Tuesday, August 27, 2024

उदयन जी मुझे दिल्ली ले जाना चाहते थे

 आत्मकथा-64



एक एलोपैथी दवा के रिएक्शन से मुक्ति के बाद जब मैं अपने रविवार साप्ताहिक के कार्यालय पहुंचा तो सभी ने मेरी कुशल क्षेम पूंछी.। मैं स्वस्थ हूं यह जान कर कार्यालय के मेरे सभी साथी बहुत खुश हुए। संपादक उदयव शर्मा ने भी मेरा हालचाल पूछा।

 मैं नियमित कार्यालय में अपनी ड्यूटी करने लगा। यहां एक उल्लेख करता चलूं कि जब मैंने आनंद बाजार के रविवार को ज्वाइन किया था तब तक उप संपादकों के पद भर चुके थे इसलिए मुझे  संपादकीय सहयोगी के रूप में रखा गया था। मुझे इसका कोई गिला नहीं धा। मेरे लिए सबसे बड़ी बात यह थी कि मैं आनंद बाजार प्रकाशन जैसे बड़े संस्थान से जुड़ रहा हूं। इससे भी बड़ी बात यह थी कि मुझे सुरेंद्र प्रताप सिंह जैसे समर्थ, सशक्त और सुलझे संपादक के साथ काम करने का मौका मिल रहा था। यह भी बताता चलूं कि मेरे शैक्षणिक प्रमाणपत्रों में मेरा वास्तविक नाम रामहित तिवारी दर्ज था। इस नाम को लेकर भी एक कहानी है। मैं उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड अंचल से आता हूं जहां अक्सर नाम ईश्वर या अवतारों के नाम पर रखने की परंपरा है। वहां राम से प्रारंभ होने नाम के अनेक लोग आपको मिल जायेंगे। मेरी माता ने एक संतान खोने के बाद मुझे पाया था इसलिए गांव की बुजुर्ग महिलाओं ने मां को सलाह दी कि भगवान के नाम पर बच्चे का नाम रख दो वही इसकी रक्षा करेंगे। मेरा नाम रख दिया गया था रामहेती। इसके बाद जब मैं कालेज में पहुंचा तो हमारे संस्कृत के आचार्य ने समझाया कि रामहेती शब्द गलत है सही शब्द है रामहित। उन्होंने संस्कृत में इसकी कुछ इस तरह से व्याख्या की-रामस्य.हितू स रामहित:। इसका अर्थ है –जो राम से प्रेम करता है वह रामहित है। कोलकाता भैया भाभी से मिलने क्या आया यहीं का होकर रह गया। भैया कथाकारस कवि और साहित्यिक थे। उनके चरणो में बैठ कर थोड़ा बहुत लिखना सीखा और कुछ लिखने लगा। इसके लिए नया नाम राजेश त्रिपाठी चुना और उस नाम से जाना पहचाना जाने लगा तो यही मेरा नया नाम हो गया पर मेरे शैक्षणिक प्रमाणपत्रों में मैं रामहित तिवारी ही बना रहा। आनंद बाजार कार्यालय में मेरे इसी नाम के प्रमाणपत्र जमा थे। इस नाम की कहानी मैंने क्यों सुनाई इसका पता आपको आगे के प्रसंग से चलेगा।

***

एक दिन की बात है कि हम लोग काम कर रहे थे तभी हमारे संपादक उदयन शर्मा आये और तपाक से मुझसे बोले-अरे पंजित तुम यह बताओं कि तुम्हारा नाम क्या है?

 मैंने उत्तर दिया-मेरा वास्तविक नाम रामहित तिवारी है और लिखता मै राजेश त्रिपाठी के नाम से हूं और यही नाम ज्यादा प्रचलित है।

 उस पर उदयन जी बोले- पंडित आप कल ही अपने राजेश त्रिपाठी नाम को कोर्ट से एफिडेबिट कराइए। मैंने आज अवीक सरकार से आपको प्रोमोट करने की बात की। मैंने उनसे कहा कि हमारे यहां राजेश त्रिपाठी हैं उनको उप संपादक के रूप में प्रोमोट कर दीजिए। अवीक सरकार ने अपने यहां के पत्रकार कर्मचारियों के नाम चेक करने के बाद कहा कि उदयन जी इस नाम का कोई कर्मचारी हमारे यहां नहीं है।

मेंने उदयन जी के आदेश का पालन किया और अपने पेन नेम राजेश त्रिपाठी को बाकायदा कानूनी ढंग से अपना लिया और मेरा प्रोमोशन भी रविवार के उपसंपादक के रूप में हो गया।

 इसके बाद सब कुछ सामान्य रूप से चल रहा था कि पता चला कि उदयन जी रविवार को छोड़ कर मुकेश अंबानी के साप्ताहिक अखबार संडे आब्जर्बर के संपादक बन कर जाने वाले हैं। यह हमारे लिए दूसरा झटका था। एक झटका तब लगा था जब सुरेंद्र प्रताप सिंह रविवार को छोड कर नवभारत टाइम्स चले गये थे। उसके बाद जब उदयन शर्मा जी आये तो रविवार सही ढंग से चलने लगा। अब उदयन जी जा रहे हैं तो पता  नहीं रविवार कब तक टिक पायेगा।

 अचानक उदयन जी ने एक दिन मुझे अपने कक्ष में बुलाया और बोले-पंडित  बोरिया बिस्तर बांध लीजिए आपको मेरे साथ दिल्ली चलना है। मैं अंबानी के पेपर संडे आब्जर्बर का संपादक बन रहा हूं आपको मेरी टीम में रहना है।

 मैंने कहा-पंडित जी यह फैसला तो मेरे भैया ही ले सकते हैं। उनकी अपनी कोई संतान नहीं में ही उनका सब कुछ हूं। मुझे नहीं लगता कि वे मुझे अपने से दूर होने देंगे।

 इस पर उदयन जी बोले-कल आप अपने भैया को दफ्तर ले आइएगा मैं स्वयं उनसे बात करूंगा।

 मेंने घर आकर भैया से सारी बात सुनायी। सब सुन कर उनके चेहरे पर उदासी उभर आयी। वे कुछ बोले तो नहीं लेकिन हाव भाव बता रहे थे कि वे मुझे अपने अलग करने को तैयार नहीं हैं।

 खैर दूसरे दिन मैं भैया के साथ उदयन जी से मिलने पहुंचा। कुछ क्षँण की औपचारिक बातचीत के बाद उदयन जी उस विषय पर आये  जिसके लिए उदयन  जी ने भैया को बुलाया था।

 वे बोले-भैया जी मैं अंबानी के अखबार में संपादक बन कर जा रहा हूं और राजेश को भी अपने साथ ले जाना चाहता हूं। मैं अपने रहते यहां कार्यालय से सारा हिसाब करा दूंगा और अपने साथ ही फ्लाइट में ले जाऊंगा।

 भैया बोले-उदयन जी आप ठीक कह रहे हैं लेकिन भाई को हम अपने से दूर कैसे करें। इसके आने पर तो हमारा परिवार बना वरना हम पति पत्नी अकेले थे। यह तो माता पिता को छोड़ हमसे मिलने आया था फिर हमारी मोह माया में ना यह वापस लौटा और ना हम भी हिम्मत कर पाये कि इसको अपने से अलग करते।

 उदयन जी बोले- मेरा भी कोई छोटा भाई नहीं आप इसे मुझे सौंप दीजिए।

 मेंने उदयन जी कहा-मैंने कभी इस्तीफा नहीं लिखा।

इस पर उदयन जी ने एक एलो स्लिप फाड कर दी और कहा-जाओ लाइब्रेरी में बैठ कर इसे बड़े कागज पर लिख लाओ।

मैंने कहा-लिख लाता हूं पहले बात तो हो जाये।

इस बीच भैया को याद आया कि अभी तो पितृपक्ष चल रहा है पितृपक्ष में हम लोग कोई नया निर्णय नहीं लेते। पितृपक्ष बीत जाये तो मैं खुद भाई को लेकर आपके पास दिल्ली आऊंगा।

 भैया जी की बात सुन कर उदयन जी बोले-ठीक है।

 मैंने देखा उदयन जी चेहरा उदास हो गया था। (क्रमश:)

 

 

 

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