ किन्तु वे भी माँ नहीं बन सकीं। राजा
दशरथ के कोई पुत्र न होने कारण वे बहुत दुखी रहते थे। उन्होंने अपने गुरु से
परामर्श किया तो उन्होंने पुत्रेष्टि यज्ञ का आयोजित करने की सलाह दी। राजा ने
वैसा ही किया। यज्ञ की समाप्ति में उन्होंने यज्ञ हेतु बनायी गयी चरु अर्थात खीर
अपनी रानियों को खिला दी। जिससे सबसे
पहले रानी कौशल्या के पुत्र राम का जन्म हुआनजो राजा दशरथ के बड़े पुत्र कहासाये।
इसके बाद रानी कैकेयी के पुत्र भरत हुए और फिर रानी सुमिन्त्रा को दो पुत्र लक्ष्मण और शत्रुघ्न हुए। इस तरह राजा दशरथ को चार
पुत्रों की प्राप्ति हुई।
रानी कैकेयी राजा दशरथ की सबसे
प्रिय पत्नी थीं। राजा दशरथ कैकेयी के सौन्दर्य और साहस के कायल थे। कैकेयी
सौन्दर्य की धनी होने के साथ ही युद्ध कौशल में
भी निपुण थी। वह राजा दशरथ के साथ युद्ध में भी उनका साथ देने जाती थी। एक बार
देवराज इंद्र सम्बरासुर नामक राक्षस से युद्ध कर रहे थे किन्तु वह राक्षस बहुत ही
बलशाली था। उसका सामना कोई भी देवता नहीं कर पा रहे था. ऐसे में वे राजा दशरथ के
पास सहायता के लिए गए. तब राजा ने उन्हें सम्बरासुर से युद्ध करने के लिए आश्वाशन
दिया और वे युद्ध के लिए जाने लगे, तभी रानी
कैकेयी भी उनके साथ जाने के लिए इच्छा जतायि। राजा दशरथ रानी कैकेयी को अपने साथ
युद्ध में ले गये। युद्ध प्रारंभ हुआ.। युद्ध के दौरान एक बाण राजा दशरथ के सारथी
को लग गया, जिससे राजा दशरथ थोड़े से डगमगा
गये। तब इनके रथ की कमान रानी कैकेयी ने सम्भाली। वे राजा दशरथ की सारथी बन गयीं।
इसी के चलते उनके रथ का एक पहिया गढ्ढे में फंस गया। सम्बरासुर नामक राक्षस लगातार
राजा दशरथ पर वार कर रहा था, जिससे राजा दशरथ बहुत अधिक घायल
हो गए। यह देख रानी कैकेयी ने रथ से उतर कर जल्दी से रथ के पहिये को गढ्ढे से बाहर
निकाला और खुद ही युद्ध करने लगी। वह राक्षस भी उनके पराक्रम को देख कर भयभीत हो
गया और वहाँ से भाग गया. इस तरह रानी कैकेयी ने राजा दशरथ के प्राणों की रक्षा की।
राजा दशरथ भी रानी कैकेयी से बहुत प्रभावित हुए उन्होंने रानी कैकेयी को अपने दो मनचाहे वरदान मांगने को कहा। रानी कैकेयी ने राजा दशरथ
से कहा – “आपके प्राणों की रक्षा करना तो मेरा कर्तव्य है.किन्तु
राजा ने उन्हें फिर भी वरदान मांगने को कहा। रानी ने कहा कि –“अभी मुझे कुछ नहीं चाहिए इन दो वरदानों की आवश्यकता भविष्य में जब कभी पड़ेगी तब मैं
मांग लूँगी।” तब राजा दशरथ ने उन्हें भविष्य
में दो वरदान देने का वादा कर दिया।.
रानी कैकेयी के पिता अश्वपति का
स्वाथ्य खराब होने के कारण उन्होंने भरत से मिलने की इच्छा जताई. रानी कैकेयी के
भाई युद्धाजीत ने राजा दशरथ से भरत को कैकेय आने के लिए कहा. तब भरत और शत्रुघ्न
दोनों ने कैकेय के लिए प्रस्थान किया। राजा दशरथ ने उसी समय राम को अयोध्या का
उत्तराधिकारी बनाने का निर्णय लिया।इससे सभी बहुत प्रसन्न हुए। रानी कैकेयी भी इस
बात से बहुत खुश हुईं, किन्तु रानी कैकेयी की दासी
मंथरा को यह पसंद नहीं आया. उसने रानी कैकेयी को इस बात पर खुश देख कर ईर्ष्या
जताई. उसने रानी कैकेयी को भड़काना शुरू कर दिया।
मंथरा ने रानी कैकेयी से कहा कि –“राजा दशरथ अपने वचन से मुकर रहे है उन्होंने तुम्हारे
पिता को यह वचन दिया था कि तुम्हारा पुत्र उनका उत्तराधिकारी बनेगा, फिर वे कौशल्या के पुत्र को राजा कैसे बना सकते हैं।. यह सुनकर रानी कैकेयी मंथरा पर बहुत क्रोधित हुई. मंथरा
रानी कैकेयी से कहने लगी कि –“ कैकेयी आप बहुत भोली हैं, आप राजा दशरथ का छल नहीं समझ पा रही हैं”. इस तरह मंथरा रानी कैकेयी को भड़काती रही। उसने रानी
कैकेयी से राम को वनवास भेजने के लिए कहा. फिर धीरे- धीरे रानी कैकेयी मंथरा की
बातों में आने लगी. फिर उन्होंने इस विषय पर मंथरा से सलाह ली कि अब उन्हें क्या
करना चाहिए. तब मंथरा ने उन्हें राजा दशरथ द्वारा दिए गए 2 वचनों के बारे में कहा. रानी कैकेयी को सब समझ आ गया कि
उन्हें क्या करना है.
रानी कैकेयी ने अन्न – जल सब का त्याग कर दिया और कोप भवन में चली गई. राजा
दशरथ राम के राज्याभिषेक के लिए बहुत खुश थे सारा महल खुशियाँ मना रहा था. यह
ख़ुशी राजा अपनी प्रिय पत्नी कैकेयी से बाँटना चाहते थे और वे इसके लिए कैकेयी के
कक्ष में जाते है. वहाँ जाकर कैकेयी की अवस्था देखकर वे उनसे उनकी व्यथा के बारे
में पूछते है. कैकेयी उनकी बात का कोई जवाब नहीं देती. तब राजा उन्हें बताते है कि
आज उन्होंने राम का राज्याभिषेक करने का फैसला लिया है. फिर भी कैकेयी कुछ नहीं
कहती है. राजा द्वारा फिर से पूछे जाने पर कैकेयी उनसे कहती है कि -आप अपने दिए
हुए वचनों से कैसे मुकर सकते है? आपने मेरे पुत्र को उत्तराधिकारी
बनाने का वादा मेरे पिता से किया था फिर आप राम को राजा कैसे बना सकते है।
यह सुनकर राजा चौंक जाते है, और कैकेयी को बहुत समझाते है किन्तु कैकेयी फिर भी नहीं
मानती। राजा दशरथ भी अपने फैसले पर अडिग रहते है तब रानी उनके द्वारा दिए गए दो वरदान मांगने को कहती है. राजा दशरथ वरदान देने का वादा
कर चुके होते हैं तो वे इससे पीछे भी नहीं हठ सकते थे. रानी कैकेयी उनसे कहती है
कि – “मेरा पहला वर है मेरे पुत्र भरत का राज्याभिषेक, और मेरा दूसरा वर है राम को 14 वर्ष का वनवास”. यह सुनकर
मानों राजा के पैरों तले जमीन ही खिसक गई हो. वे इससे बहुत अधिक दुखी होते है। अंतत: कैकेयी के हठ के चलते दशरथ के
प्राण जाते हैं और राम, लक्ष्मण, सीता को वनवास जाना पड़ता है।
इस आलेख पर आधारित वीडियो देखने से लिए कृपया यहां क्लिक कीजिए
No comments:
Post a Comment