Wednesday, May 15, 2024

जब एक दवा के रिएक्शन ने मेरी जिंदगी तबाह कर दी


 आत्मकथा-62


आत्मकथा की पिछली किस्त में मैंने रविवार में अपने संपादकीय साथी असीम चक्रवर्ती का जिक्र किया था। असीम भाई ने भी रविवार के फिल्मी विशेषांक को लिखने में भूमिका निभायी थी। असीम भाई के रविवार में प्रवेश की कहानी भी अनोखी ही है। एक दिन उदयन जी ने मुझे बुलाया और एक पत्र थमाते हुए कहा-पंडित इसे पढ़ो। पत्र में लिखनेवाले ने रविवार जैसी सार्थक और साहसी पत्रिका में काम करने का अवसर मिले तो मैं अपना सौभाग्य समझूंगा। पत्र में यहां तक लिखा गया था कि रविवार में रह कर सीखने का मौका मिलना भी मेरे लिए बात होगी। पत्र इलाहाबाद के किसी असीम चक्रवर्ती ने लिखा था।

 जब मैं पत्र पढ़ चुका तो उदयन जी ने पूछा-पंडित क्या कहते हो?

मैंने कहा-जिसने इतना आग्रह किया है रविवार की पत्रकारिता से इतना प्रभावित है उसका अपनी टीम में होना अच्छा ही होगा। अगले ने यहां तक आग्रह किया है कि वह सीखने के लिए बिना पैसा लिये भी काम कर सकता है।

उदयन जी बोले-नहीं वेतन के बगैर यहां काम नहीं कराया जाता। क्या करें बुला लेते हैं।

मैने काह-जी बुला लीजिए पंडित जी।

 और इस तरह भाई असीम चक्रवर्ती इलाहाबाद से आकर रविवार की टीम में शामिल हो गये। असीम भाई हिंदीभाषी बंगाली है। मुझे यह कहने में संकोच नहीं कि कुछ दिन में ही वे मेरे अच्छे मित्र हो गये। बाद वे मुंबई चले गये औत स्वतंत्र  पत्रकारिता करने लगे।

हमारे उदयन जी ने बीच में एक चुनाव भी लड़ा लेकिन उसमें विजयी नहीं हो सके। उनकी प्रखर पत्रकारिता और संपादन में रविवार की यात्रा आगे बढ़ती रही। रविवार का जो मूल मंत्र  न दैन्यम न पलायनम सुरेंद्र प्रताप सिंह ने तय किया था वह उदयन जी के समय भी बदस्तूर जारी रहा।

कहावत है ना –सदा दिन जात ना एक समान। मेरे साथ कुछ ऐसी घटना घटी जिससे मेरा जीवन संकट में पड़ गया। हुआ यह कि अचानक मुझे मलेरिया हो गया। ज्वर उतर ही नहीं रहा था तो एक लोकल डाक्टर को दिखाया। उन्होंने दवा दी तो एक सप्ताह में ज्वर उतर गया। मैं उनसे मेडिकल सर्टिफिकेट लेने गया ताकि ड्यूटी ज्वाइन कर सकूं। शाय़द मेरी गलती हुई कि मैंने कहा कि पेट की तकलीफ के लिए कोई दवा लिख दीजिए। मुझे पता नहीं था कि मेरा यह आग्रह ही मेरे दुख का कारण बन जायेगा। जो दवा उन्होंने मुझे प्रेसक्राइब थी उसका नाम था पेनीनार्म। मैं घर आया खाना खाया और वह टेबलेट खाकर आफिस चला गया। जब की यह बात है उस समय उदयन जी दिल्ली गये हुए थे। योगेंद्र कुमार लल्ला ही कार्यालय संभाल रहे थे.। मुझे आफिस पहुंचे अभी दो घंटे ही हुए होंगे कि अचानक मेरी तबीयत घबडाने लगी और मैंने इशारे से अपने सहयोगियो तो बताया कि मेरी तबीयत बहुत खराब हो रही है। इतना कहते कहते मैं बेहोश होकर कुर्सी पर ही निढाल हो गया। लल्ला जी और मेरे दूसरे साथी दौड़े आये मेरे सिर पर पानी डाला गया और टेबल फैन मेरे पास लाकर चला दिया गया जिससे सिर पर हवा लगे। कुछ मिनट बाद मुझे होश तो आ गया लेकिन घबडाहट नहीं जा रही थी। लल्ला जी ने कहा टैक्सी मंगवाये देते हैं आप घर चले जाओ।

 मैने आग्रह किया कि मेरे साथ किसी को कर दीजिए पता नहीं रास्ते में क्या हो। टैक्सी बुलायी गयी। मेरे साथ कार्यालय के ही सहयोगी जगदीश श्रीवास्तल को कर दिया गया। संपादकीय विभाग के कुछ साथियों ने पकड़ कर मुझे टैक्सी मैं बैठा दिया और ढांढ़स बंधाते रहे कि घबराइए मत सब ठीक हो जायेगा। वे हिम्मत बंधा रहे थे लेकिन मैं समझ रहा था कि यह दवा का रिएक्शन है। मैंने साथ चल रहे जगदीश भाई से कहा रास्ते में सन्मार्ग कार्यालय में भैया हैं मुझे टैक्सी में छोड़ कर आप उन्हें बुला लो। जगदीश भैया को बुला लाये। भैया भी मेरी हालत देख  परेशान हो गये। घर पहुंच कर भैया बोले कि गैस सिर पर चढ़ गयी इसीलिए चक्कर आ गया होगा। गैस के लिए उन्होंने कुछ चूर्ण दिया पर सब बेकार मेरी तबीयत और खराब होती गयी। इसके बाद भैया उस डाक्टर के पास ले गये। दुर्भाग्य देखिए यह दुर्गापूजा का वक्त था और डाक्टर साहब मार्केटिंग के लिए गये थे। काफी देर प्रतीक्षा कर के लौट आये। परेशानी बढ़ती ही जा रही थी। शाम को फिर डाक्टर के पास गये तो वे बोले आप पहले आते तो इंजेक्शन लगा देते अब एक टेबलेट लिख देते हैं उससे ठीक हो जायेगा। हम लौट आये टेबलेट खाया मगर कोई लाभ नहीं हुआ। एक तरफ को जबान टेढ़ी हो रही थी और गला सूख रहा था। किसी तरह रात बीती दूसरे दिन होम्योपैथी की दवा की पर स्थित जस की तस रही। भैया एक मित्र होम्योपैथ थे उनका चैंबर मध्य कोलकता में था। मुझे टैक्सी में ले जाया जा रहा था बीच में ही तबीयत इतनी घबड़ाने लगी कि वापस घर लौटना पड़ा। यहां बताता चलूं कि मुझे किसी परिचित डाक्टर से पता चला कि जो दवा आपको  प्रेसक्राइब की गयी थी उस पर अभी ट्रायल चल रहा है। कुछ दिन में मेरी हालत यह हो गयी कि मेरे गले से पानी या कोई दूसरा तरल पदार्थ भी नीचे नहीं उतरने लगा।

भैया के किसी डाक्टर मित्र ने उन्हें एक एलोपैथी के डाक्टर का नाम सुझाया। उनका चैम्बर कोलकाता के गणेश टाकीज के पास था। उन्होंने थोड़ी देर मुझे चके किया उसके बाद साथ गये मेरे भैया से कहा- इनके बच्चे भी हैं क्या। भैया ने स्वीकृति में सिर हिला दिया।

इसके बाद डाक्टर ने कहा –उन बच्चों की देखभाल कौन करेगा।

डाक्टर की यह बात सुनते ही भैया की आंखें भर आयीं। वे डाक्टर की कही बात में अंतर्निहित भांप गये थे। मैंने भैया से संकेत किया कि यहां से चलें।

  भैया मेरे साथ बाहर निकल आये। मैंने कहा कि कष्ट में भले हूं मगर मैं जिंदा हूं आप रोइए मत।

यहां यह बताता चलूं कि जो अच्छे डाक्टर हैं वे गंभीर बात  भी सीधे रोगी को ना बता कर परिवार के सदस्य को समझा देते हैं।

कुछ ही दिनों में मेरी हालत यह हो गयी थी कि मैं खुद अपने को पहचान नहीं पा रहा था। यहां दी गयी फोटो उसकी गवाह है।


 जब घर लौटे तो मैंने डाक्टर का लिखा पर्चा देखा उसमें एक टेस्ट लिखा था बेरियम एक्सरे। पता किया तो जाना कि इसमें कोई रंगीन द्रव पिला कर गले से कैथेटरृ से जुड़े कैमरे को अंदर डाला जाता कि कहीं बीच में यूसोफोगस के पास कोई अब्ट्रैक्शन या बाधा तो नहीं जिससे दूध, पानी या दूसका द्रव पदार्थ अंदर ना जाकर नाक से निकल जाता है।

 मैंने भैया से कहा- मानाकि इस टेस्ट में तकलीफ होगी लेकिन रोग का कारण तो पता लग जायेगा। इसे करा ही लेते हैं।

 भैया ने पता किया कि कहीं बेरियम एक्सरे होता है। पता चला हमारे इलाके से कुछ दूर उल्टाडांगा के सुदर्शन चक्रवर्ती मेमोरियल सेंटर में यह टेस्ट होता है। भैया दूसरे दिन ही उस सेंटर में गये। उन्होंने रिसेप्शन में बैठी लड़की को डाक्टर का प्रेसक्रिप्शन दिखा कर पूछा-यहां बेरियम एक्सरे होता है क्या।

 लड़की भैया को गौर से देखा तो समझा की वे बहुत दुखी और चिंतित दिख रहे थे।

 उस लड़की ने कहा कि-हमारे यहां बेरियम एक्सरे होता है पहले आप बताइए बात क्या है।

भैया ने मेरी हालत के बारे में विस्तार से बता दिया।

इस पर उस लड़की ने कहा-हमारे यहां एक डाक्टर असीम चटर्जी बैठते हैं आप अपने भाई को उन्हें दिखा लीजिए वे कहेंगे तो बेरियम एक्सरे करा लीजिएगा।

 सच कहूं जैसे किसी तरह से ईश्वर ने उस लड़की के माध्यम से यह सुझाव दिया जो मेरे भैया को भी कुछ ढांढ़स बंधा दिया। (क्रमश:)

 

 

 

 

 

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