आपने यह तो अवश्य सुना होगा कि गणेश चतुर्थी अर्थात भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को चंद्र दर्शन से कलंक लगता है लेकिन शायद हर किसी को इससे जुड़ी घटना के बारे में पता नहीं होगा। यह तो सभी को पता है कि गणेश जी को मोदक अर्थात लड्डू और मिठाई बहुत पसंद है। अपनी इसी रुचि के चलते किसी के भी निमंत्रण को स्वीकार कर लेते हैं और पेट भर मिठाई खाते हैं।
एक बार की बात है धन के देवता कुबेर ने भगवान शिव और माता पार्वती को भोज पर बुलाया, लेकिन भगवान शिव ने कहा कि मैं कैलाश छोड़कर कहीं नहीं जाता हूं और पार्वती जी ने कहा कि मैं अपने स्वामी को छोड़ कर कहीं नहीं जा सकती। दोनों ने कहा कि आप हमारे स्थान पर गणेश को ले जाओ।
तब कुबेर गणेश जी को अपने साथ भोज पर ले गए। वहां उन्होंने पेट और मन भर कर मिठाई और मोदक खाये। वापस आते समय कुबेर ने उन्हें मिठाई का थाल देकर विदा किया। लौटने समय चन्द्रमा की चांदनी में गणेश जी अपने चूहे पर बैठ कर आ रहे थे, लेकिन ज्यादा खा लेने के कारण बड़ी ही मुश्किल से अपने आप को संभाल पा रहे ।उसी समय अचानक चूहे का पैर किसी पत्थर से लग कर डगमगाने लगा। इससे गणेश जी चूहे के ऊपर से गिर गए और पेट ज्यादा भरा होने के कारण अपने आप को संभाल नहीं सके और मिठाइयां भी यहां-वहां गिर गईं।
यह सब चन्द्र देव ऊपर से देख रहे थे। उन्होंने जैसे ही गणेश जी को गिरते देखा, तो अपनी हंसी रोक नहीं पाए और उनका मजाक उड़ाते हुए बोले कि जब खुद को संभाल नहीं सकते, तो इतना खाते क्यों हो।चन्द्रमा की बात सुन कर गणेश जी को गुस्सा आ गया। उन्होंने सोचा कि घमंड में चूर होकर चन्द्रमा मुझे उठाने के लिए किसी प्रकार की सहायता नहीं कर रहा है और ऊपर से मेरा मजाक उड़ा रहा है। इसलिए, गणेश जी ने चन्द्रमा को श्राप दिया कि जो भी गणेश चतुर्थी के दिन तुमको देखेगा उस पर कलंक लगेगा, वह लोगों के बीच चोर कहलाएगा।
श्राप की बात सुन कर चन्द्रमा घबरा गए और सोचने लगे कि फिर तो मुझे कोई भी नहीं देखेगा। उन्होंने शीघ्र ही गणेश जी से क्षमा मांगी। कुछ देर बाद जब गणेश जी का गुस्सा शांत हुआ, तब उन्होंने कहा कि मैं श्राप तो वापस नहीं ले सकता। लेकिन तुमको एक वरदान देता हूं कि अगर वही व्यक्ति अगली गणेश चतुर्थी को तुमको देखेगा, तो उसके ऊपर से चोर होने का श्राप उतर जाएगा। तब जाकर चन्द्रमा की जान में जान आई।
इसके अलावा एक और कहानी सुनने में आती है कि गणेश जी ने चन्द्रमा को उनका मजाक उड़ाने पर श्राप दिया था कि वह आज के बाद किसी को दिखाई नहीं देंगे। चन्द्रमा के मांफी मांगने पर उन्होंने कहा कि मैं श्राप वापस तो नहीं ले सकता, लेकिन एक वरदान देता हूं कि तुम माह में एक दिन किसी को भी दिखाई नहीं दोगे और माह में एक दिन पूर्ण रूप से आसमान पर दिखाई दोगे। बस तभी से चन्द्रमा पूर्णिमा के दिन पूरे दिखाई देते हैं और अमावस के दिन नजर नहीं आते।
कहते हैं कि यही गणेश चतुर्थी का चांद भगवान श्री कृष्ण ने देख लिया था उन पर भी समयन्तक मणि चुराने का आरोप लगा था । इस बारे में यह कथा है कि गणेश चतुर्थी के दिन भगवान श्री कृष्ण ने अनजाने में चंद्रमा को देख लिया था। इसका परिणाम यह हुआ कि इन पर एक व्यक्ति की हत्या का आरोप लगा। भगवान श्री कृष्ण को इस आरोप से मुक्ति पाने के लिए काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था।नारद जी से जब भगवान श्री कृष्ण ने अपने ऊपर लगे झूठे आरोपों का कारण पूछा तब नारद जी ने श्री कृष्ण भगवान से कहा कि यह आरोप भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन चांद को देखने के कारण लगा है। इस चतुर्थी के दिन चांद को देखने से कलंक लगने की वजह नारद जी ने यह बताई की, इस दिन गणेश जी ने चन्द्रमा को शाप दिया था। इस संदर्भ में ऐसी भी कथा है कि चन्द्रमा को अपने रूप का बहुत अभिमान था। गणेश चतुर्थी के दिन गणेश जी के गजमुख एवं लबोदर रूप को देख कर चन्द्रमा ने हंस दिया। गणेश जी इससे नाराज हो गये और चन्द्रमा को शाप दिया कि आज से जो भी तुम्हें भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को देखेगा उसे झूठा कलंक लगेगा।गणेश जी के शाप से चन्द्रमा दुखी हो गये और घर में छुप कर बैठ गये। चन्द्रमा की दुःखद स्थिति को देख कर देवताओं ने चन्द्रमा को सलाह दी कि मोदक एवं पकवानों से गणेश जी की पूजा करो। गणेश जी के प्रसन्न होने से शाप से मुक्ति मिलेगी। तब चन्द्रमा ने गणेश जी की पूजाकी और उन्हें प्रसन्न किया। गणेश जी ने कहा कि शाप पूरी तरह समाप्त नहीं होगा ताकि अपनी गलती चन्द्रमा को याद रहे। दुनिया को भी यह ज्ञान मिले की किसी के रूप रंग को देखकर हंसी नहीं उड़ानी चाहिए। इसलिए अब से केवल भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन जो भी चन्द्रमा को देखेगा उसे झूठा कलंक लगेगा।
यदि अनिच्छा से चंद्र-दर्शन हो जाये तो व्यक्ति को भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए ‘ॐ गं गणपतये नम:’ मंत्र का जप करने और गुड़ मिश्रित जल से गणेशजी को स्नान कराने एवं दूर्वा व सिंदूर प्रदान करने से कलंक और विघ्न का निवारण होता है।
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