Tuesday, January 30, 2024

और इस तरह उदयन शर्मा बन गये ‘रविवार’ के संपादक

 
आत्मकथा-59


सुरेंद्र प्रताप सिह जी के टाइम्स ग्रुप ज्वाइन करने की खबरों के बीच अचानक एक दिन रविवार के दिल्ली में विशेष संवददाता के रूप में काम करनेवाले उदय शर्मा हमारे प्रफुल्ल सरकार स्ट्रीट के कार्यालय में पधारे। एसपी सिंह जी ने सभी से उनका परिचय कराया।हमारे एक वरिष्ठ सहयोगी से उनका परिचय कराया गया तो एस पी सिंह ने यह भी जोड़ दिया-तुम्हारी लिखी कापी का पोस्टमार्टम यही करते हैं।

 यह सुन कर उदयन हमारे उस सहयोगी से बोले-आपसे एक निवेदन है कि आप मेरी लिखी कापी का संपादन करें कृपया उसको रिराइट ना करे। मेरी अपनी एक अगर स्टाइल जो हर वयक्ति की होती। यह जरूरी है कि लेखक की लिखी कापी में वह दिखे। होता यह है कि आपक संपादन से उस रिपोर्ट में उदयन शर्मा तो नजर आता नहीं। मैं भी हिंदी जानता हूं।

जाहिर है कि उदयन शर्मा के इस जवाब से हमारे वे वरिष्ठ सहयोगी झेंप गये और बगलें झांकने लगे।

आगे बढ़ने के पहले उदयन जी के बारे में बताते चलें। उदयन शर्मा जी के पिता जी का नाम श्रीराम शर्मा था। श्रीराम शर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले में हुआ था। ऐसा माना जाता है कि हिदी में शिकार कथा लेखन का प्रारंभ श्रीराम शर्मा ने ही किया था। उनकी कई प्रकाशित पुस्तकें हैं। उन्होंने पत्रकारिता भी की। वे प्रताप के संपादक रहे उसके बाद वे विशाल भारत के संपादक बने।

 इससे लगता है कि पत्रकारिता के संस्कार और प्रेरणा उदयन जी को विरासत में ही मिली है।

उदयन शर्मा 


उदयन जी की शिक्षा दीक्षा आगरा में हुई। पत्रकारिता में भी उन्होंने कई कमाल किये। रविवार के विशेष संवाददाता के रूप में उन्होंने एक बार बहत ही साहसिक कार्य किया.। उन्होने अपने एक मित्र बंगाली पत्रकार के साथ उस समय फूनन देवी का इंटरवयू लेने की बात सोची जब वह बीहड़ में थी। उस वक्त वह मध्यप्रदेश के भिंड के बीहड़ों में थी। उस इंटरव्यू में उन्होंने जिक्र किया था कि-हमारे पैरों में नार्थ स्टार के जूते थे और फूलन देवी के पैरों में भी वही जूते थे।

दिल्ली में रविवार के विशेष संवाददाता के रूप में अक्सर उदयन जी शानदार रिपोर्ट तो भेजते ही थे वे दिल्ली डायरी के रूप में एक साप्ताहिक स्तं

भ कुतुबनामा भी लिखते थे। यह एक तरह से दिल्ली डायरी थी। अक्सर उनकी लिखी विशेष रिपोर्ट की चर्चा हुआ करती थी। वे बड़े लिक्खाड़ देते थे। हर दूसरे सप्ताह उनकी कोई ना कोई विशेष रिपोर्ट आ ही जाती थी जो चर्चित भी खूब होती थी।

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दिल्ली लौटने के कुछ दिन बाद उदयन शर्मा फिर कोलकाता कार्यालय आये। उस दिन एसपी सिंह ने रविवार के हम सभी सदस्यों को अपने कोलकाता के पाम एवेन्यू स्थित फ्लैट में शाम को चाय के लिए बलाया। हमारे साथ रविवार में योगेंद्र कुमार लल्ला भी जुड़ चुक थे क्योकि बच्चों की जिस हिंदी पत्रिका मला के वे संपादक थे वह बंद हो चुकी थी और उन्हें रविवार के संपादकीय सदस्य के रूप में रख लिया गया था। लल्ला जी कोलकाता के बांगुर एवेन्यू में रहते थे। उन्हें कार्यालय की ओर से कार की सुविधा लेने की सहूलियत थी। मेरा घर कोलकाता के कांकुडगाछी इलाके में था जो उनके बांगुर एवेन्यू वाले घर के रास्ते में ही पड़ता है। वे अक्सर आफिस से लौटते वक्त मुझे अपनी कार में साथ ले लेते और कांकुड़गाछी में उतार देते थे।

  लल्ला जी को भी यह पता चल गया था कि एसपी सिंह टाइम्स ग्रुप में जाने वाले हैं।  उम्मीद लगाये थे कि वरिष्ठ होने के कारण एस पी सिंह के जाने के बाद उनको संपादक बनने का मौका मिल सकता है।

 मैं लल्ला जी के साथ ही पाम एवेन्यू के एस पी सिंह के फ्लैट गया। हमें यह देख कर आश्चर्य हुआ कि उदयन शर्मा वहां पहले से मौजूद हैं। हम लोगों ने चाय पी उसके बाद कुछ देर तक बातचीत होती रही। इसके बाद एसपी सिंह  अचानक घोषणा की-जैसा कि आप सबको पता ही है कि मैं टाइम्स ग्रुप ज्वाइन करने जा रहा हूं। मेरे बाद रविवार के संपादक उदयन शर्मा होंगे।

 जाहिर है कि यह हम सब लोगों के लिए आश्चर्य की तरह था। इस घोषणा के बाद कुछ चेहरों में तो मुसकान तैर गयी और किसी के चेहरे पर उदासी छा गयी जिसे छिपाने की नाकाम कोशिश वे करते रहे।

 एसपी सिंह के घर का चाय चक्रम खत्म होने के बाद हम लट पड़े। मैं भी ल्ल्ला जी के साथ उनकी कार मे घर लौटने के लिए बैठ गया। रोज जब उनके साथ लौटता था तो मेरा इलाका कांकुड़गाछी आते तक हम दोनों में खूब बातें होती थीं लेकिन उस दिन वे पूरे सफर भर खामोश रहे। मैं उनकी इस खामोशी की वजह जानता था और उनके चेहरे पर तैरती उदासी भी मैं साफ भांप पा रहा था। (क्रमश:)















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