Tuesday, May 19, 2009

जय हो! जनता जनार्दन की



हां, यह जनता जनार्दन ही तो है जिसने बड़े-बड़े सूरमाओं को धराशायी कर दिया। उनके सपनों को मिट्टी में मिला दिया। जो कल तक इस बात पर ऐंठे फिरते थे कि उनका तीसरा, चौथा या न जाने कौन-सा मोर्चा गद्दी संभालने वाला है, अब गद्दी संभालने वाले उनसे कन्नी काट रहे हैं, उनकी ओर देख नहीं रहे। इस पर उनको दुख भी हो रहा है और वे चिढ़ भी रहे हैंष चिढ़ कर औरों से शिकायत भी कर रहे हैं कि देखो हमने इनका कितना साथ दिया और अब ये हैं कि हमसे बात भी नहीं करते। इस तरह आंखें फेर रहे हैं जैसे हम अछूत हैं। ऐसा सोचने-समझने वालों में लालू, रामविलास और मुलायम एंड कंपनी है। अपने दलों के इन तीनों क्षत्रपों ने सोचा यह था कि इनका दल अपने-अपने राज्यों में इनके रुतबे और हैसियत को वोटों में तब्दील करेगा और यह अपने मोर्चे या किसी समान विचारधारा के दूसरे मोर्चे की बांह थाम दिल्ली की गद्दी पर जा बैठेंगे। जनता जो जनार्दन मानी जाती है और जब मौका पाती है तो नीर-क्षीर विवेक करती है । उसने वैसा कर भी दिया और इन क्षत्रपों को इनकी औकात बता दी। अब ये राजनीति के बियाबान में भटक रहे हैं कि कहीं कोई साथी मिले जो बांह थाम ले, सत्ता के गलियारों तक इनकी पैठ में मदद करे। अब ऐसा होता नहीं लगता क्योंकि कई कांग्रेसी नेता इनसे चिढ़ रहे हैं इनकी जम कर आलोचना कर रहे हैं। ऐसा लाजिमी भी है क्योंकि इन्होंने ऐन चुनाव के मौके पर कांग्रेस का साथ छोड़ अलग गठबंधन बना लिया। उस कांग्रेस का जिसने अपनी सरकार में इनमें से दो (लालू यादव, रामविलास पासवान) को मंत्रिमंडल दे कर सम्मानित किया और ये लोकप्रियता के शिखर तक पहुंचे। अपने को दलितों का मसीहा समझने वाले रामविलास पासवान कहीं के नहीं रहे. जनता जनार्दन ने चुनाव में उनकी पार्टी का जो हस्र किया है वह कभी दुश्मन का भी न हो। अब उनके पास हार के जख्मों को सहलाने और उस दिन को कोसने के अलावा और कुछ नहीं बचा जिस दिन उन्होंने कांग्रेस से अलग चुनाव लड़ने की सोची थी। लालू और पासवान अब यह मान भी चुके हैं कि उनसे यह गलती हुई कि उन्होंने कांग्रेस से अलग होकर चुनाव लड़ा। लेकिन अब सोचने से क्या होगा, अब तो रुतबा गया और रसूख भी। कभी लालू जिस बिहार में राज (इसे राज ही समझें) करते थे आज वह उनसे छिन चुका है। नीतीश कुमार वहां के मुख्यमंत्री हैं और जनता उन्हें बेहतर मानती है। अपहरण, हत्या और लूटपाट का पर्याय बना बिहार आज शांति और विकास के पथ पर चल पड़ा है। आप बिहार में रहने वाले किसी भी व्यक्ति से पूछिए वह वहां के सुशासन और बेहतर इंतजाम की प्रशंसा पंचमुख से करता है। यह का लालू जी भी या उनकी खड़ाऊं लेकर बैठने वाली राबड़ी देवी भी कर सकती थीं लेकिन उनसे हुआ नहीं या उन्होंने किया नहीं इस बहस पर जाने का कोई फायदा नहीं क्योंकि जनता ने उनके इम्तिहान का रिजल्ट निकाल दिया है।
जनता जनार्दन ने पश्चिम बंगाल और केरल के वामपंथियों को भी सबक दिया है। यह साफ संकेत दे दिया है कि अगर आप जनता से कट गये तो आप कहीं के नहीं रहेंगे। आपको वर्ग विशेष नहीं बल्कि समाज के हर वर्ग को साथ लेकर, उसकी सुख-सुविधा का ध्यान रख कर चलना होगा। उसने आपको किसी प्रत्याशा से ही सत्ता सौंपी है। लोकसभा चुनावों में अगर पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने अपार सफलता पायी है तो इसमें उनका करिश्मा तो है ही, जनता ने भी परिवर्तन के लिए वोट दिये। मां, माटी, मानुष का उनका जमीन बचाओ आंदोलन का नारा हिट हो गया। राज्य में ज्यादातर अल्पसंख्यक, आदिवासी कृषिजीवी हैं जब राज्य सरकार कृषि जमीन का उद्योंगों के लिए अधिग्रहण करने लगी तो उनको लगा कि उनकी जीविका का साधन छीना जा रहा है। उसे बचाने के आंदोलन में उन लोगों ने ममता को साथ पाया तो चुनाव में दिल खोल कर उनकी पार्टी का साथ दिया। लोगों के मुंह से यह भी सुना जनता है कि सर्वहारा की सरकार उस वर्ग से कटती जा रही है जिसके हित की बातें कर वह तीन दशक से भी अधिक के रिकार्ड समय से पश्चिम बंगाल की सत्ता में है। उनके कुछ नेता अपने इलाके में समांतर सत्ता चलाते हैं और उनकी वहां तूती बोलती है। उनके आगे राज्य के बड़े-बड़े नेताओं की भी नहीं चलती। कई इलाके में लोग कैडर राज की भी शिकायत करते हैं। यह कितना सच है और कितना राजनीति से प्रेरित यह तो अनुसंधान और विवेचना का मुद्दा है लेकिन यह दिन के उजाले की तरह साफ है कि कहीं तो कुछ है अन्यथा अजेय और अभेद्य लाल दुर्ग की नींव ममता के आंदोलन की आंधी न हिला पाती और चुनाव में वाम मोर्चा को इस तरह मुंह की न खानी पड़ती। अब उनके सामने एक ही रास्ता है हार की समीक्षा करें और जनता में विश्वास जगायें कि वे उनके हैं और उनका शासन उनके हित की रक्षा के लिए है।
जनता जनार्दन का एक बात के लिए और धन्यवाद और आभार व्यक्त करना बहुत जरुरी है। वह यह कि जो काम कोर्ट, चुनाव आयोग और राजनीतिक पार्टियां तक नहीं कर पायीं वह उसने कर दिखाया है। बराबर यह कहा जाता रहा है कि राजनीतिक पार्टियां यह सुनिश्चित करें कि आपराधिक प्रवृत्ति के लोग चुनाव लड़ कर संसद या विधानसभा न पहुंच पायें पर ऐसा कभी हुआ नहीं। दिन ब दिन अपराधियों की संख्या बढ़ती ही गयी। इस बार भी जेल में बंद अपराधियों ने अपने नाते-रिश्तेदारों को चुनाव में खड़ा कर दिया था ताकि वे जीत कर संसद में पहुंचे और उनका रुतबा बुलंद रहे.। मेरा भारत वाकई महान है और धन्य और वंदनीय है उनकी जागृत जनता। उसने इस बार दर्जनों अपराधियों को उनकी औकात बता दी और उनको या उनके अपनों को चुनाव में चारों खाने चित्त कर दिया। इस पुण्य कार्य के लिए जनता जनार्दन को जितना साधुवाद दिया जाये कम है। उसने संसद को आपराधिक चेहरों से अपवित्र और दागदार होने में कुछ हद तक तो बचा लिया वैसे कुछ इस तरह के लोग इस बार भी जीतने में कामयाब रहे। मुमकिन है जनता अपनी गलती अगली बार सुधार ले। तो इस जागरण और इस चेतना के लिए जय हो जनता जनार्दन की।
राजेश त्रिपाठी (19 मई)

1 comment:

  1. सच मे इस बार के चुनाव कई मामलो में अलग है...!इस बार लालू पासवान के साथ साथ ही अनेक बाहुबलियों का पत्ता भी साफ़ हो गया है ,जिन्होंने कई वर्षो से राजनीती को एक मजाक बना कर रख दिया था... छोटे दल भी इस बार अपनी औकात में है..

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