मैंने कहा- पैसा में कल दे दूंगा।
उन्होंने कहा-कोई बात नहीं जब सुविधा हो दे
दीजिएगा।
हमारे
साथ संजील क्षितिज भी थे जो मध्यप्रदेश सरकार की नौकरी छोड़ कर आये थे।
कमर
वहीद नकवी, रामकृपाल सिंह, राजशेखर मिश्र, किरण पटनायक संजय द्विवेदी अदि भी रविवार में थे।
लल्ला जी ने पूछा-इसमें क्या आपत्ति है।
मैंने कहा- मुझे लगता है यहां अग्नाक्षर की
स्थिति बन गयी है।
उन्होंने पूछा- क्या राजेश तुम विज्ञान के
छात्र रहे हो इस सबमें क्या पड़ गये।
लल्ला
जी ने हंस कर टाल दिया। में यहां जो भी लिख रहा हूं उसमें एक शब्द भी अतिरंजित या
मिथ्या नहीं है।
लल्ला जी बात करने के बाद मैं आफिस से निकल
गया।
मैंने कहा- बिजित दा क्या मजाक कर रहे हैं। अभी
तो हम लोग पूरा अंक फाइनल कर प्रेस भेज चुके हैं।
मैने कहा- मैं जानता हूं बिजित दा ने मुझे कल
ही बता दिया था।
इसके बाद मैंने उन्हें अग्नाक्षर के बारे में
बताया।
अचानक
हल्दर बाबू बोले-राजेश मैंने अपनी आंखें खुद नष्ट कर ली हैं।
वे बोले- देखो मैं लगभग अंधा हो गया हूं।
बड़े बूढे भी बोलते हैं कि जो भी बोलो सोच समझ
कर तोल मोल कर बोलो क्योंकि मुंह से निकली बोली और बंदूक से निकली बोली गहरा घाव
करती है बंदूक की गोली का घाव भले भर जाये लेकिन बातों से मिले घाव मुश्किल ही
भरते हैं।
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