Sunday, June 9, 2024

एक डाक्टर जिन्होंने बचायी मेरी जिंदगी

 आत्मकथा-63




डाइग्नोस्टिक सेंटर की लड़की ने डाक्टर असीम चटर्जी का नाम सुझाया तो भैया रुक्म के साथ परिवार के अन्य सदस्यों को कुछ भरोसा हुआ कि शायद मेरा कष्ट अब दूर हो जाये। वे सोच रहे थे कि शायद डाइग्नोस्टिक सेंटर की लड़की के माध्यम से ईश्वर ने ही मेरा कष्ट लाघव करने के लिए डाक्टर असीम चटर्जी का नाम सुझाने की प्रेरणा दी हो।

 हम लोग घर लौट आये। हमेशा की तरह मुझे कुछ तरल पदार्थ खाने को दिया गया। एक घूंट भी गले से नीचे नहीं उतरा और नाक से निकल गया। मैं रोज की तरह मन मार कर लेट गया। फिर थोड़ी देर बाद उठ कर अपनी तकलीफों की लिस्ट बनाने लगा। मैं क्या क्या और कहां कहां कष्ट है वह पूरा विवरण तो लिखा ही डायग्राम भी बना लिया।

 दूसरे दिन तय समय पर हम लोग कोलकाता के उल्टाडांगा के सुदर्शन चक्रवर्ती मेमोरियल सेंटर पहुंच गये। डाक्टर चटर्जी एक तल्ला ऊपर बैठे थे। मेरे साथ भैया रुक्म, भाभी निरुपमा और पत्नी वंदना थीं। मैं इतना कमजोर हो चुका था कि चलते समय मेरे पैर कांपते थे। मैं सीढ़ी नहीं चढ़ पा रहा था। भैया ने किसी तरह से हाथ पकड़ कर ऊपर चढ़ाया। कुछ सीढ़ियां चढ़ने पर मैं हांफने लगा था। आप समझ सकते  हैं कि जिस व्यक्ति ने महीनों से कुछ ना खाया हो उसकी स्थिति क्या हो सकती है। कुछ शब्द बोलने से ही मेरी सांस भर आती थी। जो तकलीफ की लिस्ट मैं अपने साथ ले गया था उसे डाक्टर के सामने पढ़ने लगा। मैं कुछ देर पढ़ता और दम फूलने और मुंह सूखने लगता। मेरी यह हालत देख कर डाक्टर चटर्जी ने कहा-अपनी लिस्ट मुझे दीजिए मैंने नागपुर से डाक्टरी की पढ़ाई की है मैं हिंदी पढ़ना जानता हूं।

 मैंने लिस्ट डाक्टर च़टर्जी को थमा दी। वे थोड़ी देर तक मेरी तकलीफों की लिस्ट पढ़ने के बाद बोले –आपको कुछ नहीं हुआ। जाइए आज भैया के साथ बैठ कर खाना  खाइएगा। आपको कुछ नहीं हुआ जाइए भैया के साथ खाना खाइएगा। उनके इस वाक्य ने मुझे भरोसा दिया। इसके पहले जिस डाक्टर को दिखाया गया था उसने तो मेरे बारे में कुछ ऐसा कह दिया था कि भैया रुक्म रोने लगे थे। मैं मानता  हूं कि डाक्टर को बीमार को अगर गंभीर बीमारी हो तो उसके साथ गये परिजनों को अलग से बता देना चाहिए। इसकी वजह है कि जो बीमार पहले से ही परेशान है उसके सामने यह कहा जाये-अब लाये हैं, अब हम क्या कर सकते हैं।

उनसे उलट डाक्टर चटर्जी ने मुझे डरवाने की वजह ढांढस बंधाया।

 थोड़ी देर बाद डाक्टर चटर्जी ने पूछा- कोई टेंशन है क्या?

मैंने स्वीकार में सिर हिला दिया।

इसके बाद डाक्टर चटर्जी ने कहा-आपको कुछ नहीं हुआ। दवाएं दे रहे हैं उसे खाइए सब ठीक हो जायेगा।

मैं अपने परिवार के साथ घर वापस लौट आया। डाक्टर चटर्जी का दिया भरोसा काम कर गया।इसके पहले अरसे तक किया गया होम्योपैथी इलाज भी काम ना आया जबकि माना जाता है कि होम्योपैथी चमत्कार करती है। महीनों बाद कुछ लिक्विड पदार्श मेरे गले के नीचे उतरा। मुझे लगा कि यह ईश्वर की ही कृपा है कि मैं लिक्विड ही ,सही गले के नीचे उतार पाया।  लोगों ने तो यहां तक डरवाना शुरू कर दिया था कि कहीं इसोफोगस में खराबी है। इसोफ़ेगस खोखली नली होती है जो गले (फ़ेरिंक्स) से लेकर पेट तक जाती है। भोजन सिर्फ इसोफ़ेगस से पेट में ही नहीं जाता है।...

कुछ दिन के इलाज के बाद मैं इस लायक हो गया कि पत्नी वंदना के साथ डाक्टर चटर्जी  के कोलकाता के साल्टलेक स्थित चैंबर में जाने लगा। कुछ महीने के इलाज के बाद मैं इस लायक हो गया कि सालिड खाना भी खाने लायक हो  गया।

उसके बाद डाक्टर चटर्जी से अच्छा संबंध हो गया। उनको हमने आकाशवाणी के कोलकाता केंद्र से हिंदी में वार्ता प्रसारण में मदद की। फिर एक बार मेरे बेटे अनुराग की तबीयत बहुत खराब हुई तो उसे देखने वे हमारे कोलकाता के कांकुड़गाछी अंचल के घर में भी आये।

 उसके बाद भी पत्नी वंदना को दिखाने मैं डाक्टर चटर्जी के यहां जाता रहा। एक बार मैने कहा-मेरे लिए भी कुछ दवा बता दीजिए।

वे मेरी ओर इशारा करते हुए पत्नी वंदना से बोले-ये भद्र लोग यहां क्यों?

मैने कहा –पेट ठीक से साफ नहीं होता कोई दला बता दीजिए।

डाक्टर बोले-ईसबगोल भिगो कर खा लीजिए इसके लिए दवा नहीं।

कोई और डाक्टर होता तो कई टेस्ट लिख देते और दर्जनों दवायें पर डाक्टर चटर्जी जैसे डाक्टर बहुत कम ही हैं। आजकल ज्यादातर डाक्टर ऐसे हैं जो आपको बेवजह लंबे अरसे तक किसी ना किसी तरह फंसाये रखते हैं और वे टेस्ट भी करवाते हैं जिससे उन्हें डाइग्नोस्टिक सेंटर से कमीशन मिल सके। मुझे इस बात का पता तब चला जब मैं एक डाइग्नोस्टिक सेंटर में एक स्पेसिमेन लेकर टेस्ट कराने पहुंचा। मेरे सामने ही उस लड़की ने अपने सहयोगी से पूछा-देखो इस डाक्टर का नाम हमारे लिस्ट में है। सहयोगी ने उसे बताया कि उस डाक्टर नाम उनके यहां है।

काउंटर से हट कर बाहर खडे एक व्यक्ति से पूछा कि डाक्टर का डाइग्नोस्टिक सेंटर की लिस्ट में नाम होने का मतलब क्या होता है। उसने बताया कि जो भी डाक्टर यहां किसी टेस्ट के लिए भेजता है उसे डाइग्नोस्टिक सेंटर से कमीशन मिलता है। इसके बाद मुझे पता चला कि डाक्टर ज्यादा टेस्ट क्यों करवाते हैं। एक हमारा आयुर्वेद है जिसमें दक्ष वैद्य नाड़ी देख कर सारा रोग पहचान लेते हैं। (क्रमश)

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