Tuesday, September 14, 2021

मंदिर जहां चोरी करने से होती है मनोकामना पूरी


अगर आपसे कहा जाये कि अपने देश में एक ऐसा भी मंदिर है जहां मनोकमना पूरी करने के लिए भक्तों को वहां चोरी करनी पड़ती है तो आपको विश्वास नहीं होगा। आप उलटे प्रश्न कर सकते हैं कि चोरी वह भी पूजा की पवित्र जगह मंदिर में यह कैसी बात हुई, आप माने या ना मानें अपने देश में ऐसा एक मंदिर है जहां भक्तों को अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए चोरी करनी पड़ती है। इन्हीं में से एक अनोखा मंदिर है सिद्धपीठ चूड़ामणि देवी मंदिर। यह मंदिर उत्तराखंड के रुड़की से 19 किलोमीटर दूर भगवानपुर के चुडिय़ाला गांव में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण 1805 में लंढौरा रियासत के राजा ने करवाया था। एक बार राजा शिकार करने जंगल में आए हुए थे कि घूमते-घूमते उन्हें माता की पिंडी के दर्शन हुए। राजा के कोई पुत्र नहीं था। इसलिए राजा ने उसी समय माता से पुत्र प्राप्ति की मन्नत मांगी। राजा की इच्छा पूरी होने पर उन्होंने यहां मंदिर का निर्माण करवाया। इस मंदिर को 51वीं  शक्तिपीठ माना जाता है। कहते हैं यहां माता पार्वती की चूड़ामणि गिरी थी। यह कथा माता सती के पिता दक्ष के यज्ञ से जुड़ी है। जब दक्ष ने अपने यहां यज्ञ का आयोजन किया तो सारे देवताओं को आमंत्रित करने के साथ ही अपने सारे मित्रों, संबंधियों को भी बुलाया। लेकिन उन्होंने अपनी पुत्री सती और जामाता शंकर को आमंत्रित नहीं किया। सती को जब इसका पता चला कि उनके पिता यज्ञ कर रहे हैं तो उन्होंने शंकर जी से कहा कि वे भी पिता के यज्ञ में जाना चाहती हैं। इस पर शंकर जी समझाया कि सती तुम्हारे पिता ने मुझे आमंत्रित नहीं किया क्ओंकि वे मुजसे क्रुद्ध हैं लेकिन उन्होंने तुम्हें भी आमंत्रित नहीं किया। बिना आमंत्रण के ऐसे आयोजनों में जाना सर्वदा अपमान या अनर्थ का कारण बनता है। लाख समझाने पर भी जब सती नहीं मानी तो शंकर जी ने उन्हें अनुमति दे दी लेकिन अपने गणों को भी उनके साथ कर दिया। सती जब पिता के घर पहुंचीं तो वहां कोई भी उनसे अच्छी तरह से नहीं मिली सिर्फ माता को छोड़ कर। बहनें मिलीं भी तो व्यंग्य से मुसकराती हुईं जैसे मन ही मन कह रही हों लो आ गयी बिना बुलायी मेहमान। सती ने यज्ञ मंडप में जाकर देखा हर देवता के लिए आसन और उनका भाग दिया गया था पर सती के पति शंकर को उनका भाग नहीं दिया गया था। सती ने अपने पति का इस तरह अपमान करने का कारण पिता दक्ष से पूचा तो उन्होंने उन्हें भी अपमानजनक शब्द कहे। इससे क्रोधित होकर सती ने यज्ञ कुंड में ही कूद कर आत्मदाह कर लिया। उनके साथ गये शिव गणों ने वापस आकर सारी घटना शिव जी को बतायी। इस पर शिवजी बहुत क्रुद्ध हुए और वहां गये जहां दक्ष ने यज्ञ किया था। उन्होंने यज्ञ कुंड से सती का अधजला शव उठाया और गणों को यज्ञ विध्वंस करने और सबको यथोचित दंड देने का आदेश देकर कंधे पर सती का शव लाद कर चारों ओर क्रोध से नाचने लगे। उनके क्रोध से ब्रह्मांड कांप उठा।जब विष्णु ने यह देखा तो उन्होंने सोचा अगर इन्हें रोका ना गया तो ब्रह्मांड संकट में प़ड़ जायेगा। उन्होंने अपना चक्र चला दिया जिससे सती के एक-एक अंग कट कर गिरने लगे। ये अंग जहां-जहां गिरे वे स्थान शक्तिपीठ कहलाते हैं। जिस मंदिर का हम यहां जिक्र कर रहे हैं वहां सती की चूड़ामणि गिरी थी इसीलिए इसका नाम चूड़ामणि पड़ा। लोग इसे 51 वां शक्तिपीठ भी कहते हैं।

जहां से जुड़ी मान्यता है कि यहां चोरी करने पर हर व्यक्ति की मनोकामना पूरी होती है। रुड़की के चुड़ियाला गांव स्थित प्राचीन सिद्धपीठ चूड़ामणि देवी मंदिर में पुत्र प्राप्ति की इच्छा रखने वाले पति-पत्नी माथा टेकने आते हैं।
मान्यता है कि जिन्हें पुत्र की चाह होती है वह जोड़ा यदि मंदिर में आकर माता के चरणों से लोकड़ा  अर्थात लकड़ी का गुड्डा चोरी करके अपने साथ ले जाएं तो बेटा होता है। उसके बाद बेटे के साथ माता-पिता को यहां माथा टेकने आना होता है। कहा जाता है कि पुत्र होने पर भंडारा कराने के साथ ही दंपति को पहले मंदिर से ले जाए गए लोकड़े के साथ ही एक अन्य लोकड़ा भी अपने पुत्र के हाथों से चढ़ावाना पड़ता है। सती माता का चूड़ा रुडकी के इस घनघोर जंगल में गिर गया था, जिसके बाद यहां पर माता की पिंडी स्थापित किये जाने के साथ ही भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया। यह प्राचीन सिद्ध पीठ मंदिर बाद में श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बन गया। यहां माता के दर्शन करने के लिए श्रद्धालु दूरदराज से आते हैं।

माता के मंदिर में माता के चरणों में हमेशा एक लोकड़ा रहता है और इसी लोकड़ा को चुरा कर दंपति ले जाते हैं। इसे चोरी करने के बाद ही उन्हें पुत्र रत्न का वरदान माता देती हैं और जब पुत्र हो जाता है तो दंपति पुत्र के साथ वह लोकड़ा लेकर आते हैं और इसके साथ एक और नया लोकड़ा ले आते हैं। इसे माता के चरणों में वापस रख दिया जाता है। उसके बाद दंपति माता के आर्शीवाद से पाए पुत्र के हाथों भंडारा करवाते हैं।

लोकड़ा एक प्रकार का लकड़ी का खिलौना होता है जिसे पुत्र का प्रतीक माना जाता है। माता चूड़ामणि के चरणों में ये लोकड़ा रखा रहता है। जिस दंपति को पुत्र चाहिए होता है वह इसे चुरा कर ले जाते हैं और पुत्र होने के के बाद अषाढ़ माह में अपने पुत्र के साथ मां के मंदिर आते हैं और यहां फिर मां की पूजा अर्चना के बाद एक और लोकड़ा चढ़ाते हैं।

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