भैया शाम को जब आफिस से लौटे तो
मैंने उनसे राजेश रपरिया के फोन और अमर उजाला के बारे में बताया।
उन्होंने कहा-कल मैं आफिस से
छुट्टी ले लेता हूं। चलते हैं देखें शायद वहीं तुम्हारी रोजी रोटी लिखी हो।
अगले सप्ताह ही हम राजधानी एक्सप्रेस से दिल्ली के लिए रवाना हो गये।
खैर गरमी का जुल्म झेलते हम
लोग मेरठ के बाहरी क्षेत्र में स्थित अमर उजाता के दफ्तर पहुंचे।
इस पर वह लड़का बोला- अभी
सामने वाले का नंबर है उसे चाय देकर फिर इधर देखूंगा।
उस पर उन्होंने बस इतना भर
कहा- तुम जब चाहे आ जाओ तुम्हारे लिए जगह मैं बना ही लूंगा।
No comments:
Post a Comment